दहेज की कीमत

दहेज की कीमत

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दीनू उस समय राममनोहर महतो का खेत जोत रहा था जब उसको वह हृदय-विदारक समाचार प्राप्त हुआ। वह हल- बैल सब छोड़कर वहीं जमीन पर बैठ गया और अपने माथे को बाहों में छिपाए जोर से क्रंदन करने लगा।

कभी उसके स्वयं के पास भी जमीन हुआ करती थी। आज देखो, उसका जीवन मजदूरी में कटता है! सब किस्मत का खेल है। पर, इसमे उसकी क्या गलती? जो किस्मत ने उसे इतनी बड़ी सजा दी??।

सुनैना उस गरीब की इकलौती बेटी थी। अपने पास साधनों की कमी होते हुए भी उसने और उसकी पत्नी सुनीता ने उसे बड़े ही लाड़-प्यार और जतन से पाला था। वह सुनैना थी भी इतनी शांत और सुशील। उसकी कभी कोई मांग न होती थी। जितना मिलता था उसी से हमेशा खुश रहा करती थी। जानती थी कि कुछ भी माँगने पर उसे दिलवाने के लिए बापू उसके लिए जमीन आसमान एक कर देंगे! नहीं बापू को इतना तकलीफ वह न दे सकती थी। माई- बापूजी में उसका भी जान बसता था।

जब बेटी ब्याह लायक हुई तो दीनदयाल ने उसकी शादी के लिए एक संपन्न घराने की तलाश की। सोचा कि, निर्धनता में पली बेटी शादी के बाद सुख भोगेगी। अतः अपनी हैसियत से भी ज्यादा खर्च करके उसने बेटी सुनैना की शादी वहाँ करवा दी। अब उसके पास ज्यादा कुछ तो था नहीं। दहेज हेतु अपनी चार बीघे की जो पुश्तैनी जमीन थी, वह बेच दी। और राममनोहर महतो से कुछ नकद कर्जा भी ले लिया । सोचा था, कि मजदूरी करके वह महतो के सारे पैसे चुका देगा!

परंतु सोचा क्या था और हुआ क्या। सुनैना के ससुराल वाले शादी के बाद उस पर और दहेज लाने हेतु दबाव डालने लगे थे। सुनैना ने इसके बारे में बापू से कभी कुछ न कहा । जानती तो थी कि अब बापू और पैसे कहाँ से लावेंगे ?

वह चुपचाप सब सहती रही। और जब सहा न गया तो कल रात को घर के सबके सो जाने के बाद गले में फाँसी लगाकर सभी यंत्रणाओं से मुक्ति पा ली।

" रेऽऽऽसुनैनारेऽऽ। तूने यह क्या कर डाला?? एकबार बापू का भी तुझको खयाल न आया? अब तेरी माई को घर जाकर क्या कहूँगाऽऽऽ" के हृदयविदारक विलाप से खेत-खलिहान की शांति भंग होने लगी।

सच ही कहा है किसी ने--"दहेज की कीमत क्या है यह उस किसान से पूछो, जिसकी जमीन भी चली गई और बेटी भी।"


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