देशभक्ति और हम
देशभक्ति और हम


साथियों, जीवन तो हमेशा क्षण भंगुर रहा है। समय बदलता है, समय बलवान है और हम सभी समय के दास हैं। जैसा समय होता है, वैसा आचरण करते हैं।
आज वैश्विक संकट की घड़ी है। संपूर्ण विश्व कोरोना जैसे भीषण जानलेवा वायरस से जूझ रहा है। घर में सुरक्षित बैठे लोग भी खबरें पढ़कर असुरक्षित महसूस करते हैं। घर से बाहर निकल न पाने के कारण गतिविधियां घर तक ही सीमित रह गई हैं। यह संकट का समय है। इससे उबरने के लिए आओ एकजुट हो जाएं।
यदि सकारात्मक सोच के साथ चलें तो यह एक ऐसा समय है, जिसने सभी को आत्ममंथन का समय दिया है। अनुशासित नागरिक परिवार के साथ घरों के भीतर हैं। सभी मान रहे हैं, प्रकृति ने हमारे उसे भ्रम को तोड़ा है जिसमें हम खुद को सर्वशक्तिमान समझने लग गए थे।
आज की परिस्थितियों में अगर खुद बचाना और औरों को बचाना है, तो घर के अंदर रहने में ही सुरक्षा है। घर के अंदर रहना चाहे कितना मुश्किल हो, नियम का पालन करना ही होगा।
मगर ऐसे समय में भी कुछ लोग नकारात्मकता से बाज़ नहीं आ रहे हैं। आज कुछ सवाल उन्हीं लोगों से पूछना चाहती हूं।
चिकित्सा कर्मियों और पुलिस पर पथराव कर रहे हो जो आपकी हिफाज़त करने और आपको इस भयावह बीमारी और मौत से बचाने की कोशिश में अपनी जान को खतरे में डाल रहे हैं, अपने प्रियजनों को छोड़कर दिन - रात सेवा में लगे हैं?
इससे क्या आप अपनी क़ौम को बदनाम नहीं कर रहे?
जिस देश की मिट्टी का उगा खाते हो,जहां की नदियों का पानी पीते हो ,जहां की हवा में सांस लेते हो उसके उपकार का ऐसे बदला देते हो ? इस देश के नागरिक होने के नाते
यहां का क़ानून मानना क्या तुम्हारा फर्ज़ नहीं?
तुम्हारा इतनी जल्दी बहक जाना क्या यह नहीं सिद्ध करता कि तुम अभी भी जाहिल हो? अपनी बुद्धि क्या है ,जानते ही नहीं, जो कठमुल्ला कह रहें हैं,उसकी सच्चाई तो परख लो। क्यों पूरी कौम को दुनिया में रुसवा कर रहे हो?
जो तुम कर रहें हो उसका किस को फायदा मिल रहा है? क्या तुम ख़ुद ख़ुश हैं? अपने मन को टटोलो। अंदर कुछ नेकी, कुछ भलाई, कुछ वफ़ादारी बची है ? हर इंसान में होती है,हो सकता है तुम्हारे भीतर भी हो। उससे दुनिया को रुबरु कराओ।अभी देश का समय प्रतिकूल चल रहा है।उसे अनुकूल बनाने में जुटे हुए चिकित्सा कर्मियों, सफाई कर्मियों, पुलिस, प्रशासन और समाज सेवकों का सच्चे मन से शुक्रिया अदा करो।
जब देश की जनता अपनी दैनिक जरूरतों के लिए जूझ रही है।सरकार और स्वयंसेवी जरुरतमंदो की मदद के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं,जहाँ यह अनिश्चित है कि देश वैश्विक महामारी कोरोना की दहशत से कब बाहर निकल पायेगा, जहाँ जो जिस परिस्थिति में है ,उसे वहां सेवा-भाव में जुटना कर्तव्य होना चाहिए, रोज संक्रमण और मृत्यु के बढ़ते आंकड़े देख कर भी तुम्हारी संवेदना नहीं जागती ? थोड़ी - बहुत नकारत्मकता हर संस्कृति, हर देश, हर परिवार में होती है पर सकारात्मकता को छोड़ देना कहीं से भी जायज़ नहीं।
अगर आज नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी। लड़ना ही चाहते हो ?लड़ने के लिए जीवित रहना जरूरी है
इस समय तुम्हारी जंग अपनों से नहीं, बीमारी से है , बीमारी से लड़ो।