ढाई आखर प्रेम का ढाई दिन
ढाई आखर प्रेम का ढाई दिन
कभी कभी ज़िन्दगी में ऐसा वक़्त आ जाता है,की उसे ताउम्र भूलना मुश्किल ही नही नामुमकिन हो जाता है।
उसकी टीस सुई बन के हर पल जख्म को कुरेदती रहती है।
कितनी नादान थी मैं,जब सहेलियों के साथ कश्मीर घूमने गयी थी,कितने ही खूबसूरत नज़ारे थे,ठंडी ठंडी वादियों के बीच,मैं तितली बन इधर से उधर स्वच्छंद उड़ रही थी।फूलों की तरह महक रही थी।किलकारी बन खुद ही गदगद हो रही थी।
हम सब सहेलियां अपने अपने सपनो के राजकुमार के बारे में बता,कभी पुलकित होती और कभी शरमा के आँखे चुराती। मदभरी शौख चंचल निगाहें,प्रकति को और खूबसूरत दिखा रही थी।
हँसते हंसाते कब शाम हुई,पता ही न चला।अपने होटल के कमरे में सब थक हार के वापिस आ गए,नींद न आ रही थी तो मैं कमरे के बाहर आकर फिज़ाओ का आनंद लेने लगी,बर्फ से जमे सफेद चमकीले पहाड़ रात को बहुत सुंदर बना रहे थे।
तभी एक मिश्री जैसी आवाज़ मेरे कानों में घुली। *हेल्लो मैं सुशांत*
आप मुझे न जानती।
लेकिन आज जब से मैने तुम्हे देखा है पता न क्या महसूस हो रहा है,मेरी आँखों को बस तुम ही दिख रही हो,चाह के तुम्हे भूल ही न पा रहा,मेरे दिलोदिमाग पर तुम्हारे अक्स ने, तुम्हारी हँसी ने, तुम्हारी महक ने कब्जा कर लिया है।
मैं एकटक हो,यंत्रवत सी उसकी बातें सुने जा रही थी।आँखे जड़वत सी हो गयी थी।
ये क्या,ये तो वही मेरे सपनों का राजकुमार था,जो मेरे ख्वाबों में आ कर मेरे जेहन में बस चुका था।
न समाज का डर,न जाति की फिक्र,न ही माँ पिता का लाड़ प्यार कूछ भी तो याद नही रहा था।
सुशांत के आगे सब ओझल हो गए थे,बस मेरी नज़र में था, तो एक बेहद मासूम खूबसूरत चेहरा,जो दिलकश आवाज़ का मालिक था।उसके मोहपाश में मुझे कस के जकड़ लिया था।
अपनी सारी मर्यादा,नसीहते सब भूल उसी रात, मैंने उसे अपना सर्वस्व सौंप दिया,
बाकी के दो दिन उसके साथ कश्मीर घूम कर सच मे लगा कि *धरती का स्वर्ग है कश्मीर*
पता ही न लगा के *ढाई दिन का प्रेम* इतना खूबसूरत होगा।
मेरा दिल्ली जाने का समय आ गया और सुशांत को अभी एक और दिन कश्मीर रुकना था।
अपना फ़ोन नम्बर दे,नम आँखों से विदा हो ,बहुत सी हसीन यादें लिये,जल्द ही दुबारा मिलने की आस लिए वापिस लौट आई।
वक़्त पंख लगा कर उड़ गया,सुशांत का फोन न आया।जी घबराने लगा,तभी एक वज्रपात हुआ,पता लगा कि मैं माँ बनने वाली हूँ।एक कुंवारी माँ का अहसास करते ही,खुद से नफरत होने लगी।अनजाना खौफ का साया,मेरे इर्दगिर्द घूमने लगे,क्या बताऊँ,किसे बताऊं,क्या हो चुका था मेरे साथ,पाप था या प्यार की निशानी।
असहाय सी सुशांत के फोन का इंतज़ार करती रही,और दूसरे शहर जा कर नौकरी करने लगी,जिससे माँ पिता और समाज की नज़रों से बच जाऊँ।
5 महीने निकल गए,इसी इंतज़ार में क्योँ की सुशांत को मेरा दिल गलत न मानता था,ये बच्चा अवैध न था,हमारे प्यार को बांध कर रखने वाली डोर था।
मैं तन्हा यादों में गुम थी कि फोन की घण्टी बजी,मैंने लपक कर फोन उठाया और बोली कौन बोल रहा है,
दूसरी ओर से आवाज़ आई *मैं सुशांत बोल रहा हूँ*
उसकी आवाज़ लड़खड़ा रही थी *दुर्घटना* बस साँसे अटकी है,तुम्हारी वजह से
मुझे माफ़ करना *अलविदा* और फोन बिना कटे गिर पड़ा,
मैं *सुशांत सुशांत बोलती रही *सुशांत अब शांत* हो चुका था।
किसी ने फोन उठा कर कहा,सुशांत इस दुनिया मे नहीं रहा।
अश्रुधारा रुकने का नाम न ले रही ,मैं कटे पेड़ की भांति गिर पड़ी,और आज उस *ढाई दिन के प्रेम* की निशानी 20 वर्ष की मेरी बेटी के साथ तन्हा जीवन काट रही हूँ,अनगिनत यादें,ताने,प्रश्न
जिनका *अंत मेरे अंत से होगा*