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Richa Baijal

Drama

4  

Richa Baijal

Drama

डे 30 : 'निर्भया' से जीना सीखो

डे 30 : 'निर्भया' से जीना सीखो

3 mins
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डे 30 : 'निर्भया' से जीना सीखो:23.04.2020


डिअर डायरी,

आज निर्भया की कहानी देखी : क्राइम तक चैनल हैं यूट्यूब पर, उस पर शम्स सुनाते हैं।.. ऑंखें भर गयीं दर्द से। साथ ही एक जुवेनाइल शख्स की दरिंदगी की बात हुई जो नाबालिग होने के कारण फांसी से बचा रहेगा। हम आम लोगों के बीच रहेगा। उसके 4 गुनहगारों को तो फांसी हो गयी है लेकिन ये 5वा हमारे बीच ही कहीँ है। पश्चाताप में तो नहीं, गर्व से ही होगा।

अब आ जाते हैं हमारी लॉक डाउन की स्थिति पर। आज 13 राज्यों में पॉजिटिव केसेस आये। भारत में 21000 केसेस का मतलब 210000 केसेस हैं। कोटा में बच्चे घर जाने के लिए बिलख रहे हैं, हालात सामान्य होते नहीं दिख रहे हैं। हम किसी का भी दुःख और तकलीफ समझ नहीं सकते जो हालत और परिस्थिति उसकी है, उसको वही समझ सकता है। कुन्हाड़ी क्षेत्र में एक कोटा पढाई करने आयी छात्रा का सुसाइड करना इन बच्चों की मनोस्थिति को दर्शाता है।

जब मैंने भी कोरोना के बारे में पहली बार सुना था तब दिल दहल गया था। लेकिन जहाँ पर मैं डर रही थी, वहां कई लोगो की सोच ऑफिस आने की थी। अब आप देखिए, जहाँ ज़िन्दगी का कल मालूम नहीं है वहां पर कुछ लोग दारू और गुटखेका खतरनाक ब्लैक कर रहे हैं। तो ये अपनी अपनी सोच का फर्क है।

कोई सहज है, तो कोई सम्बल है। कोई सशक्त है तो कोई लाचार। निर्भया जीना चाहती थी।.अपनी इतनी दुर्दशा के बाद भी, लेकिन वो जी न सकी। और आप लोग हमलोग क्या हम इतने लाचार हो गए हैं ? समझती हूँ मैं कि भय है, कांपती है रूह कि कल क्या मैं कोरोना संक्रमित निकलूंगा? लेकिन फिर सुसाइड तो कोई 'एग्जिट पॉइंट ' नहीं है न ? पता नहीं कैसे वो पंखे का पॉइंट आपको अपने घरवालों के प्यार से प्यारा लगने लगता है ? ये जो हरकतें आप जिस किसी भी स्थिति में करते हो, आपके माँ - बापसे दुनिया यही सवाल करती है कि आप कहीं डाँटते तो नहीं थे उसको ? कोई प्रेम- प्रसंग था क्या ? 

और न जाने कितने अनर्गल सवाल जिनका जवाब वो बेचारे दे देकर परेशान हो जाते हैं। 

सिर्फ इतना ही कहूँगी, " निर्भया की तरह जीना सीखो, आखिरी साँसतक लड़ो। हिम्मत मत हारो। " 

वो लड़ती रही, उसे फ़िक्र थी कि उसके इलाज के पैसे कहाँ से आएंगे। और एक ही ललक थी," मैं जीना चाहती हूँ।" 

उसकी लड़ाई को अपने आप में भरो और प्लीज़ जीने की कोशिश करो। अभी तो हौसले और भी टूटेंगे : ३ महीने के बाद हर छोटी बड़ी दुकान के मालिक को यही सोचना होगा कि अब क्या करना है ? तब क्या उसे पंखे की तरफ देखना चाहिए और निकल लेना चाहिए ? यकीनन नहीं !

बच्चे हो, तब भी ज़िद्द करके आते हो आप अपने घर से बाहर।

जिस ज़िद्द से आते हो उसी ज़िद से सर्वाइव करो। मत हारो, मत टूटो, निर्भय होकर डंटे रहो..


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