डायरी तीसरा दिन(४)
डायरी तीसरा दिन(४)


,प्रिय डायरी आज इक्कीस दिन के भारत बंद का चौथा दिन है.... दिनचर्या तो यूँ ही चलती है सुबह सुबह उठकर मैं सबसे पहले अपनी हथेलियों को आपस मे घर्षण कर आँखों पर रख फिर उन्हें गौर से देखने लगती हूँ फिर विचार आता है कि अब तो सबकी हाथ की रेखाएँ लगभग एक जैसी रहेंगी इक्कीस दिन ..... क्यूँकि बीमारी अमीर गरीब, धर्म जात पात , छोटा बड़ा कुछ भी नहीं मानती.... डर सबको समान है भले ही कोई दिखाता है कोई छुपाता है। सुबह ही विचारों का सिलसिला शुरू हो गया... मैं जल्दी जल्दी अपने क़ार्य करने लगी .... सफ़ाई, नहाना, पूजा फिर सबका खाना ये रोज के क़ार्य हैं हालाँकि सभी इसमें मेरी मदद कर रहे हैं पति, बेटा, बेटी, सासू माँ परन्तु फिर भी ज़िम्मेदारी मेरी ही है क्यूँकि हर काम के बाद सुनने को मिलता है आपका काम के दिया कुछ तो कम हो गया होगा और कोई नाराज़ ना हो जाएं इसलिए चुप चाप हाँ कहती रहती हूँ... कहते हैं ना
अपने नाराज़ ना हो जाएँ
इसी से अपनो से कुछ कहने से डरती हूँ मैं।
आज सोचने का दिन है, मैंं सोचती हूँ क्या ये सच में मेरे ही काम हैं... या मेरा प्यार है जो मैं ये सब करती हूँ.... क्या सोचने लगी मैं जरा सा कुछ हो जाए मुझे तो ये सभी घबरा जाते हैं अनजाने डर से ये इनका प्यार है... कुछ करने नहीं देते मुझे आप बस आराम करो हम कर लेंगे.... क्यूँ करती हो इतना काम जाने क्या क्या तब सारी थकान ख़त्म हो जाती है आँखें नम हो जाती हैं इसी को परिवार कहते हैं कभी खट्टी कभी मीठी....
जिनका मुख देख जी उठती हूँ मैं
ये वही हैं जो मेरे कातिल भी हैं।
चलिए आगे बढ़ते हैं सब काम कर आज मैंने एक किताब की समीक्षा लिखी जो कल रात को पढ़ी थी ... लेखक मन को थोड़ी तसल्ली मिली, कुछ देर बाहर देखा फिर वही सन्नाटा पसरा था परन्तु चिड़ियों की चहचाहट इस सन्नाटे के डर को कम कर रही थी और कुछ लोग जिन्हें सफ़ाई का ख़्याल नहीं, दूसरों की परवाह नहीं अपने कुत्तों को घुमा रहे थे या उन्हें घुमाने के बहाने पखाना कराने लाए थे.... शौक़ होना अच्छा है पर उसके लिए अच्छी शिक्षा भी होनी चाहिए इनको किसी ने समझाया नहीं एक पॉट रखिए अपने पालतू जानवरों के लिए सफ़ाई का ध्यान रखें .सड़कों से ये गंदगी लोगों के घर तक पहुँचती है पर इन पढ़े लिखे अनपढ़ों को कोई सिखा नहीं सकता अगर चालान कटने लगें तो शायद कुछ कम हो ये सब... मैंने कहा ना आज सोचने का विचारों के मंथन का दिन है... आज प्रकृति भी पूरे खुमार पर है धूप तेज है पर हवा चल रही है, नीला आसमान झाँक खुशी ज़ाहिर कर रहा है की देखो आजकल मैं कितना स्वच्छ हूँ... बीच बीच मे पत्ते उड़कर अपने होने की बात बता रहे हैं... हर किसी को उसका कार्य पता है और सब अपना कार्य चुपचाप कर रहे हैं... कवे, कबूतर कुत्ते और बीच बीच में मोर सभी अपने होने बात बता रहे हैं... सभी व्यस्त हैं अपने अपने दैनिक कार्यों में और मैं भी अब अपनी दिनचर्या के आख़िरी पड़ाव की तरफ बढ़ रही हूँ आज के लिए यहीं विराम लूँगी इस उम्मीद के साथ की कल की सूरज की ऊर्जावान किरणो के साथ माँ के पाँचवे नवरात्रे के साथ श्री राम जी की कृपा से प्रफुल्लित मन से कुछ नई खोज के साथ आऊँगी....
कल की नई सुबह के इंतज़ार मे आज को अलविदा कहना होगा
चलो अब कुछ दिन घर पर ही रह देश हित मे नियम पालन करना होगा।