डायरी लॉक्डाउन 2 तीसरा दिन
डायरी लॉक्डाउन 2 तीसरा दिन
प्रिय डायरी जैसे जैसे समय बीत रहा है वैसे वैसे मौसम भी बदल रहा है, धीरे धीरे पारा चढ़ने लगा है... मौसम तो अपनी चाल नहीं बदल सकता। ऋतुओं को तो अपने हर रूप में आना ही है और ग्रीष्म ऋतु अब अपने यौवन पर पहुँच रही है। वैसे तो ठीक है क्यूँकि लोग लॉक्डाउन का पालन नहीं कर रहे हैं कम से कम गर्मी के कहर से तो घर पर रहेंगे।
प्रिय डायरी समाचार सुन सुन कर मन बैठा सा जा रहा है कैसी बीमारी आयी है विश्व भर में इस कारोना से लाखों लोग संक्रमित हो गये हैं और हज़ारों इस भयंकर बीमारी के ग्रास बन गए हैं। ईश्वर की ये कैसी नियति है... आख़िर कब तक ये खौफ़ के बादल मंडराते रहेंगे... किसी को इसकी खबर नहीं... कब इस बीमारी की दवा तैयार होगी ये भी नहीं पता।
प्रिय डायरी हम मनुष्य कितना मैं मैं करते हैं, पैसे के पीछे भागते हैं... दूसरों से ईर्ष्या करते हैं... दूसरों को गिराने की होड़ में रहते हैं। परन्तु कभी सोच नहीं पाते अंत मे ख़ाली हाथ ही ज
ाना है... कोई रुतबा कोई पैसा काम नहीं आएगा जब बुरा वक्त आएगा। बीमारी ओहदा और हैसियत देख कर नहीं आती। आज इस मुश्किल वक्त से हम कोई सीख ले सकते हैं तों वो है खुद को बदलने की ... किसी का बुरा किया है या किसी का दिल दुखाया है तो माफ़ी मांग लें... किसी को छोटा कह चिढ़ाया है तो उसे इस विपदा के बाद गले लगा लें... हर किसी को केवल इनसान समझ प्यार आदर और सम्मान दें।
प्रिय डायरी इस बुरे वक्त से कुछ सीख कर ही आगे निकल पाए तो समझेंगे की कुछ बदलाव लाया है ये वक्त... कुछ सिखा कर गया है ये बुरा वक्त... हमे बेहतर बना कर गया है ये बुरा वक्त। आओ मिलकर हम संकल्प करें आज की अपनी एक बुरी आदत की बलि देंगे अपने आप को कुछ तो बदलेंगे इस लाक्डाउन में ताकि याद रहे की हमारी ज़िंदगी में ऐसा मुश्किल समय भी आया था और उस समय मैने अपनी अमुक बुरी आदत को छोड़ दिया था। उस पल शायद हमे सुकून की अनुभूति होगी.. प्रिय डायरी आज इतना ही इन पंक्तियों के साथ यहीं विश्राम लूँगी...
नवचेतना को जगा
सुखद कल के लिए
बदलो खुद को तुम
बदले युग धारा भी।