डायरी के पन्ने
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आज सुबह चिड़ियाँ की चहचहाहट से नींद खुली। एक मिनट के लिए लगा कि टी वी ऑन है या मैं अपने गांव के घर में हूँ। चिड़ियों की चहक इतनी अच्छी लग रही थी कि बार-बार इच्छा हो रही थी कि खिड़की खोल कर बाहर का नजारा देखूं पर डर था खिड़की खोलते ही कहीं ये उड़ न जाएँ। धीरे से उठ कर डायनिग टेबल के पास खिड़की के शीशा से बाहर देखने लगी। मेरे गमले पर बगल वाले छत पर सदा के समान चिड़ियाँ चहक रही थी, पर आज सड़क सुनी होने के कारण वातावरण शांत और स्वच्छ था अतः इनकी आवाज भी मिल रही थी और ये उन्मुक्त हो दाना चुगते हुए अपने मधुर ध्वनि में अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे।
इन्हें देख मन सोचने को विवश हो गया कि क्या हम सदा अपने वातावरण को इतना स्वच्छ और शांत नहीं रख सकते क्या? मेरे सोच को सायरन की आवाज ने लगाम लगा दी। पता न इस एम्बुलेंस में कोई बीमार जा रहा है या कोई कोरोना से ग्रसित। दिमाग की सूई घूम कर कोरोना पर आ कर अटक गई। नहीं चाहते हुए भी टी वी ऑन कर कोरोना का जायजा लेने लगी। पढ़े लिखे अनपढों की बात सुन मन कुफ़्त हो जाता है। मैं या आप तो टी वी बन्द कर देते हैं पर डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ, पुलिस और अन्य वे लोग जो इनलोगों का इलाज कर रहे हैं या कतार बद्ध कर समान ख़रीदवाने में मदद कर रहे हैं, भूखे लोगों को खाना खिला रहे हैं जब वे इनलोगों की फालतू बहस और बेदिमागी हरकत देखते हैं तो उन्हें कितनी कुफ़्ताहत होती होगी।
कल जब न्यूज़ में मैंने सुना कि देश के कई बिजनेस मैन और सेलिब्रेटियों ने कई लाख और करोड़ में भारत सरकार की मदद कर रहे हैं तो अपने देश के लोगों पर गर्व हुआ।
कुछ लोगों की गलती से देश में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ रही है जो बहुत चिंताजनक है। हम कब समझदार बनेंगे। ये समय नहीं है पार्टी पॉलटिक्स पर बहस करने का या जाति धर्म का पर कुछ बेकार फालतू बातें करने का। किन्तु हमारे देश में कुछ ऐसे लोग हमेशा इस काम के लिए तैयार बैठे रहते हैं। इन लोगों के बहस से अलग हो शांत रहने में ही फायदा है।