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vijay laxmi Bhatt Sharma

Inspirational

3.9  

vijay laxmi Bhatt Sharma

Inspirational

डायरी बारहवां दिन

डायरी बारहवां दिन

3 mins
222


प्रिय डायरी

आज कारोना वायरस की वजह से लॉक्डाउन का बारहवां दिन है ... पूरी दुनिया मे ग्यारह लाख से भी ज्यदा मरीज संक्रमित और साठ हज़ार से ज्यदा की मौत ... बहुत भयानक नजारा है... मौत का इतना भयानक चेहरा रोंगटे खड़े करने वाला है... अपनी दिनचर्या शुरू करते करते मै यही सोच रही थी साथ ही साथ जल्दी जल्दी काम भी निपटा रही थी क्यूँकि आज मुझे ऑफ़िस भी जाना है... प्रिय डायरी तुम सोच रहीं होंगी सारी दुनिया को घर पर रहने की सीख दे खुद ऑफ़िस वो भी छुट्टी के दिन ... तो प्रिय डायरी कुछ चीजें रुकती नहीं हैं मै भी ऐसी ही जगह कार्यरत हूँ की मुझे ऑफ़िस जाना ही पड़ेगा और आज मेरा दायित्व भी है की संकट की इस घड़ी में मै अपना दायित्व निर्वाहन करूँ जब दूर से आने वाले या जिनके पास साधन नहीं हैं वो मेरे साथी अगर ऑफ़िस नहीं जा पा रहे तब मेरा छोटा सा योगदान की मै खुद बड़कर अपना कर्तव्य पालन करूँ इसीलिए फटाफट अपने परिवार के प्रति अपने फ़र्ज को पूरा कर मै ऑफ़िस के लिए रवाना हो गई... कुछ खाने का समान ले लिया घर से रास्ते में कोई जरूरतमंद मिल जाए तो उसके लिए.... मुझे तो भूख अब कम ही लगती है... दिल दुखता है इतना खौफ़ देखकर... जो अपनो को खोते हैं वही खोने का दर्द समझ पाते है और इस महामारी ने तो हज़ारों घरों को अंधेरा कर दिया... मन की पीड़ा शब्दों मे भी बयान नहीं कर पा रही हूँ मै... व्यथित मन से चल पड़ी ऑफ़िस की तरफ... सड़कें सूनी, गालियाँ सूनी... जिस इंडिया गेट पर रविवार को पाओं रखने की जगह नहीं होती थी वो आज अपनी सूनी आँखों से अपने वीरान होने की दास्ताँ कह रहा था.... उसकी झील मे खड़ी नाव ऐसे प्रतीत हो रही थी मानो किसी ने उनसे उनका प्रीतम छीन लिया हो... चारों ओर चहल पहल वाला विजय चौक मानो मुझसे पूछ रहा हो मुझपर चलने वाले मुसाफ़िर कब लौटेंगे... मातम पसरा हो जैसे ऐसा प्रतीत हो रहा था... प्रिय डायरी मेरे ऑफ़िस के गेट पर पहुँचते ही ये आँखें नम हो गईं जिस सर्वसम्मनित स्थल पर कभी ना ख़त्म होने वाली रौनक़ होती थी वो आज सूना पड़ा था... वो पेड़ पौधे... गमले दरो दीवार मुझसे अपने होने का सबूत मांग रहे थे और मै नम आँखों से उन्हें निहार रही थी... मै आज इस मन्दिर को यूँ सुनसान देख दुःखी हूँ ... परेशान हूँ अन्दर ही अन्दर रो रही हूँ... प्रिय डायरी ये मेरे सपनो का मन्दिर है जहां हमेशा से मैने काम करने की सोची और आज अच्छे पद पर काम भी कर रही हूँ पर इस दर की ऐसी दशा पहली बार देखी... हर चीज सवाल पूछ रही है की कब वो रौनक़ फिर लौट के आएगी... मै स्तब्द हूँ... निरुत्तर हूँ बस अपना फ़र्ज निभा रही हूँ.... कभी कभी कुछ सवालों का जवाब हमारे पास नहीं होता तो उसे वक्त पर छोड़ देना चाहिए और आगे के काम पर लग जाना चाहिए मैने भी अपने काम निपटाने शुरू किए और काम ख़त्म कर फिर उन्ही सूनी राहों से होते हुए अपने घर चली गई क्यूँकि आज रात नौ बजे घर की सभी बत्ती बन्द कर नौ मिनट के लिए अपने घर के आगे रौशनी करनी है चाहे दिये हों मोमबत्ती टॉर्च या फिर मोबाइल की सर्च लाइट ताकि हमारे जीवन में पसरा ये अंधेरा दूर और फिर हम इस मुसीबत की घड़ी मे भी एक हैं ये संदेश भी देना है, हमने धैर्य नहीं खोया है नियम पालन कर अपने देश के प्रति वफ़ादारी का सबूत दिया है। प्रिय डायरी आज इस तम को मिटा नई रौशनी की चाह में आज इन पंक्तियों के साथ इतना ही....

नव जीवन के संचार के लिए

प्रकाश की नई किरण के लिए

भगाने तम की काली छाया

एक दिया जलाना चाहिए।


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