दादी तुम सच कहती थी
दादी तुम सच कहती थी
रोटियाँ बेलते- बेलते बेलन नीचे गिर गया। आज चाय में फिर से नमक पड़ गया। यह मुझे क्या होता जा रहा है। यादाश्त तो मानो रही ही नहीं। अरे -उन्हें बाजार भेजा था। मटर मंगाने तो भूल ही गई । अब चाय दोबारा बनानी पड़ेगी। बिस्किट किधर रखे हैं। पूरा घर छान मारा मिल ही नहीं रहे। बहु बच्चों को लेकर मायके क्या जाती है। मुझे तो अपने मायके की याद आ जाती है।
उर्मिला अपने बचपन की यादों में खो गई। क्या दिन थे वह जब सारा दिन खेल कूद खाने पीने का तो कुछ होश ही नहीं रहता था। देखने में कमजोर और बहुत पतली थी उर्मिला। दादी कहा करती थी। आज तुम खान-पान का ध्यान रखोगे तो हमेशा स्वस्थ और तंदुरुस्त रहोगे। बदाम खाओ याददाश्त तेज होगी। जूस पियो, सलाद खाओ, समय पर भोजन करो, सुबह जल्दी उठो। बस करो दादी। इन चीजों से कुछ नहीं होता। वह तो इन सब चीजों से कोसों दूर थी। उर्मिला की दादी इस उम्र में भी पूरी तरह तंदुरुस्त थी, तब शायद मैंने भी दादी की बातों पर ध्यान दिया होता तो और शायद मेरी याददाश्त भी उन्हीं की तरह तेज़ होती "दादी तुम सच कहती थी।"