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Rupa Bhattacharya

Abstract

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Rupa Bhattacharya

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दादाजी की पंखूरी

दादाजी की पंखूरी

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आज घर में बहुत खुशी का माहौल था।दस वर्षीय पंखूरी ने"मैंने तुम्हें पुकारा" नामक गायन प्रतियोगिता, जो जी टीवी द्वारा प्रायोजित था, के प्रथम पायदान को पार कर लिया था ।

मीताली और आकाश पंखूरी के माता- पिता दोनों ही अति उत्साहित थे। आकाश गर्व से घर में प्रवेश करते हुए बोला "पिताजी जो आप और मैं न कर सके उसे पंखूरी ने कर दिखाया"।अब दूसरे राउंड के लिए हमें मुम्बई जाना होगा !

पंडित वासुदेव त्रिपाठी जो पंखूरी के दादाजी थे,ने प्यार से पंखूरी के सर पर हाथ रखकर उसे विजयी होने का आशीर्वाद दिया ।


एक महीने बाद उन्हें मुम्बई जाना था ।वे तीनों जाने की तैयारी में व्यस्त हो गए ।मगर पंखूरी के 'पंख' तो जैसे अब कट से गए थे ।

मीताली और आकाश सारा दिन पंखूरी से गाने की रियाज़ करवाते। उसकी पढ़ाई- लिखाई, खेल- कुद, कहीं आना-जाना सब बंद हो चुका था । पंखूरी भी खुब जोश के साथ तैयारी करती

मगर दस साल की बच्ची का मन कभी- कभी उदास हो जाता ! रीता, मनु,दिया को खेलते देख पंखूरी भी खेलने के लिए मचल उठती ,मगर उसकी माँ मना कर देती।उसकी सहेलियाँ पूछती ,"पंखूरी तू स्कूल क्यों नहीं जाती"? जवाब उसकी माँ देती, इसे तो अभी गायकी में ध्यान देना है ।पंखूरी कुछ न समझते हुए बूझे मन से खड़ी रहती।

पंखूरी के दादाजी को इन सबसे कुछ कोफ्त होती, सोचते छोटी सी बच्ची अपने अरमानों का गला घोंटकर बड़ों के आगे नतमस्तक है !


आखिर मुम्बई जाने का दिन आ ही गया ।बेटे, बहु, पोती सभी ने दादाजी से विदा ली और हवाई जहाज से रवाना हो गये ।दादाजी ने 'विजयी भव 'का आशीर्वाद दिया ।

विभिन्न पायदानों को पार कर विजयी होते हुए पंखूरी फाइनल राउंड में पहुँच गई थी ।

फाइनल मुकाबले के दिन पंडितजी भी टीवी खोल कर लाइव प्रतियोगिता देखने बैठ गए ।

जी टीवी वालों ने बड़ा ही भव्य आयोजन किया था । एक के बाद एक प्रतियोगी आते गए और अपनी गायकी पेश करते गए ।सब एक से बढ़कर एक थे। अचानक दादाजी उछल पड़े!! "यह रही पंखूरी "! पंखूरी टीवी पर अपनी सुरीली आवाज का जलवा बिखेर रही थी ।

अब बारी थी जीतने वालों के नाम एनाउंसमेन्ट का ! ! दादाजी दिल थाम कर बैठे थे ! चौथाऽऽ, तीसरा ऽऽ, दूसराऽऽ,और पहलाऽऽ ! ! कहीं पंखूरी का नाम नहीं था ।दादाजी को जिसका डर था वही हुआ, पंखूरी प्रतियोगिता नहीं जीत पाई । मीताली सुबक-सुबक कर रो रही थी ।माँ को रोते देखकर पंखूरी भी रो रही थी, जिसे एंकर चुप करा रही थी ।दादाजी ने टीवी बंद कर दिया ।


अगले दिन सुबह सब घर लौट आए । आते ही मीताली दहाड़े मारकर रोने लगी, पंखूरी भी सूबकते हुए एक कोने मे जाकर खड़ी हो गई आकाश 'मेरा ही भाग्य खराब है ' कहता हुआ बोला, पंखूरी तुम फिर से तैयारी में लग जाओ! ! खबरदार ऽ ऽऽ ,दहाड़ते हुए दादाजी अपना छड़ी लेकर उठ खड़े हुए ,कौन मरा है?? जो इतना मातम मनाया जा रहा है ? तुम दोनों कुछ तो शर्म करो, एक अबोध की जिन्दगी से खेल रहे हो! !उसे खेलने दो, पढ़ने दो ,सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ने दो ।अभी वह बच्ची है, अपने अरमानों को उस पर मत लादो!! उसकी आवाज सुरीली है, उसे और सिखाओ। बचपन से बूढापे की ओर हम धीरे- धीरे बढ़ते हैं ।तुम लोगों ने तो उसका बचपन ही छिन लिया है पंखूरी एक होनहार बच्ची है ,उसे आगे बढ़ने दो,उसे पंख लगा कर उड़ने दो।

बेटी पंखुऽऽ तू कल से स्कूल जाएगी- ----।कहकर दादाजी धम से सोफे पर बैठ गए।

पंडित वासुदेव त्रिपाठी का ये रूप किसी ने पहले नहीं देखा था ।अचानक पंखूरी दौड़ कर आई और दादाजी से लिपट गई ।

मीताली भी तेजी से आकर पंडित जी के पैरों पर गिर पड़ी,और कहा बाबू जी आप ने हमारी आँखें खोल दीं हैं, हमें माफ कर दीजिए,आकाश की आँखें भी नम थी ।

पंखूरी और दादाजी मुस्करा रहें थे ।







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