दादा हयात

दादा हयात

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दादा हयात ने घर के नक़्शे में 'रोशनदान' रखा था

हवा और धूप के साथ उसमे से ज़िन्दगी भी आती थी

 

अज़ान-ऐ-फज्र की आवाज़ आती थी, सारे घर को रेहमत से जगाती थी

रोशनदान पर कोयल आकर बैठ जाती थी, दादा को अपनी सी जान पाती थी

 

पड़ोस के पंडितजी की छत भी दिखाई देती थी रोशनदान से,

दादा उसी रोशनदान से उनके साथ ही सूर्य नमस्कार कर लेते थे

सुबह सुबह प्रणाम और आदाब गले मिल लेते थे

दिन भर राम रहीम फिर ख़ुशी ख़ुशी सफर में रहते थे

 

और तुम समझते हो रोशनदान से सिर्फ धूल आती हैं

 

मीठे आम की खुशबु और बेले के फूल की महक आती हैं

अब्दुल के बच्चे की किलकारियां भी साथ लाती हैं

और कभी कभी मोहब्बत की चिट्ठियां भी वही से फेंकी जाती हैं

 

बाजार की हलचल का शोर भी आता हैं

अपने साथ ज़िन्दगी के मोल भाओ लाता हैं

 

बूढी दादी उसी रोशनदान से आवाज़ लगा कर आम का अचार भिजवाती थी

और पड़ोस की नयी दुल्हन के गाने की आवाज़ भी वही से आती थी

 

और तुम समझते हो रोशनदान से सिर्फ धूल आती हैं

 

शाम को अच्छन मियां के रेडियो से बेगम अख्तर की आवाज़ आती थी

और रात होते होते उसी रोशनदान से चांदनी टपकने लग जाती थी

फिर रसूलन बाई के घुंघरू की आवाज़ उसी रोशनदान से आकर सुला जाती थी

 

ख्वाब भी उसी रोशनदान से आते थे

और ताबीर होने उसी रोशनदान से खुदा के घर जाते थे

 

लाल नीली और पीली पतंग उसी रोशनदान से सलाम करती थी

तो कबूतर के जोड़ो की दुनियां भी उसी रोशनदान पर सजती थी
 

रोशनदान के चार हिस्से, ऊपर के दो हिस्से

एक में माँ की ममता, दूजे में छोटे भाई का चंदा मामा रमता

नीचे के दो हिस्से, एक में बड़ी होती छोटी बहिन का दुपट्टा, दूजे में मेरी हसरतों का ख्वाब सजता

 

और तुम समझते हो रोशनदान से सिर्फ धूल आती हैं

 

अब पिताजी ने उस रोशनदान में एयर कंडीशनर लगवा दिया हैं

घर के साथ दिल भी ठन्डे हो गए हैं

 

ना धूप, ना हवा आती हैं और मेरी दुआ उस खुदा तक यूँ जाती हैं

कुछ ना सही धूल ही आ जाए

कोई याद ना करे और धूल के बहाने ही छींक आ जाए

खुदा करे रोशनदान से धूल ही आ जाए ----

 

 

   

 


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