बूढी होती हुई ज़िन्दगी
बूढी होती हुई ज़िन्दगी
जो मशहूर हो गए, वो मुझसे दूर हो गए
जो कुछ नहीं कर पाये वो मगरूर हो गए
खुदा मैं आदम का बेटा हूँ
मुझे इन दोनों सिफ़तों से दूर रख
आँखों में मेरी, मोहब्बत का नूर रख
न किसी कारवां का निगेहबान बना
न किसी इंसान के पशेमान का सबब
बनाना हैं तो मुझे किसी मुफ़लिस की रोटी का नमक बना
किसी शजर का साया बना या डूबते हुए सूरज की उम्मीद बना
किसी दोस्त की ज़रुरत में शाना बना या
बूढी होती हुई ज़िन्दगी की रमक बना
लम्हों का दर्द हैं, सदियों में जिया जाएगा
जाम नहीं, ज़िन्दगी का वहम पिया जाएगा
सूरज की तपिश से जुस्तुजू होगी
चाँद की चांदनी से गुफ्तगू होगी
बड़ा अजीब होगा ये सफर भी
भरी महफ़िल होगी और मेरा ज़िक्र होगा
मैं तन्हा ही मर जाऊंगा और दोस्तों को मेरी महफ़िल का दर्द होगा ----