चूक
चूक
सुबह से दो फोन चार संदेश ( मैसेज ) कर चुकी थी ,कोई उत्तर नहीं मिला था ।उसे थोड़ी थोड़ी घबराहट हो रही थी ।आज उससे खाना भी ठीक से खाया नहीं जा रहा था ।रह रहकर नकारात्मक विचार आरहे थे ।रात के साढ़े बारह बज रहे थे ।वह जानती थी ।उसका बेटा पुने के हॉस्टल के एक कमरे में बैठा अभी पढ़ रहा होगा ।मन से मज़बूर हो उसने पुनः बेटे को फोन लगाया ।
"क्या करती हो माँ ।इस समय तो पढ़ने दो ।सारा दिन तो संदेश भेजकर परेशान किया है"
बेटे की परेशान आवाज़ सुन ' उसकी ज़बान कुछ न बोल सकी"पर बेटा ..... कहते कहते आंखों से एक आंसू ढुलक गया "
"ओफ्फो माँ,ये ड्रामा नहीं,आपने ही तो शुरु से सिखाया,पढ़ाई सबसे महत्वपूर्ण है ।आपको याद है जब मैं मात्र चौथी कक्षा में था तो दादी की बहन आने पर आपने पापा को कितनी बाते सुनाई थी कि परीक्षा के समय घर आने से साफ़ मना कर दिया करें ।आप स्वय भी तो कहीं नहीं जाती थी ।दादी को टी.वी. तक चलाने नहीं देती थी ,मॉम पढ़ाई महतवपूर्ण है इस तरह परेशान न किया करें । .
"अच्छा बेटा" सुनने से पहले बेटे ने फोन रख दिया था ।
वह सोच रही थी उससे चूक कहाँ हुई ?
