चोरी - चोरी
चोरी - चोरी
तुझे याद करते हैं ....
दिल ही दिल में
कहीं चोरी - चोरी कुछ बीते पलों की
अपनी यादें थोड़ी - थोड़ी।
जब सर्दी में थे तुम आते
हम ठंडे ज़िस्म से थे घबराते
तब छुपते थे तुम्हारे संग
गर्म बिस्तर की तनहाई में चोरी - चोरी।
गर्मी में जब पसीना
आता हमारा बदन तब घबराता
तुम्हारे संग फिर बिन शरमाये
हम इस ज़िस्म को हवा लगायें चोरी - चोरी।
सावन आये जब मतवाला
तब मेरे तन का तू ही रखवाला
दूर आम के बगीचे में
लिपटे ये तन भीग बारिश में चोरी - चोरी।
तुझे याद करते हैं ....
दिल ही दिल में कहीं चोरी - चोरी
कुछ बीते पलों की अपनी यादें थोड़ी - थोड़ी।

