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Author Moumita Bagchi

Tragedy

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Author Moumita Bagchi

Tragedy

चोर चोर मौसेरे भाई

चोर चोर मौसेरे भाई

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एसीपी रवि कुमार एक सत्यनिष्ठ और निडर आई पी एस अधिकारी थे। इतने कम उम्र में भी अपने सिर्फ दो वर्ष के छोटे से कार्यकाल में उन्होंने इतनी शोहरत हासिल कर ली थी कि उनके सारे सहकर्मी और वरिष्ठ अधिकारी उनसे ईर्षान्वित हो उठें। पिछले वर्ष छब्बीस जनवरी को उनकी सेवा हेतु उन्हें रक्षा-मंत्री द्वारा विशेष स्वर्ण पदक भी प्राप्त हुआ। बस, तब से वे एस पी साहब की आँखों में खटकने लग गए थे। उनकी बेटी की जन्मदिन की पार्टी में उपस्थित न होने जैसे तुच्छ कारण के एवज में बड़े साहब ने अपनी पहुँच लगाकर रविकुमार का स्थानांतरण सादिक नगर जैसे एक छोटे से थाने में कर दिया।


अब तबादला हुआ है तो जाना ही पड़ेगा। नौकरी का सवाल है। अतः मन भयानक निराश होने पर भी, दो दिन बाद सादिक नगर में वे उपस्थित होते हैं। वहाँ पहुँचकर रवि कुमार पाते हैं कि बहुत ही शांतिपूर्ण इलाका है। बड़े अपराध यहाँ नाममात्र को भी न थे।


चार दिन बाद उन्हें वहाँ के स्थानीय वाशिन्दों से पता चला कि यहाँ, इस इलाके में पाशा नामक एक चोर का बड़ा प्रकोप है। वह भी ऐसा जो राह चलते आपका जेब काट ले, और आपको पता भी न चले! मानिए कि आप बजार से सब्जी खरीदकर हाथ में थैला लटकाकर घर आ रहे हो, घर आकर आप पाऐंगे कि आपके थैली में से कुछ सब्जियाँ गायब! आपके घर के बाहर कपड़े सूख रहे हैं , शाम तक देखेंगे कुछ कपड़े गायब! इतना ही शातिर चोर था वह कि आपके सामने से आपका सामान गायब कर दे और आपको पता भी न चले!

स्थानीय वाशिंदे पुलिस चौकी में शिकायत लिखा- लिखाकर थक चुके थे। पाशा पकड़ में ही न आता था। जब नए अधिकारी आए तो सब लोगों ने उनको चारों ओर से घेर लिया!


" आप कुछ कीजिए साहब, आप कुछ कीजिए!" सबका यही कहना था।


रविकुमार जल्द ही कारर्वाई करने का ढेरों आश्वासन देकर किसी तरह उन लोगों को शांत कर पाए।


अगलेदिन जोर शोर से पाशा को पकड़ने का अभियान शुरु हो गया। सबसे अधिक मुश्किल इस बात की थी कि किसी ने उसे न देखा था। किसी को उसकी हुलिया ही न मालूम था !! अतः थक-हारकर पुलिस की फौज वापस आ गई।


जीप से उतरते समय एसीपी साहब ने बड़े हैरान होकर देखा कि उनके जेब में से पर्स गायब है!!!


" यह कब हुआ!! मुझे तो कुछ पता ही न चला! आखिर पुलिस वाले का भी जेब काट लिया!!"

थाने में कदम रखते समय  जोर जोर से झगड़े की आवाज उनके कानों में पड़ी। दबे पाँव जब अंदर पहुँचे तो थानेदार साहब किसी से कह रह थे,


" रोज- रोज़ इतना कम माल लाने से कैसे चलेगा, पाशा! किसी दिन मैं तुझे लाॅक अप में डाल दूँगा!"


" आज माफ कर दीजिए, साहिब! बेटा बीमार है, इसलिए कुछ रुपये खर्च हो गए! आगे से ऐसा न होगा।"


पास खड़े एक बहुत ही साधारण चेहरे -मोहरेवाला एक दुबला पतले आदमी ने जवाब दिया।


अब जाकर रवि कुमार को पता चला कि पाशा पकड़ा क्यों नहीं गया था अबतक!!


किसी ने सच ही कहा है कि एक हाथ से कभी ताली नहीं बजती!



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