चमकीली साड़ी

चमकीली साड़ी

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दूर क्षितिज में डूबते सूरज की मद्धम पड़ चुकी रोशनी में छोटी ने घर की तरफ तेज़ी से बढ़ रहे अपने पिता गिरधारी को देखा और अति हर्ष के साथ भाग कर गेट खोला और पिता के हाथ में लटका थैला लेकर माँ के पास भीतर भाग आयी।

अगले हफ्ते मीना के भाई की शादी है। सबको शादी में जाना अनिवार्य है। पहले तो कर्ज़ के चलते मीना ने गिरधारी से कोई चीज़ नहीं माँगी, पर अब जब कर्ज़ माफ हो गया और पेमेंट भी टाइम से खाते में आने लगा तो गिरधारी, मीना के मन की जान आज एक चमकीली साड़ी भेंट में ले आया।

"अजी सुनो...ये तो बहुत महंगी लगती है। क्या ज़रूरत थी इतने पैसे हमारे ऊपर उड़ाने की ?"

"अरी चिंता मत कर, अबकी बार जो सरकार बनी है वो किसानों की हितैषी है, सीमेंट के हाथी घोड़े या अखबारों की सुर्खियां बनाने की चाह रखने वाली नहीं। अब तुझे या छोटी को अपना मन मारने की ज़रूरत ना है।"

"तुम कब से सरकार की तरफदारी करने लगे ? मैं तो कहती हूँ इसे बसंत मानों। अपने यहाँ सरकारें ऋतुओं की तरह ही तो बदलती हैं। ऐसा न हो कि अगली सरकार इस बसन्त को पतझड़ में बदल दे। हम किसान हैं...ये कभी ना भूलना छोटी के बापू।"


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