Dr. Neetu Singh Chouhan

Romance

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Dr. Neetu Singh Chouhan

Romance

चलो, फिर दोस्त बनते है..!

चलो, फिर दोस्त बनते है..!

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स्कूल से घर आते वक़्त पलक को मोगरे और ग़ुलाब के फूल दिखाई देते हैं और वो रूक कर उन्हें खरीद लेती है, कबीर को मोगरा और गुलाब बहुत पसंद है, इन्हें देखकर वो खुश हो जाएगा..….कल सी बात लगती है, वह रोज मोगरा व ग़ुलाब के फूल लाया करता था। अगर भूल जाता तो लाने के लिए मुझे कहता। वेलेंटाइन डे पर न जाने कितनी बार उसने मुझे मोगरा व ग़ुलाब दिए, वो भी ढ़ेर सारे...जो कि मुझे कभी पसंद नही थे। आज काफी दिनों बाद इन्हें देखकर खुश होगा। सच में इतने सारे काम है ना आजकल की अपनी पसंद-नापंसद का ख़याल ही नहीं आता। पलक स्कूल में टीचर है। और कबीर सॉफ्टवेयर इंजीनियर दोनों ने लव मैरिज की है। शादी के बाद नोकरी और घर की जिम्दारियों में वह अपनी निजी ज़िन्दगी और पसंद-नापसंद को कहीं भूल से गये है।

पलक घर पहुँच कर थोड़ा आराम करके डिनर की तैयारी करती है। वैसे तो शादी से लेकर अब तक पलक ने कबीर की पसंद का पूरा ख़्याल रखा है उसकी पसंद का खाना, कपड़े, घर की सजावट छोटी-छोटी चीजें जिनसे एक मकान घर बनता है....पलक को ये सब करना पसंद भी है चलो बहुत दिनों बाद आज मोगरे व ग़ुलाब के फूलों के साथ कुछ स्पेशल डेकोरेशन और कबीर के पसंद के खाने में जायका होगा तो मज़ा आ जायेगा।

कबीर आता ही होगा......मैं घर की लाइट्स धीमी कर देती हूं। पलक सारे बटन सेट कर घर में हल्की सी रोशनी रखती है।

टिन...टिन...टिन...घर की डोरबेल बजती है। कबीर ही होगा....पलक दरवाज़ा खोलती हैं।

"कितनी देर लगा दी पलक...क्या कर रही थी, " कबीर ने कहा।" बिना इधर-उधर देखे कबीर अंदर कमरे में चला गया और" इतना अँधेरा क्यूँ है, लाइट नही है क्या ..."अंदर से आवाज आई! है, ना... जवाब देकर पलक लाइट ऑन करती है। लगता है आज मूड़ ख़राब है शायद ऑफिस में कुछ हुआ होगा। काफी देर हो गई कबीर कमरे से बाहर नही आया। कबीर के कमरे की तरफ देखकर पलक ने कहा।" और पलक उसे आवाज़ लगाती है, "डिनर रेडी है कबीर, क्या तुम्हें टाइम लगेगा ।" "आता हूँ..".कबीर कहता है। पलक डाइनिंग टेबल पर खाना लगाती है ...कबीर आते ही बिना कुछ कहे सेलिड खाने लगता है। पलक जब तीसरी चपाती लाती है तो "मेरा हो गया तुम भी खा लो पलक, कबीर कहता है।" "हाँ, थोड़ी देर में खाती हूं अभी भूख नहीं हैं", कहकर पलक कुर्सी पर बैठ जाती है। कबीर खाना खाते हुए ही मोबाइल में फनी वीडियोस देखता है और खाना खाकर मोबाइल में वीडियो देखता हुआ उठकर चल देता है। अचानक पीछे पलटकर कहता है "सुबह नाश्ते में क्या बनाओगी"? पलक कहती है- "जो तुम कहो".... "डोसा बना देना"..."ठीक है, मुझे काम है" घर के दरवाज़े बन्द कर देना ओके। और अपने कमरे में चला जाता है। घर में मोगरे व ग़ुलाब के फूलों की खुशबू रह-रह के आ रही है फिर भी पलक मुरझा जाती है। 

सारा काम खत्म करके अपने कमरें में जाकर सो जाती है। और सुबह उठकर रोजाना की तरह अपने काम में लग जाती है। कबीर जरा देर से उठता है पर कबीर के उठते ही उसे चाय बनाकर देती है और नाश्ता बनाने में लग जाती है। नाश्ते के बाद खाना बनाकर दोनों का टिफ़िन पैक कर एक कबीर को देकर दूसरा अपने बैग में रखकर जल्दी से काम खत्म करके स्कूल के लिए रवाना हो जाती है। स्कूल से आते-आते लगभग सारा दिन ही बीत जाता है।

दो दिन बाद चार दिन की छुट्टी है। पलक सोचती है क्यूँ ना इस बार कहीं बाहर जाया जाए कबीर से बात करती हूं। रात को जब कबीर और पलक डिनर करते है तो पलक कहती है, कबीर दो दिन बाद चार दिन का ऑफ है। "हाँ, पलक मैं तुम्हें बताने ही वाला था की मैं दोस्तों के साथ नैनीताल जा रहा हूं।....प्लान बन चुका है। तुम अगर मायके जाना चाहों तो मैं टिटक करा दूँ, बोलो..!" पलक बुझे से मन से कहती है-"अभी मैंने कुछ सोचा नही तुम हो आओ।"

दो दिन बाद कबीर नैनीताल चला जाता है। पलक घर मे अकेली बैठे-बैठे सोचती है, कबीर कभी मेरे बारे में नही सोचता और मैं न जाने क्यूँ हर चीज में उसे देखती हूं। हर पल उसी के साथ जीना चाहती हुं। अगर मैं उससे ये बात कहूंगी तो खामखा बात बन जाएगी। मैं ही अपना नजरिया बदल लेती हूं। कुछ समय बाद पलक बच्चों का क्रेच खोल लेती है। स्कूल की ड्यूटी के बाद वो अपना क्रेच संभालती है। छोटे-छोटे बच्चों के साथ मन बड़ा ही खुश रहता हैं अब तो उसे ये भी याद से नही रहता कि कबीर सिर्फ काम के लिए उसे याद करता है, और याद आ भी जाये तो खलता नही है। पर हाँ एक दिन बॉलकनी में अकेले बैठे- बैठे पलक सोचती हैं की इतनी बिजी होने के बाद भी कोई तो हो जो मुझसे बात करें, मेरे मन की सुनें। आज संडे है वो कबीर से कहती है...."कबीर द्वारका वाला क्रेच अच्छा चल रहा है मैं सोच रही हूं कि इसकी दूसरी ब्रांच खोली जाए जगह देख ली है अगर तुम भी देख लेते तो इस महीने के एन्ड तक इसे भी ओपन कर लेंगे। हां, पर मुझे वहां कुछ समय देना होगा शायद कुछ दिन वहीं रहना पड़े।" कबीर कहता है- "ठीक है, जैसा तुम्हें ठीक लगें।" कबीर और पलक के रिश्तें में एक बात तो है कबीर पलक को कभी भी कुछ नया करने में हमेशा उसके साथ रहता है , कभी उसे ना नही करता। और पलक कुछ दिनों के लिए अपनी दूसरी ब्राँच पर आ जाती है। कुछ दिन तो बीत गए पर एक दिन जब कबीर ऑफिस से घर पहुँचकर अपने कमरे में जाता है और अंजाने में उसके मुंह से एक आवाज़ आती है- "पलक पानी ...." और अगले ही पल उसे याद आता है कि पलक तो घर पर है ही नही। कमरे से बाहर आकर वो बॉलकनी में बैठकर उन पौधों को देखता है जो बिना पानी के सूख से गये है... आज वो पलक को बहुत मिस कर रहा है, घर मे लगी तस्वीरों को रह-रह के देखता है। अचानक उसकी नज़र सामने टंगी विनचेन पर जाती है जिसे पलक बड़ी जिद करके घर में लायी थी और जानबूझकर उसे बजाती ही रहती थी आज एकदम शांत लटकी विनचेन उसे अच्छी नही लग रही थी। ओह्ह पलक, तुम्हारें बिना घर काटने को दौड़ता है, कहते ही कबीर घर को लॉक कर अपनी गाड़ी स्टार्ट करता है पलक को लाने के लिए निकल पड़ता है। पलक अपने रोजाना के कामों में व्यस्त है और एकदम से अपने ऑफिस के बाहर कबीर को देखकर हैरान भी होती है और ख़ुश भी.... "तुम यहाँ... तुमने फ़ोन क्यों नही किया कबीर......?"

"फ़ोन करता तो तुम्हें देख कैसे पाता पलक, घर चलो मैं अकेले तुम्हारें बिना घर में नही रह सकता और पलक को गले लगा लेता है...!" क्या हुआ कबीर "आज तुम...कुछ मत कहो पलक तुम बस घर चलो मैं तुम्हारें बिना नही रह सकता"

तो ये थी पलक और कबीर की कहानी.... हाँ प्यार कभी खत्म नही होता अक्सर समय के साथ थोड़ा धुँधला हो जाता है और इस धुँधलेपन में अगर दो लोगों में से एक ओझल होने लगे तो ये फिर से उमड़ पड़ता है जैसे कबीर और पलक का प्यार...!


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