चिंता
चिंता
संगीता एक अस्पताल में सफाई कर्मचारी थी।
करोना के फैलने से चारों तरफ लाॅकडाउन हो गया। सबकुछ ठप्प सा हो गया। जिन्दगी अचानक रुक सी गई थी।
वह एक कमरे के घर में किराए पर अपनी बेटी और पति के साथ रहती थी। उसका पति ड्राइवर का काम करता था। एक अक्सीडेंट में उसके दोनों पैर चले गए थे। इसलिए वह अब चल फिर नहीं पाता था।
मकान मालिक को उसके अस्पताल के काम से आपत्ति थी। अस्पताल से रोगाणुओं का संक्रमण फैलता था। अतः मकान मालिक ने संगीता को घर खाली कर देने की नोटिस दी थी। परंतु इस लाॅकडाउन के समय उसे दूसरा घर कहाँ मिलनेवाला था?
अस्पताल में काम भी बहुत बढ़ गया था, आजकल। लोग डर के मारे ज्यादा से ज्यादा की संख्या में परीक्षण हेतु अस्पताल में भीड़ लगाए हुए थे। कुछ कर्मचारी छुट्टी पर चले गए थे, इसलिए अस्पताल में स्टाॅफों की बहुत कमीं हो गई थी।
संगीता को अतएव रोज़ अपनी सफाई के सारे काम निपटाक
र मरीजों की सेवा हेतु आया का काम भी करना पड़ रहा था। वह भी राज़ी हो गई थी। पति के इलाज के लिए पैसों की उसे सख्त जरूरत थी।
उस दिन उसके अस्पताल में एक करोना का केस आया। परीक्षण के बाद उस रोग के होने की पुष्टि हो गई। मरीज को तुरंत आपात्कालीन व्यवस्था मुहैया करवाया गया। उस मरीज को अलग एक विशेष वार्ड में रखा गया।
संगीता सारा काम निपटाकर घर आई ही थी। उसे फोन आया कि तुरंत काम पर रिपोर्ट करो। वह मास्क लगाए पुनः ड्यूटी पर जाने हेतु तैयार हो गई।
सड़क बिलकुल खाली थी। कुछ सरकारी बसें केवल चल रही थी और दो चार प्राइवेट कारें। उसके जैसे गिने चुने लोग ही बैठे थे, बस में, जिनका काम पर जाना अत्यावश्यक था।
बस की खिड़की से उसने बाहर देखा तो उसके मन में एक चिंता सी कौंधी !
कहीं इन मरीजों की सेवा करते हुए उसे भी करोना हो जाए तो?
उसकी तीन वर्ष की छोटी बच्ची को कौन पालेगा?