चिकनी चट्टान
चिकनी चट्टान
ऑफिस से लौटकर ढेर सारा काम करने के बाद फिर ऑफिस का ही काम लेकर बैठ गई थी। घर सम्भालने से लेकर, मनु का ध्यान रखना और व्यस्त जीवन जीना। मुझमें पता नहीं कहाँ से इतनी उर्जा भर गई थी।
मैं खुद हैरान थी शायद मनु के एक्सीडेन्ट के बाद उसका चलने फिरने से लाचार हो जाना मुझे और मजबूत बना गया था।
"पूजा मै बहुत बोर हो रहा हूं तुम्हारा काम कब खत्म होगा, अब तो तुम मेरा ध्यान ही नहीं रखती हो बस काम काम किसी दिन ये कम्प्यूटर उठा कर बाहर फेंक दूंगा "कह कर मनु अपनी व्हील चेयर लेकर नाराज होकर अपने कमरे में चले गये।
जब से उन्हे पैरालिसिस का अटैक पड़ा था उनका ये ही हाल हो गया था। खुद को असुरक्षित व तन्हा महसूस करने लगे थे। मैं उनका ध्यान रखने की पूरी कोशिश करती। उन्हें किसी चीज की जरूरत न हो फिर भी वो दिन ब दिन रूखे होते जा रहे थे।
अधिकतर उनकी खरी खोटी सुनने की आदत तो थी ही आज भी सुनना कोई नया तो था नहीं। मैं वो चिकनी चट्टान बन चुकी थी जिस पर कुछ ठहरता नहीं था। ना पानी, ना कीचड़, ना धूल, बदलते मौसमों का कोई असर न था उस पर।
बस एक गहरी सांस लेकर चल दी कमरे की तरफ, "अरे नाराज क्यूं होते है सरकार, आपकी खिदमत में हाजिर हूं, बताइये क्या खायेंगे आप।" कहकर उनकी व्हील चेयर बालकनी में ले आई। वहाँ उन्हें अच्छा लगता था आखिर उनकी नर्स भी तो थी मैं ही।