Kumar Vikrant

Inspirational Others

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छबीली/शादी

छबीली/शादी

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'छत्तर दादा ये लो मेरे बेटे की शादी का कार्ड, देख लो खुद कार्ड ले कर आया हूँ इसलिए शादी में जरूर आना।' जमनादास ने शादी का कार्ड छत्तर दादा को देते हुए कहा। 

'कौन से बेटे की शादी कर रहा है जमनादास?' छत्तर दादा ने कार्ड लेते हुए पूछा। 

'रूप कुमार की दादा।' जमनादास ने जवाब दिया। 

'रूप कुमार जो मजनूँ मोहल्ले की लड़की छबीली के साथ भगा गया था? क्या छबीली से ही शादी कर रहे हो उसकी?' छत्तर दादा ने शादी का कार्ड एक तरफ रखते हुए पूछा। 

'कैसी बात कर रहे हो दादा? तुम भी लोगों की उड़ाई बातें करने लगे, मेरा बेटा रूप कुमार कभी किसी के साथ नहीं भागा। मैं उसकी शादी गंगादास की लड़की सखी से कर रहा हूँ।' जमनादास ने जवाब दिया। 

'सही कह रहा है तू मुझे लोगो की कही बात ऐसे ही नहीं माननी चाहिए। खैर तू शादी कर रूप कुमार की अच्छा हुआ ये छबीली वाला किस्सा झूठा है नहीं तो छबीली इस शादी को इतना आसानी से न करने देती।' छत्तर दादा बोला। 

'क्या औकात है छबीली की? अभी कल ही जेल में ठुंसवा देता हूँ देखता हूँ कैसे दिक्कत करती है शादी में।' जमनादास उठते हुए बोला। 

'जमनादास जब रूप कुमार का छबीली से कोई चक्कर था ही नहीं तो डरता क्यों है, जा अपने बेटे की शादी कर छबीली से क्यों डरता है?' छत्तर दादा हँसते हुए बोला। 

जमनादास ने छत्तर दादा को घूर कर देखा और बड़बड़ाता हुआ छत्तर दादा की घुड़साल से बाहर निकल गया। 

शादी

जब छत्तर दादा रूप कुमार की शादी में पहुँचा तो जबरदस्त पार्टी चल रही थी, चमकीले कपड़े पहने मेहमान विभिन्न पकवानों का मजा ले रहे थे। डी जे की जोरदार आवाज कानों को फाड़ रही थी। 

तभी गुलफाम नगर के सारे फालतू लोग छत्तर दादा के चरणों में साक्षात् दंडवत हो गए और छत्तर दादा के बैठने के लिए कुर्सी पेश की। 

'कुर्सी रहने दो छोकरों तुम्हें पता है मेरे पास ज्यादा देर ठहरने का टाइम नहीं है जाओ जमनादास को ढूंढ कर लाओ मैं शगुन देकर निकलता हूँ।' छत्तर दादा फुल्ली फालतू मक्खन लाल की और देख कर बोला। 

'दादा जमना दास तो दहेज में मिले धन से मस्त हुआ हवा में उड़ा फिर रहा है वो आज हाथ नहीं आने वाला।' मक्खन लाल हँसते हुए बोला। 

'तो रूप कुमार के पास ही चलो, उसे ही शगुन दे देते है।' छत्तर दादा बोला। 

अभी मक्खन कुछ बोलने ही वाला था कि अरे मार डाला, अरे मार डाला का शोर मच गया। 

छत्तर दादा ने गौर से देखा तो एक लड़की दूल्हे को जमीन पर घसीट रही थी और कुछ लोग उसे रोकने की कोशिश कर रहे थे। 

'अरे दादा ये तो छबीली है, इसी के साथ रूप कुमार भगा था, अब ये छबीली को छोड़ कर किसी और के साथ शादी कर रहा है इसलिए छबीली अपने हक के लिए लड़ रही है.........' मक्खन ने छत्तर दादा को देखते हुए कहा। 

'आ चल देखते है क्या हुआ.......' छत्तर दादा झगड़े वाली जगह की तरफ बढ़ते हुए कहा। 

'चलो दादा।' मक्खन छत्तर दादा के पीछे दौड़ते हुए बोला। 

गजब नजारा था दुबली पतली छबीली ने रूप कुमार का गिरेबान पकड़ रखा था और रोते हुए रूप कुमार को थप्पड़ पर मार रही थी। 

'ठहर जा छबीली बिटिया, ये क्या कर रही है?' छत्तर दादा ने रूप कुमार को छबीली के हाथ से छुड़वाते हुए कहा। 

'अंकल ये बहुत मक्कार है, इसने मुझ अनाथ के साथ प्रेम लीला की और अब किसी और से शादी कर रहा है। मैं ये शादी आसानी से नहीं होने दूँगी।' छबीली रोते हुए बोली। 

'क्यों बे छबीली से प्रेम करके किसी और से शादी क्यों कर रहा?' छत्तर दादा ने फटेहाल डरे हुए रूप कुमार से पूछा। 

'पापा के डर से दादा.......' रूप कुमार कांपते हुए बोला। 

'क्यों बे जमनादास क्यों जबरदस्ती शादी कर रहा है इसकी?' छत्तर दादा ने भीड़ के पीछे छिपे जमनादास को पास आने का इशारा करते हुए पूछा। 

'दादा ये हमारे परिवार का मामला है तू इसमें न उलझ, शादी का मजा ले और यहाँ से जा।' जमनादास तेजी से बोला। 

'क्या बोला बे, यहाँ एक लड़की अपने हक के लिए लड़ रही है और मैं शादी का मजा लूँ, जमनादास शर्म कर जब ये दोनों शादी के लिए राजी है तो तू इन दोनों के बीच क्यों रोड़ा बन रहा है?' छत्तर दादा गुस्से से बोला। 

'रोड़ा, मैं इनके बीच में रोड़ा नहीं बन रहा, रूप कुमार ये शादी अपनी मर्जी से कर रहा है।' जमनादास तैश में आकर बोला। 

'क्यों बे रुप कुमार क्या तमाशा है ये? तू अपने बाप के दबाव में शादी कर रहा है या अपनी मर्जी से?' छत्तर दादा ने रूप कुमार से पूछा। 

'दादा कभी मैं छबीली से प्रेम करता था लेकिन अब नहीं करता हूँ, तो अब मैं इससे शादी क्यों करूँ?' रूप कुमार जमनादास की तरफ देखते हुए बोला। 

'प्यार कोई खेल है क्या बे बिना पेंदी के लोटे? एक लड़की से व्यभिचार का मतलब जानता है न? नहीं जानता? तो सुन इसका मतलब है जेल यात्रा, अभी जेल जाने के लिए तैयार हो जा, अभी बुलाता हूँ पुलिस को।' छत्तर दादा रूप कुमार को देखकर गुस्से से बोला और पुलिस कप्तान को फोन लगाने लगा। 

'अंकल क्या कर रहे हो, प्रेम पर किसी का जोर नहीं होता, ये मुझसे अब प्रेम नहीं करता है तो क्या जबरदस्ती प्रेम कराऊँ इसे, पुलिस को मत बुलाइये.......मैंने जो करना था कर लिया अब यहाँ से जा रही हूँ।' कहते हुए छबीली वहाँ से जाने लगी। 

'तू सही कहती है बेटी, इश्क पर जोर नहीं होता, करने दो इस बेशर्म को किसी और से शादी, भगवान ने चाहा तो तुझे इससे भी अच्छा वर और घर मिलेगा। सुनो बे निकम्मों जाओ छबीली को उसके घर छोड़कर आओ.......जमनादास तू और तेरा लड़का दोनों निकम्मे हो ये ले शगुन अब मैं भी चलता हूँ।' कहते हुए छत्तर दादा शगुन का लिफाफा जमनादास के हाथ में ठूंसा और शादी के स्थल से बाहर निकल गया। 


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