हरि शंकर गोयल

Crime Inspirational Thriller

4.2  

हरि शंकर गोयल

Crime Inspirational Thriller

चौथा पति

चौथा पति

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"डार्लिंग सुनो" रूही कयामत ढाने वाले अंदाज में बोली "सुनाओ ना डार्लिंग, मैं तो सुनने के लिए ही बैठा हूं। तुम्हारी कोयल सी आवाज को कौन नहीं सुनना चाहेगा" ? श्याम भी रूही की आंखों में आंखें डालकर बोला। 

"देखो, कैसा मस्त मौसम है। बसंत ऋतु आ गई है। पेड़ पौधों पर नई कोंपलें आ गई हैं। सरसों के पीले फूलों की चादर ओढ़कर धरती कैसी दुल्हन की तरह सजी हुई है। पलाश के फूलों की लालिमा लेकर प्रकृति के गाल कैसे लाल हुए जा रहे हैं। पेड़ों के गले में बांहों के हार डालकर बेलें संयोग श्रंगार रस पीकर कैसी मदमस्त हो रही हैं। कोयल मीठे बोल सुनाकर "काम" की ज्वाला को और प्रज्ज्वलित कर रही है। ऐसे उद्दीप्त करने वाले मौसम में हम लोग इस सड़ी सी मुम्बई में क्या कर रहे हैं ? क्यों न हम किसी हिल स्टेशन पर चलें ? वहां बस हम और तुम होंगे और होगा अपना नया हनीमून"। रूही कातिल अंदाज में बोली 

"लगता है कोई श्रांगारिक लेखक की श्रंगार रस से ओतप्रोत कोई रचना पढ ली है इन दिनों में। तभी तो इतना रोमांटिक मूड हो रहा है हमारी हुस्न परी का। या फिर बसन्त के मौसम ने कामज्वर ला दिया है। वैसे भी यह मौसम मदनोत्सव मनाने का ही है। तो हम भी इस अवसर को हाथ से क्यों जाने दें ? चलो एक बार फिर से कहीं घूम आते हैं। रही बात हनीमून की , तो वो तो कब का मन चुका है रूही डार्लिंग" श्याम चौंकते हुए बोला 

"हनीमून कोई एक बार ही हो, ऐसा तो किसी शास्त्र में नहीं लिखा है ? जब मन करे, तब हनीमून मना लो। मेरी फिर से हनीमून मनाने की इच्छा हो रही है। क्यों ना इस बार हनीमून मनाने के लिए हम मनाली चलें" ? रूही श्याम से चिपकते हुए बोली 

"ओके डार्लिंग, आप कहें और हम ना जायें, ऐसे तो हालात नहीं। मैं आज ही बुकिंग करा लेता हूं" 

"आज नहीं, अभी कराओ मेरे सामने" रूही उसे बांहों में भरते हुए बोली 

"ठीक है बाबा, आपके सामने कराता हूं"। श्याम ने अपने ट्रैवलिंग एजेंट को फोन करके सात दिनों का ट्यूर फिक्स करने के लिए बोल दिया। उसके बाद श्याम जाने लगा तो रूही बोली "अपने काम का मेहनताना लिये बिना चले जाओगे क्या" ? कामुक अंदाज में रूही ने कहा 

"ओह ! मैं तो भूल ही गया था। भला अपनी मजदूरी कैसे छोड़ सकता हूं" ? श्याम भी अब शरारत पर उतर आया था 

"भुलक्कड़ कहीं के। तुम तो भूल ही गये थे। वो तो मैं एक भली मालकिन हूं जो किसी की "उधारी" नहीं रखती हूं। शुक्र मनाओ कि तुम्हें इतनी ईमानदार मालकिन मिली है जो याद दिलाकर मेहनताना दे रही है वरना तो लोग मेहनताना मांगने पर भी नहीं देते हैं "। और रूही हंसते हुए श्याम के ऊपर चढ़ गई। 

शाम को डिनर के समय श्याम ने मां , बहन और जीजाजी को बता दिया था कि वे सात दिन मनाली जा रहे हैं। वे भी चाहें तो कहीं का ट्यूर बना लें। पर मां ने मना कर दिया। 

मनाली पहुंच कर रूही और श्याम रंगरेलियों में मस्त हो गये। रूही और श्याम की शादी को अभी छ महीने ही हुए थे इसलिए रूही नई नवेली दुल्हन की तरह सज संवर कर यहां आई थी "हनीमून" के लिए। वह व्यवहार भी एक चुलबुली दुल्हन की तरह ही कर रही थी। 

"तो कल कहां चल रहे हैं हम" ? रूही ने श्याम से कहा 

"रोहतांग पास चलें" ? 

"नहीं, मेरा मन ट्रैकिंग का कर रहा है। नीचे व्यास नदी बह रही हो और हम किसी पहाड़ पर ट्रैकिंग कर रहे हों। क्यों है न धांसू आइडिया" ? 

"धांसू नहीं खतरनाक कहो। बहुत रिस्की है ये" श्याम ने गंभीरता से कहा 

"खतरों से खेलना ही तो जिंदगी है। और वो कहावत है ना कि जो डर गया वो मर गया। तो क्या इरादा है जनाब का" ? रूही ने अपनी बांहों के हार श्याम के गले में डाल दिये और आंखों में आंख डालकर पूछा 

"इस अदा पे कौन है जो कुरबान ना हो जाये। हमें तो डूबना ही है रूही डार्लिंग। या तो व्यास नदी में डूबेंगे और अगर वहां से बच गये तो फिर आपकी आंखों में डूबेंगे। पर अपना तो डूबना तय है" श्याम भी फुल मस्ती में आ गया था 

"तो फिर कल पहले ट्रेकिंग फिर आंखों में डूबिंग" रूही उसे छेड़ते हुए बोली 

"ट्रेकिंग के बाद भी आंखों में ही डूबेंगे क्या" श्याम के अधरों पे कुटिल मुस्कान थी। 

"अच्छा बाबा, जहां डूबना चाहो वहां डूब जाना। अब तो खुश ? पहले ट्रेकिंग तो कर लें"। रूही का कामुक अंदाज गजब का था। श्याम इसी अंदाज पर तो फिदा हुआ था। 

अगले दिन दोनों व्यास नदी के किनारे आ गये और वहां से पहाड़ी पर ट्रेकिंग करने लगे। बड़ा खतरनाक मामला था। जरा सा पैर फिसला तो सीधे नीचे व्यास नदी में जाकर रुकना था। पानी भी बर्फ जैसा। जिंदा बचने का सवाल ही नहीं था। 

रूही बीच बीच में उसे छेड़ रही थी और उसका ध्यान भटका रही थी। रूही की छेड़खानी और ध्यान भटकाने वाली कार्रवाई के कारण वही हुआ जो रूही चाहती थी। श्याम का पैर फिसला और वह धड़ाम से व्यास नदी में जाकर गिरा। पर हकीकत तो यह थी कि रूही ने उसे जानबूझकर नीचे गिराया था। गिरने के बाद श्याम का पता ही नहीं लगा। नदी किनारे पर रूही आई और चिल्लाई तो लोग इकठ्ठे हो गये। रूही ने कहा कि उसके पति को ट्रेकिंग का बहुत शौक था। वे यहां हनीमून मनाने आये थे। रूही ने श्याम को ट्रेकिंग करने से मना भी किया मगर श्याम नहीं माना और उसका पैर फिसल गया जिससे यह हादसा हो गया। 

पुलिस आई उसने गोताखोर बुलवाये मगर श्याम की लाश को ढूंढ नहीं पाये। रूही ने इस हादसे की खबर रोते रोते श्याम की मां को फोन पर सुनाई तो सब लोग अचंभित हो गये और दौड़े दौड़े मनाली आ गये। पुलिस ने और श्याम के घरवालों ने श्याम को ढूंढने की बहुत कोशिश की मगर वे लोग श्याम को ढूंढ नहीं सके। एक दिन अखबार में समाचार छपा कि मनाली से कोई 200 किलोमीटर दूर व्यास नदी से एक लाश मिली है। तब ये सब लोग वहां गये और उस लाश की शिनाख्त की तो वह लाश श्याम की ही थी। उसे लेकर सब लोग मुंबई आ गये और उसका अंतिम संस्कार कर दिया। 

श्याम की कंपनी का करोड़ों का कारोबार था। श्याम के बारहवें के दिन श्याम की मां ने घोषणा कर दी कि अब श्याम का कारोबार श्याम के जीजाजी आलोक संभालेंगे। इस बात पर रूही बिगड़ गई और कहने लगी

"कंपनी श्याम की थी और चूंकि वह उसकी पत्नी है इसलिए उस पर केवल और केवल उसका अधिकार है और किसी का नहीं" 

"श्याम मेरा बेटा था। जो मैं कहूंगी वो होगा क्योंकि मैं उसकी मां हूं"। मां ने रौब झाड़ना चाहा 

रूही दौड़कर कागजात ले आई। यह श्याम की वसीयत थी जिसमें सारी संपत्ति और कंपनी श्याम की मृत्यु के बाद रूही को देने की बात लिखी थी। इस वसीयत को देखकर तीनों श्याम की मां सरोज , श्याम की बहन रजनी और रजनी के पति आलोक , स्तब्ध रह गये। अब वे तीनों रूही की कृपा पर जिंदा रह सकते थे। 

उसी समय कंपनी का सबसे विश्वस्त मैनेजर धीरज आ गया। धीरज एक युवा मैनेजर था जो बहुत हैंडसम था। रूही ने धीरज से कहा "वसीयत के अनुसार मैं अब कंपनी की मालकिन हूं, अगर मेरे अंडर में रहकर तुम काम करना चाहो तो करो वरना दफा हो जाओ यहां से"। धीरज ने रूही के अंडर में काम करना स्वीकार कर लिया। 

रूही कंपनी जाने लगी। धीरज उसे कंपनी का काम सिखाने लगा। धीरज अभी तक कुंवारा ही था तो रूही को भी एक काम मिल गया। वह उसे प्यार करना सिखाने लगी। थोड़े ही दिन में रूही कंपनी के काम में और धीरज प्यार करने में पारंगत हो गये। 

एक दिन रूही ने धीरज को अपने चैंबर में बुलाकर उसके गले में बांहों का हार डालकर पूछा 

"मिस्टर मैनेजर , क्या तुम अपनी कंपनी की मालकिन के पति बनना स्वीकार करोगे" ? रूही ने धीरज की आंखों में डूबकर कहा 

"अगर ऐसा हुआ तो यह मेरा सौभाग्य होगा मैम" धीरज ने नत मस्तक होकर कहा 

"उंहु, मैम नहीं रूही कहिए" रूही ने उसका हाथ अपनी कमर में डाल लिया। 

"हां रूही, मैं तुमसे शादी करने को तैयार हूं" धीरज अपने होंठ रूही के होंठों के नजदीक ले आया 

"ठहरो अभी , पहले मेरे अतीत को तो जान लो धीरज" रूही सती सावित्री बनते हुए बोली 

"मुझे अतीत जानकर क्या करना है रूही ? मैं भविष्य में विश्वास करता हूं न कि अतीत में" और धीरज रूही के गले लग गया। 

" जैसी तुम्हारी मर्जी , फिर ना कहना कि मुझे अपना अतीत बताया क्यों नहीं"। रूही धीरज में समाते हुए बोली 

"नैवर। मैं कभी शिकायत नहीं करूंगा रूही" धीरज का धीरज अब जवाब दे गया था। 

थोड़ी देर के बाद जब दोनों नॉर्मल हुए तो रूही ने अपने वकील से शादी के कागजात तैयार करने को कह दिया। वकील ने आधे घंटे में कागजात तैयार कर लिये और उन दोनों को डी एम ऑफिस बुलवा लिया। दो गवाह पहले ही वहां पर तैयार थे। इस तरह उन दोनों का विवाह हो गया। धीरज रूही का चौथा पति बन गया। 

रूही धीरज को लेकर जब घर पहुंची तो श्याम की मां, बहन और जीजाजी धीरज को देखकर चौंके। रूही और धीरज के गले में वरमाला डली हुई थी। 

"ये सब क्या है और ये कौन है" ? मां चिल्लाई 

"चिल्लाओ मत। ज्यादा जोर से चिल्लाने से गला खराब हो जाता है। ये धीरज है , मेरा पति। आज से ये यहीं इसी घर में रहेंगे। जिस किसी को कोई प्रॉब्लम हो, वह घर छोड़कर जा सकता है। अब और कोई सवाल जवाब नहीं चाहिए मुझे। समझ गये ना सब लोग" ? 

रूही के कहने का अंदाज ऐसा था कि कोई कुछ नहीं बोला और सब लोग अपने अपने कमरों में चले गये। रूही ने वहीं लिविंग रूम में धीरज को किस करना शुरू कर दिया। धीरज रूही का यह व्यवहार देखकर आश्चर्य चकित था। एक डिक्टेटर औरत को उसने कभी देखा नहीं था। आज पहली बार ऐसी किसी औरत से पाला पड़ा था उसका। रूही के पास रूप , ग्लैमर, धन दौलत सब कुछ था। उसे और क्या चाहिए ? इसीलिए तो उसने रूही से विवाह किया था। और उसका बोल्ड, बिंदास, ओपन माइंड व्यवहार भी उसे बहुत पसंद आया था। रूही ने फ्लॉवर डेकोरेशन वाले को बुलवाकर अपना कमरा शानदार तरीके से सजवाया था। सुहागरात आखिर सुहागरात होती है वह चाहे चौथी ही क्यों न हो। और धीरज की तो ये पहली सुहागरात थी। उसे इस सुहागरात का पूरा आनंद देना चाहिए या नहीं ? माना कि सब कुछ रूही की मरजी से हो रहा था और आगे भी उसी की मरजी चलेगी पर धीरज की पहली सुहागरात तो शानदार होनी चाहिए ना। फिर रूही तो बहुत दिलदार औरत है , इस "नेक" काम में भला कंजूसी क्या बरतना ? धीरज तो जैसे जन्नत की सैर पर था। 

अगली सुबह जब रूही जगी तो उसने रजनी से आदेशात्मक अंदाज में कहा "जाओ, मेरे लिए एक कप चाय बनाकर ले आओ" 

"माई फुट ! मैं कोई नौकरानी नहीं हूं" रजनी बिफर पड़ी 

"गेट आउट फ्रॉम माई हाउस" रूही चिल्लाकर बोली "अगर इस घर में रहना है तो मेरे हिसाब से रहना होगा वरना फूटो यहां से" रूही का चेहरा तमतमा रहा था। धीरज रूही का रौद्र रूप देखकर कांप गया। 

"रजनी, जाओ और भाभी के लिए चाय बनाकर लेकर आओ" रजनी के पति आलोक ने रजनी को डांटते हुए कहा 

"आप भी उसी की साइड ले रहे हैं" ? रजनी आश्चर्य से आलोक को देखकर बोली 

"शट अप। आगे से ध्यान रखना। भाभी को कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए, समझीं" 

रजनी रोते हुए अपने कमरे में चली गई। 

"आप क्या देख रही हैं मां जी, अगर रजनी चाय नहीं बना रही है तो आप बनाइये। मैं पहले ही कह चुकी हूं कि मुझे ना सुनना पसंद नहीं है। इसलिए बुढिया, इस घर में रहना है तो मेरा कहना मानना होगा नहीं तो अपना बोरिया बिस्तर ले जाओ" रूही गाली गलौज पर उतर आई थी  

धीरज को रूही का यह व्यवहार पसंद नहीं आया मगर वह देख चुका था कि रूही कितनी बदतमीज औरत है। सरोज चाय लेकर आई और रूही ने मुस्कुरा कर चाय ले ली। 

"ऐसे ही रहोगी तो सुखी रहोगी" रूही मां जी से बोली। सरोज कुछ नहीं बोली। रूही तैयार होने के लिए बाथरूम चली गई। 

आलोक ने पलटी मार ली थी। उसने देख लिया था कि रूही से पंगा लेने से कोई फायदा नहीं है। उसने रजनी को भी खूब समझाया कि जब तक उसके पास कोई काम नहीं है तब तक रूही की बातें उसे माननी होगी। और कोई विकल्प नहीं है। रजनी बेचारी क्या करती ? जब पति निकम्मा होता है तब पत्नी को पीहर में अपमानित होना पड़ता है। यह बात रजनी को अच्छी तरह समझ में आ गई थी। आलोक अब रूही की चापलूसी करने लग गया था। 

दो चार दिन गुजरने के बाद रूही ने महसूस किया कि आलोक की नजरें उस पर हैं। रूही तो जवां मर्दों की बहुत बड़ी "कद्रदान" थी। उसे तो एक जवां मर्द और मिल रहा था उपभोग के लिए। वह मन ही मन खुश हुई। उसने आलोक का मुस्कुरा कर स्वागत किया। आलोक रूही के जाल में फंस गया। रूही ने उसे कातिल नजरों से देखा तो आलोक ने उसे बांहों में भर लिया। इतने में रूही ने शोर मचा दिया और आलोक में दो चांटे मारकर कहने लगी 

"इतने नीच निकलोगे आलोक, ये मुझे अंदेशा नहीं था। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की ? मुझे क्या समझा था आपने ? मैं कोई बाजारू औरत हूं क्या जो मुझे पीछे से पकड़ लिया था" ? रूही चंडी बनी हुई थी। 

इतने में सरोज, रजनी और धीरज वहां आ गये। धीरज ने भी दो थप्पड़ आलोक में मारते हुए कहा "नीच आदमी, तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी पत्नी पर हाथ डालने की" ? आलोक हक्का बक्का होकर रह गया था। उसने लाख सफाई दी कि "दावत" इसी ने दी थी मगर उसकी बात कौन माने" ? रूही ने उसे लात मारकर घर से निकाल दिया। आलोक अपने दोस्त के खाली मकान में चला गया। 

रूही को तो नये नये मर्द पसंद थे इसलिए वह एक दिन आलोक के घर पहुंच गई। आलोक उसे अपने घर देखकर चौंका और बोला  

ईश्वर ने भी आज मुझे ये क्या दिन दिखाया है

हुस्न खुद चलकर इस गरीब के घर पे आया है।। 

रूही बोली 

हुस्न खुद मरजी का मालिक है उसे जो छेड़े तो सजा है। 

उस दिन हलवा गर्म था , आज ठंडा है तो खाने में मजा है 

आलोक : पर दावत तो आपने ही दी थी और आपने ही शोर मचा दिया 

गर्म हलवा हमारे मुंह में भरकर पूरा मुंह ही जला दिया।। 

रूही : दावत केवल चखने की थी , पर आप तो खाना खाने बैठ गये । 

हमने जब थोड़ा त्रिया चरित्र दिखाया तो जनाब हमसे ऐंठ गये।। 

पर कोई बात नहीं, आज मैंने खुद को परोस दिया है। आओ, मुझे जी भरकर खाओ। 

आलोक इतना मूर्ख नहीं था। वह दूध का जला हुआ था इसलिए वह अब छाछ भी फूंक फूंक कर पीना चाहता था। उसने मोबाइल वीडियो मोड पर चालू करके एक ऐंगल पर रख दिया और पलंग पर लेट गया। बाकी का काम रूही ने कर दिया। जब वीडियो बन गई तो उसे रूही के मोबाइल पर भेज दिया और कहने लगा 

"उस दिन तुमने मुझे सबके सामने जलील किया था ना , अब मेरी बारी है तुम्हें जलील करने की। बोलो , क्या कहती हो ? या तो मेरे साथ शादी कर लो और मुझे हर चीज में आधा हिस्सा दे दो। फिर जिसके साथ चाहो गुलछर्रे उड़ा लेना या फिर जलील होने के लिए तैयार हो जाओ" 

आलोक की बात सुनकर रूही जोर,से हंस पड़ी। तुम मेरे बारे में जानते ही क्या हो आलोक ? मैं वो नागिन हूं जो "अपनों" को पहले डसती हूं। मैंने अपने तीनों पतियों को खुद मारा है। अब तेरी बारी है" रूही हिंसक होकर बोली। 

रूही का यह रूप देखकर आलोक चौंक गया। उसे रूही इतनी भयानक नहीं लगी थी जितनी वह खुद को बता रही थी। वह हकला कर बोला "तुम मुझे डराना चाहती हो लेकिन मैं डरूंगा नहीं। ऐसे कितने हथकंडे देखे हैं मैंने, समझीं" ? 

रूही अट्टहास करके हंसी। "अभी तूने देखा ही क्या है साले ? तू मुझे जानता ही कितना है ? अगर तू जानना ही चाहता है तो सुन ! मेरा पहला पति विवेक था। मैं उसे बहुत प्यार करती थी मगर एक दिन एक दुर्घटना में वह अपंग हो गया। उसके कमर से नीचे का हिस्सा बेकार हो गया था। अब वह मेरे क्या किसी भी औरत के काम का नहीं बचा था। मैं सारी उम्र उसे कैसे ढोती ? इसलिए, एक दिन मैं उसे व्हील चेयर पर बैठाकर अपनी बिल्डिंग की 11 मंजिल की छत पर ले गई और उसकी व्हीलचेयर को पीछे से धक्का दे दिया। वह सीधा जमीन पर गिरा और मर गया। मैंने इसे विवेक द्वारा अवसाद में आत्महत्या करना बता दिया और कहानी खत्म। 

मेरा दूसरा पति अभिषेक था। वह मुझसे कुछ ज्यादा ही प्यार करता था। तुम ये जानते ही होंगे कि मैं एक मर्दखोर औरत हूं। मुझे नये नये मर्दों से संबंध बनाना अच्छा लगता है। एक दिन अभिषेक कहीं गया हुआ था तो मैंने पीछे से एक लड़के को बुला लिया। अचानक अभिषेक आ गया और उसने हमें संबंध बनाते देख लिया। मजबूरी में मुझे अभिषेक को मारना पड़ा और हमने उसकी लाश रेलवे ट्रैक पर रख दी। उसके चिथड़े उड़ गये। वह भी आत्महत्या घोषित कर दी गई। उन दोनों से वसीयत पहले ही लिखवा ली थी इसलिए दोनों की संपत्ति बेचकर मेरे पास खूब बैंक बैलेंस हो गया। 

तब मेरे संपर्क में श्याम आया। भगवान ने मुझे हुस्न तो गजब का दिया ही है, दिमाग भी शातिर दिया है। यह एक रेयर कॉम्बिनेशन है जो हसीन औरतों में कम ही देखने को मिलता है। श्याम एक अरबपति आदमी था। उसे मैंने आसानी से फांस लिया और सारी संपत्ति वसीयत में अपने नाम लिखवा ली थी। मैं श्याम को मारना नहीं चाहती थी मगर श्याम ने मुझसे ज्यादा अपनी मां, बहन और आपको तरजीह देने की कोशिश की। बस, उसकी यही बात मुझे नागवार लगी और नतीजा आपको पता ही है। उसे मनाली में ले जाकर ट्रेकिंग करते वक्त धक्का देकर व्यास नदी में गिराकर मार दिया था। सब लोग देखते रह गए और यह हत्या एक दुर्घटना करार दे दी गई। इसके बाद तुम सब लोगों की हैसियत नौकरों जैसी हो गई। 

अब तुम मेरे से पंगा ले रहे हो तो अब तुमको भी मारना मेरी मजबूरी हो गई है। मैंने तुमको अपने अपराध इसीलिए तो बताये हैं कि अब तुम ऊपर जाकर श्याम को मेरे बारे में असलियत बता सको। अब तुम असलियत बताओ या ना बताओ तुम्हारी मर्जी , मैंने तो सब कुछ सच सच बता दिया है"। रूही एक तेज धार वाला चाकू ले आई और उसने आलोक की कलाई की सारी नसें काट दी और उसका मोबाइल लेकर उसे एक कमरे में बंद कर वहां से आ गई। 

अगले दिन उनके घर पुलिस आई तो उसने आलोक द्वारा आत्महत्या करने की बात बताई। रूही ने तुरंत कहा "आत्महत्या ही की होगी क्योंकि उसने एक दिन मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी। जब मैंने शोर मचाया तो सब लोग आ गये। इससे आलोक बहुत शर्मिन्दा हुआ था। शर्म के मारे उसने आत्महत्या कर ली होगी"। आलोक की हत्या का केस आत्महत्या मानकर बंद हो गया। 

अब तो रूही का सिक्का जम गया था। उसकी इच्छा के बिना घर में पत्ता भी नहीं हिलता था। उसकी तानाशाही खूब चल रही थी। 

एक दिन जब धीरज उसके बैडरूम में आया तब वह वार्डरोब में कुछ देख रही थी। जैसे ही धीरज आया वैसे ही रूही ने वार्डरोब बंद कर दिया। 

"क्या देख रही थी वार्डरोब में" ? धीरज ने पूछा 

"कुछ नहीं" रूही एकदम से अचकचा गई थी 

"कुछ तो देख रही थी तुम। मुझसे क्या छुपाना" ? 

"तुमसे क्यों छिपाऊंगी मैं" रूही झूठी हंसी हंसते हुए बोली 

"तो फिर दिखाओ न क्या छुपा रखा है इस वार्डरोब में" धीरज के प्रश्न बढते ही जा रहे थे 

"अरे, हम औरतों की बहुत सारी प्राइवेट चीजें होती हैं। तुमको उनसे क्या मतलब है ? बस, वही हैं इसमें" रूही वार्डरोब के सामने डटकर खड़ी हो गई जिससे धीरज उसे खोल न सके। 

"अच्छा बाबा मत दिखाओ। अब खुश" ? धीरज ने हथियार डाल दिये। रूही ने चैन की सांस ली। 

धीरे धीरे श्याम की मां सरोज और उसकी बहन रजनी पर रूही के अत्याचार बढते गये। उनको दाने दाने को मोहताज कर दिया था। सरोज की दवाइयों के पैसे देने से उसने इंकार कर दिया था रूही ने। इन सबको देखकर धीरज के मन में सरोज और रजनी के प्रति प्रेम उमड़ आया। उसने चुपके से रजनी और सरोज को दवाई और अन्य खर्च के लिए दस हजार रुपए दे दिये। इससे उसे आत्मिक संतोष हुआ। उसने दोनों से कह दिया कि इन दस हजार रुपयों के बारे में रूही को ना बतायें। उसने आगे भी मदद करने का आश्वासन दे दिया था। रूही ये सब माजरा छुपकर देख रही थी। उसे धीरज पर बहुत गुस्सा आ रहा था। 

"लगता है कि धीरज के दिन पूरे हो गये हैं"। रूही मन ही मन बड़बड़ाई। पर उसने धीरज से काम लेने की सोची। 

कंपनी बड़ी तेज गति से बढ रही थी। धीरज की मेहनत रंग ला रही थी। कंपनी को और बढिया कर्मचारियों की जरूरत थी। धीरज अब कंपनी का वाइस प्रेसीडेंट बन गया था। अब कंपनी को एक सी ई ओ की आवश्यकता थी। धीरज ने अपने एक परिचित किशोर को कंपनी का सी ई ओ नियुक्त कर दिया। किशोर को धीरज ने रूही से मिलवाया 

"ये हैं कंपनी की प्रबंध संचालिका रूही जी और ये कंपनी के नये सीईओ मिस्टर किशोर हैं। आज ही ज्वाइन किये हैं" 

किशोर नाम के अनुरूप "किशोर" ही था। हरफनमौला। सुंदर और बलिष्ठ। किशोर को देखकर रूही की "भूख" जाग गई। आज एक नई "डिश" जो आई थी जिसे देखकर ही रूही की लार टपकने लगी थी। मन ललचाने लगा था रूही का। उसने प्लान बना लिया था कि आज तो डिनर "किशोर" का ही किशोर के घर करना है। अपनी योजना के अनुसार रूही ने धीरज को घर जाने के लिए कह दिया और यह भी कहा कि आज ऑफिस में उसे थोड़ा टाइम लगेगा इसलिए वह खाना खाकर सो जाये। धीरज आज्ञाकारी बच्चे की तरह घर आकर खाना खाकर सो गया। 

उधर रूही किशोर के घर चली गई और उसने डिनर में "किशोर" को ही निगल लिया। किशोर को रूही का यह व्यवहार बड़ा आश्चर्य जनक लगा था लेकिन मर्दों की आदत होती है कि वे कभी "ना" नहीं कहते हैं। फिर जब एक हुस्न परी उसे दावत दे रही हो तो वे नामर्द कैसे बन सकते हैं ? मर्दानगी का प्रदर्शन करना पुरुषों का बड़ा शगल है। औरतें अपनी खूबसूरती और मर्द अपनी मर्दानगी दिखाने को हरदम लालायित रहते हैं। किशोर की मर्दानगी रूही को भा गई। वह धीरज से पीछा छुड़ाना भी चाहती थी इसलिए उसने किशोर से कहा 

"मेरे साथ शादी करना चाहोगे ? रोज ऐसे ही मजे कराऊंगी तुम्हें"। रूही ने बांयी आंख मारकर कहा 

"पर आप तो शादीशुदा हैं फिर अपनी शादी कैसे होगी" ? 

"तुम इतना मत सोचो। तुम तो ये बताओ कि मेरे साथ शादी करोगे ना" ? 

"यह मेरा सौभाग्य होगा, मैम"। किशोर ने उसे गोद में उठा लिया 

"मैम नहीं, रूही कहो"। रूही ने अपने अधर किशोर के अधरों से सटा दिये। 

"रूही" किशोर की सांसें रूही के चेहरे से टकराने लगी 

"किशोर" एक बार और प्यार की बारिश करो ना। आज रात मैं तुम्हें सोने नहीं दूंगी" वह मुस्कुरा दी 

"आज की इस बेशकीमती रात को सोना कौन चाहेगा रूही ? अगर सामने हुस्न बाहें फैलाकर बैठा हो तो किस मर्द को नींद आयेगी भला" ? किशोर कामावेश में उन्मत्त हो चला था। उन दोनों के लिए वह रात अविस्मरणीय बन गई। सुबह रूही अपने घर आकर सो गई और दिन भर सोती रही। 

जब वह जागी तो अपनी पांचवीं शादी की तैयारी करने लगी। पांचवी शादी में सबसे बड़ी बाधा उसका चौथा पति "धीरज" ही था। उसके मरने के बाद ही शादी हो सकती थी। अब धीरज को मरना पड़ेगा क्योंकि रूही ने ऐसा सोच लिया था। रूही कुछ सोचे और ऐसा ना हो, यह संभव नहीं था। रूही योजना बनाने लगी। 

"रजनी ! रजनी" ! रूही जोर से चिल्लाई  

"क्या है भाभी" ? रूही से रजनी बुरी तरह डरने लगी थी। अब और कोई सहारा भी नहीं था उन दोनों का। 

"आज खाने में क्या बनाओगी" ? 

"जो आप कहें भाभी" वह डरते डरते बोली 

"धीरज को छोले भटूरे बहुत पसंद हैं, वही बना देना" और यह कहकर वह अपने कमरे में चली गई। रजनी छोले भटूरे बनाने लग गई। 

रूही बन संवर कर जब लिविंग रूम में आई तब तक छोले बन चुके थे और भटूरे बनने बाकी थे। 

"रजनी" रूही ने जोर से आवाज दी 

"जी भाभी" रजनी दौड़ी दौड़ी आई 

"मेरी आलमारी से क्लिचर ला देना जरा। ये बाल उड़ रहे हैं। खाने में आ सकते हैं"। 

"जी भाभी" रजनी क्लिचर लाने चली गई। रूही छोले देखने के बहाने किचन में चली गई। 

"मिला क्या" ? रूही जोर से चिल्लाई 

"ढूंढ तो रही हूं भाभी" डरते डरते रजनी बोली 

"एक छोटा सा काम नहीं होता है आपसे ? रहने दो , मैं ढूंढकर लगा लूंगी। आप तो खाना बना लो और धीरज को सर्व कर दो" फिर वह धीरज को आवाज देने लगी "धीरज , खाना खा लो" 

"अभी आया" धीरज फटाफट आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया। रजनी ने छोले भटूरे लगा दिये और धीरज बड़े प्रेम से खाने लगा। खाना खाते खाते अचानक धीरज कुर्सी से गिर पड़ा और गला पकड़ कर बैठ गया। वह दर्द के मारे कराहने लगा। 

"अरे क्या हुआ बेटा" ? सरोज तड़प उठी 

"क्या हुआ भैया" रजनी बोली 

"लगता है तुमने धीरज के खाने में जहर मिलाया है" रूही गरज उठी 

"ये क्या बकवास कर रही हो तुम। इन्हें पहले अस्पताल ले जाओ। ये बातें बाद में कर लेना" 

"ये अस्पताल बाद में जायेंगे पहले तुम दोनों मां बेटी जेल जाओगी" रूही फुंफकार उठी। मेरे पति को जहर दिया है तुमने। 

"हमने कुछ नहीं किया है। हम पर मिथ्या दोष मंढ रही हो तुम। एक दिन तुम्हारा अंत बहुत बुरा होगा रूही" सरोज बोली। 

इतने में रूही ने पुलिस को फोन मिला दिया "सर मेरे पति को मेरी सास और ननद ने जहर देकर मार डाला है सर , प्लीज आप जल्दी आइए " रूही भयभीत आवाज में बोली 

थोड़ी देर में पुलिस आ गई। धीरज जमीन पर पड़ा था। 

"देखिए सर, मेरे पति को मार डाला इन दोनों डायनों ने। आप इन्हें गिरफ्तार कर लो सर" रूही बदहवास होकर चिल्लाने लगी। 

"खाना किसने बनाया" ? पुलिस इंस्पेक्टर ने पूछा 

"रजनी ने" रूही बोली 

"सर्व किसने किया" ? 

"रजनी ने और किसने" ? रूही बोली 

"अरेस्ट हर" इंस्पेक्टर ने सिपाहियों को आदेश दे दिया 

इतने में एक आवाज आई "रुक जाओ अभी" वह आवाज किशोर की थी। सब लोग चौंक पड़े। 

"इंस्पेक्टर, पहले यह वीडियो देख लो फिर कोई गिरफ्तारी करना" किशोर बोला 

इंस्पेक्टर ने वह वीडियो देखा तो वह सन्न रह गया था। वीडियो में रूही छोलों में जहर मिला रही थी। इतने में धीरज उठ खड़ा हुआ 

"हां इंस्पेक्टर साहब, जहर रूही ने मिलाया था। इसकी मुझे भनक लग गई इसलिए मैंने छोलों से भटूरे खाये ही नहीं थे , बस जहर की एक्टिंग करने लगा। दरअसल किशोर ने मुझे पहले ही चेता दिया था कि मेरी जान को खतरा है इसलिए मैंने किशोर को घर ही बुला लिया था और छुपकर रूही पर निगाह रखने को कह दिया। किशोर ने रूही को जहर मिलाते हुए देख लिया और उसका वीडियो भी बना लिया। आप इसकी वार्डरोब में देखिये इंस्पेक्टर साहब, वहां इसने कुछ छिपा रखा है" 

इंस्पेक्टर ने जब वार्डरोब की तलाशी ली तो उसमें चार पुरूषों की फोटो मिली। दो को तो सब लोग जानते थे। एक श्याम और दूसरी धीरज की फोटो थी। मगर बाकी दोनों फोटो के बारे में जब रूही से पूछा तो उसने बताया 

"ये मेरा पहला पति विवेक है। इसे छत पर से धक्का देकर मार दिया था मैंने। यह दूसरा पति अभिषेक है जिसे रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया था। तीसरा श्याम है जिसे व्यास नदी में डुबो दिया था और चौथा धीरज है जिसे आज जहर खाकर मरना था, मगर बच गया साला"। रूही के स्वर में नफरत ही नफरत थी। 

पुलिस रूही को ले गई। धीरज को मां ने ढेरों आशीर्वाद दिये कि उसकी चालाकी के कारण निर्दोष रजनी सजा पाने से बच गई और एक कातिल हसीना धर ली गई। चौथे पति ने एक षड्यंत्रकारी पत्नी का भण्डाफोड़ कर दिया। 


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