Gulafshan Neyaz

Abstract

5.0  

Gulafshan Neyaz

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चालीसवां

चालीसवां

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मुन्नी के हाथों में मिठाई देख कर मैं चौंक गई। अरे मुन्नी मिठाई किस चीज की बअजी आज दादा का चालिश्वा है। वो अच्छा मैंने धीरे से हंस दिया।

तभी मैं घर से बाहर निकली तो देखा बरहेता वाली चाची मुँह लटकाये बैठी होए थी मैंने पूछा क्या होया चाची बहुत उदास लग रही है आप क्या बताओ ब्वा बुरहावा का चालीसवा है। घर मे पैसा नहीं है चाचा कई दिन से काम पर नहीं गए पर चालीसवां में हिस्सा देना पड़ेगा ना सोच रहे है की इस बकरियाँ को बेच देशाम होते होते उनके बेटों के छप्पर पर माइक बांध दी गई। घर की औरते अच्छे साफ कपड़े बेटों ने नाहा धुला के उजले कुरता पैजामा पहन लिया बच्चो मे अजीब उत्साह था ऐसा लग रहा था जैसे बच्चो के लिए ईद हो गई हो

कंही शकरपारे बन रहे थे। तो कंही बिरयानी और सलाद का इंतज़ाम हो रहा था। देख के ऐसा लग रहा था जैसे बारात आने वाली हो। जेनरेटर की आवाज़ और चमकदार रोशनी से पुरा मोहल्ला गुलज़ार हो गया आज सकुर दादा का चालीसवां था। आज उनको मरे पूरे चालीस दिन हो।

सकुर दादा हमारे परोसी थे। वो मेरे गाँव के नहीं कंही बाहर से आकर बसें थे गाँव मे मजदूरी करते पाऊँ से लंगड़े थे। उनकी बीवी का रंग बहुत काला था उनके सर पर गोलोरी था इसलिए लोग उसे गलोरी वाली कहते उनका असली नाम मुझे भी नहीं पता उनके सात बेटे और एक बेटी थी। बेटे गाँव मे मजदूरी करते बेटे की शादी होती गई और वो अलग होते गये और अपने गिरहसती मे उलझते चले गए छोटा बेटा कुमारा था तो गलोरी वाली दादी का इन्तेकाल हो गया। उसके बाद छोटे बेटे की भी शादी हो घिरसती मे वो भी उलझ गया वक़्त बदलता गया सकुर दादा अब जईफ हो गए अब उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया अब वो पिसाब पैखाना बिस्तर पर करने लगे तो बेटो ने आपस मे बाप की जिम्मेदारी बाट ली पर चार बेटों ने उनके खिजमत की जिम्मेदारी नहीं ली पर तीन बेटों ने ऐ जिम्मेदारी ले ली पर वो बस दिखावे के लिए ही लग रहा था। ज़ब उनके बिरधा पैंनसन के पैसे या कोई और फंड का पैसा आता तो उसपर सारे बहु बेटा पोता पोती सब हक जमाते। पर उनके देखभाल की जिम्मेदारी उन्हें याद नहीं रहती। छोटी बहु खाना ऐसे रखती जैसे लग रहा हो की फेक के जा रही हूँ।

बुढ़बा का पेट इतना बरका है मिनट मिनट पर खाता है पुरा कपड़ा घिनाता है जिस खाट पर रहते वंहा से भी बदबू आती। समाज के सरमो हया के चलते हफ्ता दो हफ्ता पर कोई उनका बिस्तर बदल देता बेचारे हमेशा पाओ के दर्द से परेशान रहते पर उनको कोई डॉक्टर के पास नहीं ले जाता ज़ब बहुत बीमार होते तो डॉक्टर के पास ले जाते अब उन्होंने दुसरो के हाथ से खाना शुरु कर दिया। कभी कभी रात मे उनकी दर्द भरी आवाज़ सुन के आस पड़ोस मे सोया नहीं जाता मै तो अपना पंखा तेज़ कर देती ताकि उनकी आवाज मेरी कानो मे ना आइए कैसे बेटे है या अल्लाह इनको कुछ तो समझ दीजिये। हमलोगो ने उनके घरवालों को समझाने की कोशिश की तो वो हमसे ही फारा बांध कर लड़ने लगे।

कैसी बात करो हो तू इतना इलाज बात करिये होए अब वो ऐसे ही चिल्लावत। मैंने चुप होने मे ही अपनी भलाये समझी। बेचारे के चेहरे पर बदन पर मक्खी भिन भिनाती और मल मूत्र के गंध आते पर कोई उनकी सुध नहीं लेता सात बेटों का बाप का जिसको गर्व प्राप्त था उसकी या दुर्दशा देख समाज के लोगो के लिए सबक था जो बेटों को ही सब कुछ समझते है कुछ दिनों बिस्तर पर परे रहने के बाद उनका इन्तेकाल हो गया बेटे बहू पोता पोती खूब चिल्ला चिल्ला के रो रहे थे गाँव और आस पड़ोस के लोग सब उनको तस्सल्ली दे रहे थे। आज उनको मरे पूरे चालीस दिन हो गए। आज उनका चालिश्वा था। जो उनके बेटे बड़े धूम धाम से मना रहे थे खूब खर्चा कर के खूब फातिया नयाज़ हो रहा था। कोई जलेबी तो कोई खीर। अगर यही खर्चा वो अपने बाप की देख भाल पर करते उनके खाने पीने पर करते तो बहुत अच्छा होता। दिखावे के लिए चालीसवां करना नहीं पड़ता और मुझे लिखना नहीं पड़ता।


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