चालाकी
चालाकी
श्याम जी नई दुल्हन को विदा कराकर अपने घर ले आए थे। दूल्हन के पहुंचने से पहले ही कन्या पक्ष से मिले उपहार के सामान को लेकर वह टेम्पो उनके घर पहुँच चुका था, जिसका किराया भी दुल्हन के पिता ने चुकाया था। एक बड़े से ट्रक की बजाय एक छोटे से टेम्पो को अपने घर की तरफ आता देख दूल्हे की माँ सहित कुछ करीबी रिश्तेदारों का दिमाग चकराने लगा। पुलिस अधीक्षक के पद पर कार्यरत एकलौते बेटे की शादी में महज एक डबल बेड, एक मीडियम साइज की फ्रीज, सस्ता-सा सोफा सेट , एक पतली चद्दर से बना संदूक और कुछ बर्तन मिलेंगे, ये तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था।
श्याम जी के घर लौटते ही श्रीमती जी ने अपने मन का गुस्सा उन पर उड़ेल दिया। श्याम जी बहुत ही व्यवहारकुशल और समझदार इंसान थे। मुस्कुराते हुए बोले, "गुस्सा मत करो। सबके सामने दिखाते हुए 8-10 लाख रुपये के सामान लेने से बेहतर है तीन एकड़ जमीन ले लिया जाए, जो कि कम से कम 5 करोड़ की होगी, हमारे समधी जी ने अपने बेटी और दामाद के नाम रजिस्ट्री कर दी है। ये देखो रजिस्ट्री के पेपर।"
"क्या ? आपने मुझे पहले से क्यों नहीं बताया ?" श्रीमती जी का मुँह खुला का खुला रह गया था।
"छोडो, ये सब। अब अपना ये सड़ा हुआ मूड ठीक करो और हाँ, ये बात अपने तक ही सीमित रखना। अपनी बहन और मम्मी-पापा को भी मत बताना।" श्याम जी ने समझाते हुए कहा।
