चाहत
चाहत
नए साल की नई उम्मीद के सहारे ही तो जी रहे हैं राघव और रचना जब चालीस पैंतालीस उम्र के पड़ाव पर पहुँचते हैं तो रात के सोते समय भी वे दोनों प्यार भरी बातें नहीं करते हैं ।
राघव ने कहा — रचना गैस बंद किया है न अलार्म लगाया है कि नहीं कल रवी और सुंदर को जल्दी उठना है ठीक है ।
रचना भी बिस्तर पर लेटकर कहती है जी मैंने सब कर दिया है आपने चश्मा फ़ोन स्कूटर की चाबियाँ सब एक जगह रख लिया है ना नहीं तो सुबह घर सर पर उठा लोगे कि बच्चों को छोड़ने जाना है देरी हो रही है ।
बस इतनी सी बातें होती हैं दोनों के बीच वे दोनों भी सुबह से थके होते हैं तो सो जाते हैं । यह सब चलता रहा राघव और रचना के दोनों बच्चों ने अच्छे नंबरों से इंजीनियरिंग पास किया और एम एस करने के लिए अमेरिका चले गए थे । यह माता-पिता की चाहत भी थी कि दोनों बाहर जाकर आगे की पढ़ाई पूरी करें । माता-पिता के लिए ज़िंदगी का यह एक सुहाना सफर था । जो पूरा हो गया था ।
अब घर में सिर्फ़ राघव और रचना ही रहते हैं क्योंकि बच्चे दोनों बाहर पढ़ रहे हैं । अब दोनों पचास पचपन के उम्र की पड़ाव पर पहुँच गए थे । हर रात की तरह अभी भी रात को सोने से पहले दोनों एक-दूसरे को उनकी ज़िम्मेदारी की याद ज़रूर दिला देते हैं । हाँ अब उनके कामों में थोड़ा सा बदलाव आया है जैसे राघव कहते हैं कि गैस सिलेंडर बंद किया दही जमाया बी पी और शुगर का टेबलेट लिया है ना ।
रचना कहती है जी मैंने ले लिया है आप भी ले लीजिए साथ ही चश्मा और फ़ोन अपने पास रख लिया है ना ।
राघव सोने से पहले ज़रूर पूछ लेते हैं कि बच्चों का फ़ोन आया था क्या तुमने पूछा है ना बच्चे इस बार त्योहार पर इंडिया आ रहे हैं । वैसे भी उन्हें देखे हुए दो साल हो गए हैं ।
रचना ने कहा कि जी आ तो रहे हैं पर त्योहार पर नहीं । उनकी पढ़ाई ख़त्म हो गई है और वे इस साल इंडिया आ रहे हैं क्योंकि दोनों को अच्छी कंपनी में नौकरी भी मिल गई है । मैं सोचती हूँ कि इस बार उनके इंडिया आते शादी करा देते हैं ।
राघव ने कहा बहुत अच्छी बात है कल ही हम उनसे भी एक बार बात कर लेते हैं उनसे भी एक बार पूछ लेते हैं शादी के बारे में उनकी रज़ामंदी है या नहीं है ।
बच्चों ने जब शादी की बात सुनी तो माता-पिता से कहा कि आप ही हमारे लिए लड़कियों को सेलेक्ट कर दीजिए । पति पत्नी बहुत खुश हो गए थे कि इतने अच्छे संस्कारी बच्चे हैं ।
अपने ही बिरादरी में लड़कियों को देख कर उन्हें भी दिखाया बच्चों को भी लड़कियाँ पसंद आ गई थी । दोनों ने पहले ही कह दिया था कि हमारे पास ज़्यादा समय नहीं है आते ही शादी कर लेंगे । चट मँगनी पट ब्याह के समान दोनों अमेरिका से आए और पंद्रह दिनों में अपनी पत्नियों के साथ वापस चले भी गए थे ।
अब राघव और रचना साठ पैंसठ की उम्र की पड़ाव पर पहुँच गए थे । अब बी पी शुगर के साथ घुटनों के दर्द का टेबलेट भी जुड़ गया था ।
अब भी दोनों एक-दूसरे को टेबलेट की याद दिलाना नहीं भूलते हैं । रचना कहती है कि अपना चश्मा फ़ोन रख लिया है ना कल से सुबह की सैर पर भी जाना है ।
राघव-हाँ मैंने सब रख लिया है बच्चों का फ़ोन आया है क्या? हम वहाँ नहीं जा सकते हैं और वे नहीं आते हैं । पोता पोती को स्काइप में ही अब तक देखा है उन्हें अभी तक गोद में भी नहीं लिया है ।
रचना कहती है कि - जी अब तो वे आठ दस साल के हो गए हैं । कल दोनों भाई मिलकर कहीं घूमने गए थे वहीं से दोनों ने फ़ोन किया था उसी समय पोता पोती ने भी हेलो कहा था ।
राघव ने कहा कि- मुझे तो नींद नहीं आती है रचना बच्चों के चेहरे आँखों के सामने आते हैं । हमारा फिर कब उन लोगों से मिलना होगा मालूम नहीं ।
रचना ने कहा कि - आप क्या सोचते हैं कि मुझे नींद आती है जी नहीं रात बीत जाती है पर नींद आँखों से कोसों दूर भाग जाती है ।
हमने शायद ग़लत किया है ना बच्चों को उतनी दूर भेज कर हम अपनी चाहत पूरी करना चाहते थे इसलिए उन्हें भेज दिया था । अब लगता है कि गलती हो गई है हमसे उन्हें नहीं भेजना था ।
राघव कहते हैं कि हाँ तुमने ठीक कहा है कम से कम एक बेटे को तो यहाँ इंडिया में ही नौकरी करने के लिए कहते तो अच्छा था ना ।
रचना को हँसी आती है हँसते हुए कहती है जैसे वे हमारी बात सुनकर रह जाते थे । बड़े भाई के पीछे पीछे छोटा तैयार बैठा था आपको याद है ना वह तो वीसा थोड़ा सा देर से आया था तो बेचैन हो गया था ।
राघव अब सिर्फ़ उम्मीद बाकी है कि आने वाले नए साल में शायद वे आ जाए और हम सब एक बार तो ज़रूर उनसे मिल लें।
दोनों को बातों बातों में पता ही नहीं चला था कि सुबह हो गई है और दूर रेडियो से गाना बज रहा था “वो सुबह कभी तो आएगी।“