चाहत
चाहत


अमृतकौर अपना विगत जीवन याद कर रही है। कैसे सरदार जी के कदम रखते ही उनका जीवन खुशियों से भर गया था । शादी के बंधन में बंधने के बाद वे सदैव साया बन कर साथ रहे। कभी अकेले नहीं छोड़ा। रिश्तेदार, यार दोस्त, सगे संबंधियों के यहाँ कोई भी प्रसंग होता सदैव साथ लेकर जाते। सिर्फ गैराज ही एक ऐसी जगह थी, जहां वे अकेले जाया करते थे।
बच्चों की स्कूल की छुट्टियां आते ही मैं अपने मायके आती। सरदारजी और सास भी साथ ही आते। हफ्ते दस दिन जितने भी समय के लिए रहना चाहती कभी मना नहीं करते।
मेरी सहेली की शादी थी। बाराती बनकर सरदारजी मेरे गांव आये थे। मुझे देखा और पहली नजर में प्यार हो गया। मन ही मन मुझे हम सफर बनाने का फैसला कर लिया।
कुछ दिन बाद मेरी सास घर आई और शगुन देकर चली गई। चट मंगनी पट ब्याह हो गया । लेन देन की बात पर मेरी सास ने कहा" संस्कारी कुड़ी ही सबसे बड़ा धन है। हमें और कुछ नहीं चाहिए"
सास से बेटी सा प्यार, सरदारजी से अर्धांगिनी का मान मिला। मैं घर गृहस्थी में इतनी खो गई कि पीहर जाने का ख्याल ही नहीं आता। एक एक करके तीन बेटियां हमारे जीवन में आईं। सरदार जी ने तीनों बेटियों को गले लगा हर बार यही कहा "सरदारनी जेड़ी रब नी महर, बेटा बेटी दोनों वहीं से आते हैं"। उन्होंने बेटियों को खूब लाड़ प्यार दिया।
जब छोटी का जन्म हुआ 'हम सब बहुत दुखी थे। बहनों को भाई, दादी को पोता और मुझे बेटा चाहिए था। किंतु सरदारजी ने छोटी को गले लगा कहा था "वाह! रब जी कित्ती सोनी कुड़ी मैनू दित्ती है", दिल छोटा न कर ओए सरदारनी ,कोई मलाल न कर पगली, भगवान का लख लख शुक्रिया अदा कर, तैनू औलाद बख्शी। कुछ लोग जिंदगी भर औलाद को तरसते हैं। तू भाग्यशाली है, तुझे तीन तीन सुंदर बेटियां मिली हैं।
छोटी उनकी बहुत लाड़ली थी। उसके सारे काम वो खुद करते थे। सोती भी उन्हीं के साथ थी। रोज नई नई कहानी सुनती। मैं बीमार हुई अस्पताल दाखिल हुई। सरदार जी को मेरी तीमारदारी के लिए अस्पताल में साथ रहना पड़ा। छोटी को दादी के साथ सोना पड़ा। दादी ने उस रात छोटी को परी की कहानी सुनाई और कहा तुम भी परी हो ,हर सुंदर परी को एक बार लड़की बन कर धरती पर आना ही पड़ता है । उस रात से वह दादी के साथ ही सोने लगी।
हर त्योहार दोनों परिवार साथ ही मनाते। मेरी सास और मां दोनों सहेलियां जैसी थी। दोनों मिलकर बहुत चाव से ढेर सारी मिठाइयां बनाती, हम सब खाते, गैराज में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को भी मिठाई बांटी जाती।
सरदारजी का मेरी सास के प्रति अति प्यार था। बिना कुछ कहे उनके मन की हर बात जान लेते थे। उन्हें खुश रखते, सदा उन्हें खिला कर ही खाते। महिलाओं के प्रति सरदारजी का रवैया दूसरे पुरुषों से अलग था। जब कभी मैं बीमार होती घर की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेते। सास को कोई काम नहीं करने देते।
मैं मां पिता की इकलौती संतान थी। सरदार जी ने मेरे मां पिता को कभी अकेले नहीं छोड़ा। परिवार का हिस्सा बना कर रखा। पिताजी को कभी भी बेटे की कमी नहीं होने दी। सोचते सोचते उनकी आंखों से अश्रु बहने लगे।
बेटियां मां को सांत्वना दे रही हैं। पिता के अवसान से चेहरे मुरझा गये हैं। पिता के चले जाने से सबसे बड़ा सदमा मां को पहुंचा है। सही है पत्नी के जाने से पति और पति के जाने से पत्नी का संसार सूना हो जाता है। सरदार अमरजीत का अवसान हो गया है। सरदारनी अमृतकौर नम आंखें शोक सभा में बैठी हैं। बेटियां इर्द-गिर्द बैठी हैं।
बेटियां चिंतित हैं । मां अकेली हो गई है। कैसे रह पायेगी पिताजी के बिना। जीवन के पचास साल दोनों ने साथ गुजारे, एक दिन के लिए भी कभी एक दूजे से अलग नहीं रहे।
लोगों के जाने के बाद अमृतकौर ने तीनों बेटियों की मौजूदगी में सरदार जी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा "बच्चों यूं तो हर पत्नी के लिए उसके पति अहम होते हैं,किंतु तुम्हारे पिता कुछ खास थे। हमारे घर में तीन बेटियां थीं उस जमाने में जब समाज में बेटों को बहुत ज्यादा अहमियत दी जाती थी। सरदारजी ने कभी बेटा न होने का अफसोस नहीं किया। मुझे सदैव यही कहा "सरदारनी तुम भूल कर भी ये ख्याल दिल में मत लाना कि हमारे बेटा नहीं है, मेरी बेटियां ही मेरे तीन बेटे हैं। इन्हें खूब अच्छी परवरिश दो ,इन्हें बेटों की ही तरह गांव के स्कूल में पढ़ने भेजो"। अपने स्वभाव के कारण वे पति से देव पुरुष बन गए।
तुम्हारी दादी कभी कभार कह देती काश! अमरजीत को एक बेटा होता । सरदारजी कहा करते "अरे मां बेटियां भी तो भगवान के घर से ही आती हैं। ये तीनों साक्षात लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती हैं। आप भी इनमें यही छवि देखा करो। खुश रहा करो । प्रभु की दी हुई सौगात हैं । इन्हें कोसा मत करो, इन्हें खूब लाड प्यार दो, बड़ी होते ही चिड़िया की तरह फुर्र से उड़ जायेंगी "।
सरदार जी ने तुम सब को पढ़ाया। दूसरों की तरह कभी ना सोचा कि बेटी पराया धन हैं ,इन पर खर्च क्यों करना ।
अब मैं उनके फर्ज निभाऊंगी। गैराज का काम काज खुद देखूंगी। गैराज ठीक से चले सबकी रोटी रोजी बनी रहे सरदारजी सदा यही चाहते थे। उनकी चाहत पूरी करूंगी। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
मां की बातें सुनकर बेटियों की आंखें नम हो जाती हैं। मां का ये रूप देखकर तीनों मां के गले से लिपट जाती हैं।