चादर

चादर

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मम्मा, आप कैसे कह सकते हो कि ये मेरे पापा हैं, जिस इन्सान को मैंने आज तक देखा नहीं, उसे मैं अपना पापा कैसे मान लूँ ! नहीं मम्मा, मैं उन्हें अपना पापा नहीं मानती, मेरे पापा तो मिस्टर सूरज सक्सेना है ना कि ये। पापा एक महीने के लिए बाहर क्या गये कि आपने इस अजनबी को ही मेरा पापा बना दिया नोओओओओओओ नो मम्मा नो आर यू सिक ? मम्मा, मैं बच्ची नहीं हूँ जीया और दीया की तरह वैसे वे दोनों भी समझदार हैं,अपने पापा को बखूबी पहचानती हैं हाँ , रोहित को आप बहला सकती हैं बच्चा जो है। आपको जरा भी शर्म नहीं आई ऐसा कहते हुये।

ऐसी बात नहीं पर यह सच है कि मिस्टर शर्मा ही तुम्हारे पापा हैं। पर मम्मा, पर वर कुछ नहीं अब बड़ी हो और समझदार भी मेरी बात को, मेरी मजबूरी को अच्छी तरह से समझ सकती हो ! मजबूरी कैसी मजबूरी ?

बच्चा, पहले सुन तो ले फिर खुद ही सब समझ जाएगी, तुम्हारे पापा मिस्टर रजत शर्मा ही है तुम सब के, हाँ बेटा, इटस ट्र्। तुम्हारे पापा आर्मी में होने के कारण अधिकत्तर फ्रँट पर ही रहते थे पाकिस्तान से वार चल रही थी, तब तुम तीन साल की थी, जीया , दीया का जन्म हुआ ही था और रोहित तो चार साल बाद में जन्मा था। बस तब के आए हुए फिर वापस कभी घर नहीं लौटे और ना ही उनका कोई पता ही चला कि कहाँ हैं, उनकी यूनिट ने ही कोई सँतोषजनक जवाब नहीं दिया पर उनका मानना था कि वे शहीद हो गये मगर उनकी बाडी का भी पता नहीं चला, लेकिन उनका सामान ससम्मान भिजवा कर पूर्णाहुति दे दी। दाद, दादी इस सदमे से उबर नहीं पाए बीमार रहने लगे ।


तुम्हारे तायाजी मिस्टर सूरज तुम्हारे पापा से दो साल बड़े हैं। तुम्हारी ताईजी शादी के दो साल बाद डिलीवरी के वक्त भगवान को प्यारी हो गई। ऐसे में मेरे न चाहने पर भी , बहुत विरोध के बावजूद भरी पँचायत में मुझ पर चादर डाल दी गई। मैं जबर्दस्ती अपने जेठ की पत्नी बना दी गई मगर मेरा मन कभी उन्हें स्वीकार नहीं कर पाया। मैं कुछ भी न कर सकी फिर भी उनसे दूर ही रहती, मगर उनकी एक बात ने मुझे उनकी बना दिया। चार साल तक मेरी हाँ का इंतजार किया और मुझे कभी छुआ तक नहीं, यह सब तब हुआ जब तू साढे चार साल की थी। तू अपने पापा से इतनी घुली मिली नहीं थी कारण वे घर पर तो मेहमानों की तरह आते जाते थे बस साल में एकाध महीना। कई बार तो रेजिमेँट से बुलावा आ जाता था तो फौरन जाना पड़ता था मानो फौज के लिये ही बने हैं। तुम सब बच्चे अपने तायाजी के ही करीब थे उनको ही अपना पाप कहते, मानते थे मैंने भी कभी मना नहीं किया उनका मन भी तुम लोगों से बेहद जुड़ा हुआ था हाँ , मैं नहीं जुड़ पाई थी। मगर न जाने कब और कैसे पता नहीं पर उनकी इस बात ने मुझे उनकी बना दिया। चार साल तक इन्होंने मेरी हाँ का इन्तजार किया मुझे छुआ तक नहीं। तुम लोगों को पिता का प्यार देते रहे, हर तरह से हम सबका ख्याल रखते। चादर डालने के बाद भी तुम्हारे पापा को तलाश करने की मेरे साथ साथ इन्होंने ने भी पूरी कोशिश की पर नतीजा निराशा के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा, बस दिन गुजरने रहे। बाद में इन्होंने कहा .. देखो निशा, रजत मेरा भी भाई है उसे बहुत प्यार करता हूँ। हाँ , यह सही है कि मैंने अपने माता पिता के लिए तुम पर चादर डाली थी पर अब सच्चे दिल से तुम्हें प्यार करता हूँ और अपना मानता हूँ।

हालाँकि तुम जब तक नहीं चाहोगी रजत की अमानत ही रहोगी। ऐसे में तुम्हारे दादा, दादी भी नहीं रहे। तू भी पन्द्रह साल की हो गई न तुम्हारे पापा आए और न ही मैं इनकी हो पाई। बाद में इनकी हालत देख कर तरस आता कि इस आदमी ने तो बिगड़ी को सँवारने की ही कोशिश की और इसी को सजा ! मेरी इजाज़त के बिना तो मेरे पास भी नहीं बैठता। कुछ समय के साथी के लिए जो अब इस दुनिया में ही नहीं है उसके लिए इस देवता स्वरूप इन्सान को नज़रअंदाज़ करना कहाँ तक वाजिब है ! वो इन्सान जो हर तरह से कुछ न होकर भी मेरे बच्चों का पिता है, सही अर्थों में अपना पिता धर्म निभा रहा है और मेरा खैर ख्वाह है, बस इसी उधेडबुन में एक दिन मैंने ही इनसे कहा .. आप दूसरे कमरे में क्यों सोते हैं, बच्चे भी चाहते हैं कि आप हमारे साथ हमारे कमरे में सोएँ। याद है जब हमारे कमरे में सोने लगे तो तुम तीनों कितनी खुश थीं .. हम सबके बिस्तर नीचे ज़मीन पर ही लगते थे, इनके लिए भी वहीं सबके साथ लग जाता था। तुम तीनों बहनों की खुशी का तो पारावार न था और फिर हमारी गृहस्थी ने जन्म लिया, साथ ही रोहित ने भी। आज वह पाँच साल का हो गया है, इतने लम्बे अर्से बाद आज अचानक तुम्हारे पापा आ गए , मैं तो सोच समझ ही नहीं पाई। इन्होंने ने ही तुम्हारे पापा को हमारे रिश्ते की बात न बताने की विनती की थी। लेकिन अब मैं मन से तुम्हारे पापा को स्वीकार नहीं कर पा रही हूँ चाह कर भी पर तुम्हारे पापा को तकलीफ़ न हो , उनके मन को चोट न पहुंचे इसका पूरा ख्रयाल रखा है और रखना है, पर इसमें तुझे मेरी मदद करनी होगी हम सब इधर ही सोएँगे और इन दोनों भाईयों के बिस्तर बाहर वाले कमरे में लगाएँगे। पर मम्मा , ऐसे कितना मुश्किल होगा। जीया दीया व रोहित को इस तरह कनवेँस करना फिर मिस्टर रजत हमारे पापा है, मैं तो उन्हें पापा कह दूँगी पर? तभी तो कह रही हूँ तुझे मे मदद करनी होगी,

कैसे मम्मा ? तुम इन तीनों को कनवेँस करोगी। तुम अपने तरीके से इन्हे समझा देना। मुझे उम्मीद है , तुम ये सब कर सकोगी कारण तुम्हारी बात आसानी से समझेँगे । ओ के मम्मा आय विल ट्राई। बट, ऐसे कब तक चलेगा ! आखिर तो उन्हें बताना ही पड़ेगा, अगर हम नहीं बताएंगे तो लोगों से पता चलेगा ही तब ?

बेटा, मुझे दो दिन का वक्त दो फिर मैं खुद ही बता दूँगी। और फिर तुम्हारे पापा को भी सोचने समझने का वक्त मिलेगा , इतने लम्बे अर्से तक कहाँ रहे और किस तरह रहे, उन पर क्या बीती ? हालात तो जरूर ही बयान करेंगे ! उसके बाद इतमीनान से सारी बातें, मजबूरियाँ, परेशानियां बताएंगे तब समझ जाएँगे लेकिन पहले जहाँ खुद को इनके प्रति दोषी समझती थी, आज तुम्हारे पापा के लिए दोषी महसूस कर रही हूँ क्यों मैं कमजोर पड़ गई थी !

पर मम्मा इसमें आप क्यों गिल्ट फील कर रही हैं ! हालात ही ऐसे बन गये थे कि आपको चादर ओढ़नी पड़ी पर हमारे पापा तो मिस्टर सूरज ही हैं , हमें तो इनकी कोई याद ही नहीं है कि जहाँ मैं इन्हें घर का मेम्बर ही महसूस कर सकूँ !

ठीक है पर तुम बच्चों को उन्हें पापा ही कहना है, इतने सालों बाद अपने परिवार से मिले हैं उन्हें बहुत धक्का लगेगा। रजत जाने कब से आकर खड़ा था , माँ बेटी को पता ही नहीं चला मगर उसकी आवाज़ सुन कर दोनों चौक पड़ी ।

हाँ धक्का तो लगेगा बल्कि लग गया ! मैं दुश्मन की माँद से तो निकल आया अपने परिवार से मिलने की उम्मीद में पर अब मेरा परिवार कहाँ यह तो वीरजी का परिवार है, ओह मैं किस मुगालते में था समझ ही नहीं पाया ! सारे भ्रम टूट गये, कहाँ तो अपनों से मिलने की खुशी में उड़ रहा था कि एकाएक पर कटे पँछी की तरह ज़मीन पे आ गिरा, जहाँ से ज़मीन भी पैरों तले खिसक रही है और मैं पाताल में धँस रहा हूँ काश ! दुश्मनों की कैद में आखिरी सांसें लेता तो इस धोखे में न रहता पर ? कितनी बार कैद से भागने की कोशिश की थी सिर्फ अपने परिवार से मिलने की चाह में आखिर कामयाब भी हुआ पर, यह कामयाबी जाने मुझे कौन सी खाई में ले आई जहाँ ज्वालामुखी धधक रहा है जिसने मुझे ,ओह निशा , तुमने तो मुझसे मेरी जिन्दगी छीन ली बल्कि जिन्दगी को ही निशा में बदल दिया। क्या तुम मेरा इन्तजार न कर सकी ? क्या मुझसे प्यार नहीं करती थी ?

करती थी , अभी भी करती हूँ । हाँ अब मैं आपकी पत्नी नहीं रही, हालात ने आपके बड़े भाई की पत्नी बना दिया। हमारे यहाँ के रीति रिवाज कितने दोगले हैं एक तरफ तो पति के बड़े भाई को पिता व बड़े भाई का दर्जा दिया जाता है तो छोटे भाई को बेटे व छोटे भाई का तो दूसरी तरफ ज़मीन जायदाद के लिए कि विधवा औरत किसी और से शादी न कर ल़े इसलिए देवर या जेठ चादर डाल देता है जो एक प्रकार की शादी होती है बस फेरे वगैरह नहीं पड़ते पर चादर डालने वाला पति बन जाता है और यह सब इस लिए होता है कि घर की बात घर ही में रहे । ये कैसे रिवाज है कि पल में रिश्ते बदल जाते हैं, फिर क्या फर्क पड़ता है , बड़ा भाई हो या छोटा !! औरत की अहमियत ही क्या है सिवाय सामान के ! और दुर्भाग्य तो देखिये, इस प्रकार की मानसिकता में जीते जीते खुद औरत ही औरत की दुश्मन बन जाती है .. कभी माँ के रूप में तो कभी सास के रूप में और कभी बहन, बेटी के रूप में । पर मेरी बच्चियों के साथ ऐसा कभी नहीं होने दूँगी, इन रीति, रिवाजों की आड़ में। काश !

अच्छा निशा, एक बात बता .. बेटियाँ तो तीनों हमारी हैं ना तुम्हारा तो सिर्फ बेटा है। हाँ , पर बेटियाँ भी तो मुझे अपना पिता नहीं मानती, वीरजी को ही अपना पिता मानती हैं, सच भी तो है …

हाँ , सच तो है पर यह भी तो सच है तू मेरा छोटा भ्रा हैगा। तू यकीन कर मैंने निशा पर कभी बुरी नजर नहीं डाली और ना ही,

वीरजी , कुछ ना बोलो , निशा की मैंने सारी बातें सुनी है। दोष न आपका है न निशा का बस हालात ने हमारे रिश्ते बदल दिये। ओए , तू फिक्र न कर मैं सब ठीक कर दूँगा। मैं तेरे रास्ते से हट जाऊँगा ।

क्यायायाया ? यह हक आप लोगों को किसने दिया, बार बार मेरी जिन्दगी का फैसला जब चाहा, जैसा चाहा कर दिया ! क्यों ? मुझ पर चादर डालने का फैसला आपका था मगर आपको स्वीकार करने का फैसला मेरा अपना था। किसी मजबूरी के तहत मैंने आपको स्वीकार नहीं किया ! मैं कोई चीज नहीं हूँ कि पहले छोटे भाई की बाद में बड़े भाई की फिर वापस छोटे की क्योंकि बड़े भाई का प्यार जो ठहरा जो मेरा पति बन कर भी बन नहीं पाया, बस एक दूसरे के इस्तेमाल की चीज मात्र बना कर रख दिया, वाह जी वाह ! अब मेरा एक फैसला सुनिए आज से, अभी से कोई मेरा पति नहीं है।

मेरा अपना वजूद है, मेरे बच्चे हैं। मेरी यह बदकिस्मती है कि आप दोनों मेरे बच्चों के पिता हो और रहोगे मगर अब अभी , इसी वक्त से मेरे कुछ नहीं हो। अब न रीति रिवाजों की और ना ही आप लोगों की हुकूमत की खुद को बलि बनने दूँगी। जहाँ रितु को समझा रही थी कि रजत को कोई धक्का न पहुंचे ! कितनी गलत थी मैं, किसी ने मेरे बारे में कभी कहीं सोचा कि मैं क्या चाहती हूँ ? मैं क्या हूँ और कौन हूँ ? तो फिर...

हाँ , तुम सच कह रही हो, हम दोनों तुम्हारे दोषी हैं। हमने सोचा भी सिर्फ सिर्फ अपने बारे में , मगर तुम्हारे बारे में अहसास ही नहीं रहा कि तुम्हारा अपना वजूद है, शख्सियत है।

सूरज बोला .. हाँ निशा, तुम सही हो। तुम्हारी भावनाओं की कदर करते हैं, सलाम तुम्हारे जज्बे को। पर …. पर हमें छोड़ कर मत जाना हम सब साथ साथ रहेंगे तुम्हारे अपने फैसले और तुम्हारे पूरे वजूद के साथ। हाँ, नहीं छीनूँगी बच्चों से उनके पिता को और दोनों पिता से उनके बच्चों को।

थेँक्स मम्मा ,आपने सही अर्थों में अपने माँ होने के गौरव का मान रखा, अपना फर्ज निभाया। हमें बिछड़ने से बचा लिया, हमें हमारे पापा को लौटा दिया …ओ मम्मा यू आर द ग्रेट ! कहते हुये रितु ने माँ को अपनी बाहों में भर लिया साथ ही सूरज और रजत को भी, हालांकि यह कोशिश नाकाम रही पर भाव लबालब थे। पर यह कोशिश तीनों ने ..मिल के पूरी कर दी। सब की आँखें गंगा जमुना हो रही थी। काफी देर सब यूँ एक दूसरे से बँधे रहे, फिर रोहित ने रजत की आँखें पोँछते हुए कहा.. छोटे पापा, अब तो आप भी हमारे साथ ही रहेंगे ना ?

हाँ , बेटा और रजत ने उसे अपनी गोद में उठा लिया। छोटे पापा कह कर रोहित ने सारी मुश्किलें आसान कर दी और …और एक नए रिश्ते को जन्म

दिया !                                                       




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