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Deepti Tiwari

Drama Tragedy

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Deepti Tiwari

Drama Tragedy

बूढ़ी माँ

बूढ़ी माँ

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सुबह सुबह फोन बज उठता है, हेलो कौन, जी, क्या ,अम्मा......नहीं, अम्मा नहीं रही क्या हुआ अभी तक तो अच्छी भली थी, मौत किसी से बोल कर आती है क्या ,अब लाख रुपये समझो कही नहीं गये। अब तो निकलने की तैयारी करो, वरना यही समाज हमें जीने नहीं देगा।

जल्दी करो, सभी एक आलीशान गाड़ी में बैठ जाते हैं। कुछ ही घंटों में गाँव में एक खंडहर जैसे मकान के सामने गाड़ी रुकी बाकी तीन भाई भी अपने 

परिवार के साथ पहले से ही वहाँ पहुंच गये थे।


बूढ़ी माँँ बाहर ज़मीन पर पड़ी है, तो आगे क्या करना है  करना क्या है ये कहो निपटाना है,इतनी गर्मी  ना लाइट ना पंखा हे भगवान कहा फस गये. 

अंदर चल के देखे कोई खजाना तो नहीं गाड़ रखा है  सभी हसते हुए अंदर जाते है .........

  


घर के अंदर जाते ही, टूटी फूटी एक चारपाई पड़ी थी कुछ बरतन, घर के अंदर अनाज के नाम पर

थोड़ा सा आटा, दो भेली गुड़ और एक छोटी सी प्याली में तेल रखा था, बस यही थी उस बूढ़ी अम्मा की पूरी दुनिया, कल अम्मा तो बिल्कुल ठीक थी, पास के घर में शादी थी तो वहाँ से गुड़ तेल पाकर खूब खुश थी और आज ये सब।


बरसात में छत से पानी गिरता था, पूरी रात कोने में दुबकी बैठी रहती, पर किसी से कोई शिकायत नहीं थी। कई बार तो भूखे पेट ही सो जाती थी

पर किसी कोई शिकायत नहीं करती, नाती पोतो से मिलने के लिए तरसती रहती, जीसने  भूख को सह कर रात गुजारी  हो अब उसके मरने के बाद ये सारे ढोग बंद करो ,वो तो अब  चली गयी अब जताने कि क्या जरूरत है, हजारों को बुलाकर खिलाने की अब क्या जरूरत, अब कितना भी दान करो, जो चला गया वो चला गया, अब तूम लोग भी जाओ समाज को दिखाने का दिखावा बंद करो, जब एक एक पैसे को तरसती थी तब कहा थे, अब लाखों भी खर्च करो उसे क्या  मिलना है, कहते हुए वो गाँव की धोबिन आँखों से आंसू पोंछते हुए।


यह समाज की एक बड़ी समस्या है, जो माँ बाप अपने बच्चों के लिए खुद की कुरबानी दे सकते है, उन्हीं के बच्चे बुढ़ापे में दर दर की ठोकर खाने के लिए छोड़ जाते है।                      पूरा परिवार काम निपटा कर शहर लौट गए और एक राहत की सांस लेते हुए, चलो फुरसत हुईं अब न अम्मा रही और ना कोइ मुसीबत क्यों जी और एक कुटिल मुस्कान के साथ सब हंसते हुए चले जाते है ओर रह जाता है अम्मा का वो टूटा फूटा सा घर जो अभी भी अपने बच्चों के लिए हमेशा हमेशा के लिऐ खुला  छोड़ गईं .

  


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