बुरी लत
बुरी लत
"देखो क्या हालत है पार्क की। कल ही दीपावली मेला आयोजित किया था यहाँ। आज सारा पार्क प्लास्टिक की थैलियों से भरा पड़ा है। "
" सही कह रहे हैं आप। अरे, सारी सरकार की गलती है। सारी जनता के पीछे डंडा ले कर पड़े हैं - प्लास्टिक थैली इस्तेमाल न करो। पांच हजार का फाइन कर देंगे। अरे, बनाने वालों को रोकें न। भाई जब तक ये बनते रहेंगे लोग इस्तेमाल करेंगे ही करेंगे। इसलिए बनाने पर रोक ज्यादा जरूरी है। जब बनेंगे ही नहीं तो लोग इस्तेमाल कैसे कर लेंगे ?"
"बिलकुल सही भाई साहब। ये सरकार भी न -------"
उन दोनों की बातें वो सज्जन काफी देर से सुन रहे थे। अब उनसे रुका नहीं गया और वो भी चर्चा में शामिल हो गए।
" जी आप दोनों की बातें सुन रहा था। मन में एक प्रश्न आ रहा था। आप बुरा न मानें तो पूछ लें ?"
"हाँ - जी जरूर पूछिए " दोनों ने एकस्वर में उत्तर दिया।
"जी बस ये पूछना था कि आप अभी कह रहे थे कि ये बनते रहेंगे तो लोग इस्तेमाल करते रहेंगे। तो जी बनते तो चोरी छुपे देसी कट्टे भी हैं। स्मैक, हीरोइन, चरस और गांजा भी पाबंदी के बावजूद बनते ही हैं। तो क्या आप वो भी खरीदते और इस्तेमाल करते हैं ?"
दोनों ये बात सुन कर सकपका गए।
उन दोनों की पीठ थपथपा कर वो सज्जन बड़े प्यार से बोले :
"बुरा मत मानियेगा पर सच तो ये है कि प्लास्टिक की थैलियों की सहूलियत का नशा अब जनता को इस तरह अपनी गिरफ्त में ले चुका है कि कोई न कोई बहाना बना लोग इसका इस्तेमाल जारी ही रखना चाहते हैं। सरकार ने तो बनाने और इस्तेमाल करने -दोनों पर पाबंदी लगा दी है। पर अगर चोरी छिपे हम ये इस्तेमाल करते रहे, तो कोई न कोई इन्हें बनाता ही रहेगा। समाधान तो अपनी इस लत को जल्द से जल्द ख़त्म करना ही है। अरे, कोशिश तो करिये आप लोग। सुना तो होगा न आपने भी - कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती "