STORYMIRROR

Atul Agarwal

Tragedy

4  

Atul Agarwal

Tragedy

बुजुर्गों के हब

बुजुर्गों के हब

4 mins
280


राजू का जन्म ६२ वर्ष पूर्व सन १९५७ में पी.रोड, कानपुर (उ. प्र.) की एक गली में हुआ. दीन दयाल स्कूल व बी.एन.एस.डी. कालेज से एम.काम. किया. सरकारी नौकरी में क्लर्क कानपुर में ही लग गए.


मालती जी से सन १९८२ में शादी हुई. अपने पिता जी का तिमंजले का हिस्सा उनको मिला. एक लड़का और एक लड़की हुई. दोनों बच्चे साफ्टवेयर इंजीनीयर बन कर एम.एन.सी. (मल्टी नेशनल कम्पनीस) में लग गए. दोनों बच्चो की शादी भी साफ्टवेयर इंजीनीयर्स से हो गयी. लड़का व कामकाजी बहू बंगलोर में सेटल हुए और लड़की व दामाद हैदराबाद में. राजू व मालती जी नाती, पोते व पोती वाले हैं. 


राजू दो साल पहले सन २०१७ में नौकरी से रिटायर हुए. पी.एफ., ग्रैच्यूयटी, आदि का पैसा मिला व लगभग ३०,०००/- रूपये मासिक पेंशन मिलती है.

 

ज्यादातर रिश्तेदारी कानपुर में ही है. राजू हर सोमवार आनन्देश्वर बाबा (भोले नाथ श्री महादेव शिव शंकर भगवान्) व हर मंगलवार बल्खंडेश्वर (हनुमान जी) मंदिरों के दर्शन करके ही बड़े हुए. बनारसी के छोटी मोतीचूर के लड्डू, ठग्गू की बदनाम कुल्फी, राम के पेड़े, शुक्ला का मलाई मख्खन, बृजवासी की चाट, मोतीझील चौराहे की बनारसी की चाय, साहब के समोसे और ना जाने क्या – क्या कानपुर का मशहूर, उनकी रोज की दिनचर्या में शामिल है. यहाँ कानपुर में अफीम और इलायची का एक ही टेस्ट है, लड्डूओं या चाय में दोनों की सोंधी महक का कोई जोड़ नहीं.


राजू का सुबह ब्रह्मनगर या जवाहर नगर पार्क में मोर्निंग वाक. आफिस से आने के बाद या छुट्टीयों के दिन नीचे चबूतरे पर बैठ कर कैरम या लूडो खेलना.      


अपने उत्तर भारत (नार्थ इंडिया) में तीन महीने, दिसम्बर, जनवरी व फरवरी में कड़ाके की हाड मांस को कपा देनी वाली ठण्ड पड़ती है. तापमान (पारा) 0 (शून्य) डिग्री तक पहुँच जाता है. जून के 44 डिग्री व जनवरी का 0 डिग्री का बहुत बड़ा अन्तराल, उस भयंकर ठण्ड को सहने की हिम्मत को और परेशान करता है. फिर भी जैसे तैसे एक एक दिन कट जाता है, यह कह कर कि इस साल पिछले साल या पिछले सालों से ज्यादा ठण्ड है. मौसम विभाग भी ऐसी ही कुछ पुष्टि करता रहता है कि इस वर्ष ठण्ड का पिछले 40 साल का रिकार्ड टूट गया है.

  

राजू के दोनों बच्चे साल में एक बार सपरिवार दिवाली पर कानपुर आते हैं. बच्चों की कोशिश रहती है कि माता व पिता (मालती व राजू) उनके पास ही रहें. राजू साल में एक दो बार ही दो-तीन दिन के लिए ही उनके यहाँ बंगलोर व हैदराबाद जाते हैं. मालती का मन वहीं लगा रहता है. वह अकेली भी चली जाती हैं. महिना महिना भर भी रुक जाती हैं.


राजू सन १९७६ में कालेज के टूर के साथ बंगलोर व हैदराबाद घूमने गए थे. तब बंगलोर, चंडीगढ़ व देहरादून अपने भारत के सबसे अच्छे शहर थे. अब बंगलोर में सिर्फ भीड़ ही भीड़ है. फ्लाइट या ट्रेन पकड़ने के लिए घर से ५ घंटे पहले निकलना पड़ता है.  


लड़के ने एक बार अपने पिता जी राजू को राय दी कि वह अब कानपुर छोड़ कर बंगलोर ही आ जायें. राजू बिल्कुल स्ट्रेट फारवर्ड हैं, सीधी बात बोलते हैं. उन्होंने लड़के को जवाब दिया कि जब तक हाथ पैर चल रहे हैं, वह कानपुर में ही रहेंगे. 


राजू जब भी बंगलोर या हैदराबाद जाते तो वहां देखते कि जैसे वह शहर एम.एन.सी. व साफ्टवेयर इंजीनीयर्स के हब हैं, वैसे ही बुजुर्गों के भी हब बन गए हैं. रिटायर होने के बाद ज्यादातर बुजुर्ग अपने बच्चों के पास ही बड़े शहरों में रहने लगे हैं.


ऐसा नहीं है कि सभी बुजुर्ग आर्थिक रूप से बच्चों पर आश्रित हैं. लेकिन वह आश्रित तो बन ही गए हैं, चाहे वह उनकी कुछ बीमारी की वजह से हो, चाहे वह नार्थ इंडिया की हाड मांस कपा देने वाली तीन महीने की ठण्ड की वजह से हो.


हाँ, इन बंगलोर व हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में कुल मिला कर एक ही बात अच्छी है कि यहाँ सड़क पर छुट्टे आवारा जानवर नहीं हैं. अपने कानपुर में गाय, कुत्ते व सुअर सड़कों पर जनसंख्या संतुलन बनाने की पुरजोर कोशिश में लगे हैं, उनकी होड़ आपस में नहीं है, बल्कि कानपुर की लगभग १ करोड़ मनुष्य जनसंख्या से है. वह गिनती में बराबरी चाहते हैं.  


फिर भी राजू को अपना शहर कानपुर ही प्यारा लगता है.


इस कहानी का नायक राजू सभी छोटे शहरों में रहने वाले अनगिनत बुजुर्गों का प्रतिबिम्ब है. यह अनगिनत राजू या बुजुर्ग दम्पतियां करें तो क्या करें, एक बहुत बड़ा राष्ट्रीय प्रश्न है? और बड़े शहरों की बढती भीड़, यह वहां के राज्य के लिए?  


प्रश्नों के हल तो हम ही को निकालने होंगे, जो व्यवहारिक हों और कुछ हद तक सर्वमान्य हों. 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy