Atul Agarwal

Others

3.1  

Atul Agarwal

Others

लैम्बरेटा स्कूटर

लैम्बरेटा स्कूटर

2 mins
125



10 मार्च 1967 को एक फ़िल्म रिलीज़ हुई, an evening in Paris जिसमें शम्मी कपूर लैम्बरेटा  स्कूटर सड़क पर चलाते हुए शर्मिला टैगोर को रिझाने के लिए गाना गाते है: 

होगा तुमसे कल भी सामना ....। 

 

फ़िल्म हिट थी। उस समय सभी फिल्में हिट होती थी। गाने भी सभी हिट होते थे।

 फिल्मों में डायलॉग कम गाने ज्यादा होते थे। जब हिन्दी बोलने वाली (सवाक) फिल्में बननी शुरू हुई, भारत की पहली टॉकी फ़िल्म 'आलम आरा' 1931 में रिलीज हुई, जिसमें मुख्यतया (15) गाने ही गाने थे, तब से 91 सालों के सफर में हिन्दी फिल्मों में गानों की संख्या वैसे ही घटती चली गई, जैसे हमारे बच्चों की। 

 

खैर वापस कहानी पर आते हैं, इस फ़िल्म से लैम्बरेटा  स्कूटर हिट हो गया।

मार्च और अप्रैल  में लैम्बरेटा  स्कूटर की रिकॉर्ड तोड़ सेल हुई।

 उस समय मुजफ्फरनगर (यू.पी.) में भी लैम्बरेटा  स्कूटर की खूब बिक्री हुई। पहली और आखरी बार उस पर बुकिंग और ब्लैक था, जैसा कि बजाज वैसपा या प्रिया पर  हर समय रहता था। Rs.3,200/- का लैम्बरेटा  ब्लैक में 4,000/- का मिल रहा था। एक हैवीवेट लोहालाट गाड़ी।  

 

रूड़की रोड पर इसका शोरूम था। 2 अप्रैल को 5 स्कूटर आए थे। ब्लैक में रातों रात बिक गए। 

 2 हमारे परिचितों ने भी खरीदे। 

 

एक हमारे सुरेन्द्र चाचा ने (श्री सुरेन्द्र कुमार अग्रवाल), मैरिना होटल (रैस्टोरैंट) वाले, मुजफ्फरनगर का एक मात्र रैस्टोरैंट। 

दूसरा भी नई मण्डी निवासी किशन बाबा जी ने (श्री किशन गुप्ता), मुजफ्फरनगर के एक मात्र LIC एजेंट। किशन बाबा जी के सिर पर बाल नहीं थे। हमारे पापा उनको चाचा जी बोलते थे, इसलिए वो हमारे बाबा जी (grandfather) हुए। 

 

दोनों लैम्बरेटा वाले एक गली छोड़ कर नई मण्डी में ही रहते थे। सुरेन्द्र चाचा अपने पढ़ाई के दिनों में हॉकी के स्टेट लैवल प्लेयर रहे। मुजफ्फरनगर में उनका रुतबा था। बहुत दोस्त यार थे। 

 

मैरिना में ऑमलेट बहुत अच्छा मिलता था। दोस्तों की उधारी से बचने के लिए मैरिना में शाम 6 बजे से रात 11 बजे तक हमारे जीजा जी / बाबा जी श्री विशवानी प्रकाश अग्रवाल जी की ड्यूटी रहती थी। 

 पूरे मुजफ्फरनगर में वही दो लैम्बरेटा स्कूटर रह गए थे। शायद 30 साल से ज्यादा चले, सन 1998 तक।   

 

प्रसिद्ध उद्योगपति व पूंजीपति श्री सुनील मित्तल भारती के पास भी लैम्बरेटा थी और सहारा श्री सुब्रत रॉय की लैम्बरेटा तो बरसों से सहारा के लखनऊ अलीगंज हैड ऑफिस में एक शीशे के क्यूबिकल  में एक स्मारक / यादगार की तरह खड़ी है। 

 


Rate this content
Log in