बुढ़ापे की सनक

बुढ़ापे की सनक

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किसी ने सच ही कहा है कि ,

"छत नहीं दहलीज नहीं, दीवारों दर नहीं होता है।

बुजुर्गो के बिना कोई घर, घर नहीं होता है। ।

हमारे पूरे गाँव में सिर्फ हमारा ही परिवार है, जिसमे पांच पीढ़ी जीवित मौजूद है। मेरे दादाजी की मां, मेरे दादाजी , मेरे पापा, मेरे भाई बहन, और उनकी की संतान , हम कभी किसी को छोटा बड़ा नहीं समझते है। सभी को आप कहकर खास सम्मान देते है। और ये सब हमारे दादाजी के उम्र के तकाजे ने ही सिखाया है। एक दम मनमौजी, और खुशमिजाज इंसान मैंने मेरे दादाजी के अलावा कोई नहीं देखा को इस उम्र में भी नवयुवकों को भी फुर्ती में नानी याद दिला दे। ये मेरे विचार है कि किसी भी बुजुर्ग को हम तुलनात्मक दृष्टि से नहीं देख सकते क्योंकि,

अरे भाई !

उन्होंने अपनी उम्र की पकी हुईं दाढ़ी में बहुत कुछ पकाया है। मेरे दादाजी हमेशा से ही सुबह उठकर 20 25 ग्राम बाजरे का आटा दूध में घोलकर पी जाते है। और हमें भी स्वस्थ रहने का ये रामबाण उपाय बताते है। 80 85 साल की उम्र में एक दम स्वस्थ रहने वाले गाँव के लिए प्रेरक है। पूरा गाँव और समाज उन्हें अच्छी इज़्ज़त देता है। ग्राम पंचायत के मुख्य फ़ैसले उनके है कलम से सुलझाए जाते है। ये सिर्फ उनके उम्र और उनकी सनक ने है सिखाया है जो एक अहम भूमिका अदा करता है।


जुनून के लिए उम्र कभी मोहताज नहीं होती है आपने देखा है मदर टेरेसा को, जिन्होंने अपनी बीती हुई उम्र को भुलाकर आने वाली उम्र को चैलेंज किया।

उसी तरह मेरे दादाजी ने भी अपनी जिंदगी को कई बार चैलेंज किया है, लेकिन पिछले 2 साल से वो पैरेलिज्ड है, फिर भी गाँव के बुजुर्ग साथी उनसे मिलने आते है तो हमारी हिम्मत फिर जुट जाती है। हमारी बिखरती संस्कृति में डटे रहने वाले एक आधार जो उसे बचाए रखते है - बुजुर्ग



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