बुढापे की लाठी
बुढापे की लाठी
“बाबा, सोने चलिए । बहुत रात हो गई। घर में सभी सो गये हैं। देखिए, घूर का आग भी बुझ गया।” तगार में जल चुके घूर के सफेद पड़े राख को लकड़ी से हिलाते हुए पोते ने आहिस्ते से कहा । “
थोड़ा रूको, पहले राख को बाहर बरामदे के छज्जे के नीचे फैला देता हूँ ... ।”
“ इतनी ठंड में... आप बाहर ? अगर आपको ठंड लग गयी ना तो पापा से जरूर डांट पड़ेगी ।”
“अरे, गुस्साता क्यूँ... है? तुरंत हो जाएगा। बाल्टी में राख उठा कर देता हूँ, तू इसे बाहर पहुँचा दे, बूढ़े बाबा को मदद कर।” बाबा ने पुचकारते हुए पोते से कहा ।
“ओह! इसी फ़ालतू काम के चलते हमेशा पापा से आपको दो बातें सुननी पड़ती है ! फिर भी ?! ”
“ पिद्दी भर का है और गुरु-घंटाल जैसी बातें करता है। चल, पकड़ बाल्टी।” राख भरा बाल्टी उसे पकड़ाते हुए बाबा ने मुस्कुरा कर कहा ।
“ पहले बताइए, राख का होगा क्या ?” “ गद्दा बनेगा।” “हा... हा... हा... .राख का गद्दा... .?” पोते ने ठहाका लगाया। “
ज़रा बाहर देख, बूढ़ी गाय छज्जे के नीचे कैसे दुबकी खड़ी है ! बेचारी, रात भर इसी तरह ठंड में कठुआती रहेगी ! अब तू ही बता , हमें क्या करना चाहिए ? “
“लेकिन ... ये तो पड़ोस वाले शर्मा अंकल की गाय है ना ?फिर आप इतने परेशान क्यों हो रहे हैं ?”
“हाँ... हाँ... उन्हीं की गाय है। बूढ़ी हो गई... अब दूध नहीं देती ! इसलिए तो बेचारी मारी फिरती है ! ”
“ बाबा, मुझे पता है जानवर को अधिक ठंड नहीं लगती ! छोड़िए इसे, अब जल्दी से सोने चलिए... .सबेरे स्कूल जाना है ।"
“ बाहर शीतलहर चल रहा है। कोहरे के कारण हाथ का हाथ नहीं सूझ रहा ! देख, हमलोग देह पर कितने कपड़े लादे हैं... .। फिर भी ठंड के कारण घंटों से हम घूर ताप रहे हैं और ये... .बेचारी, बाहर ठंड में ... .! पहले जब दूध देती थी तो ठंड में इसके देह पर बोरा बंधा रहता था। अब दूध नहीं देती है, इसलिए मालिक को गाय का कोई परवाह ही नहीं है ! खैर! चलो, राख को वहाँ फैला कर , ऊपर से बोरा बिछा देते हैं, बन जाएगा उसका गद्दा। तब हमारी तरह यह भी गद्दे पर आराम से सो जाएगी ।”
आनंदित वहीं पड़े पुराने बोरे को समेटते हुए पोते के साथ बाबा बाहर बरामदे के पास पहुँचे। राख भरी बाल्टी को छज्जे के नीचे पोता जैसे ही उड़ेलने लगा, उसकी नजर कंपकपाती बूढ़ी गाय पर पड़ी । वह भागता हुआ अपने कमरे में गया। वहाँ बिस्तर पर बिछे कंबल को झटके से खींच, बाहर लाकर, गाय के ऊपर ओढ़ा दिया।
बूढ़ी गाय की शुष्क आँखें डबडबा गईं। मानो वो बाबा से कह रही थीं ... . ” ज़रा भी फ़िक्र मत कीजिए , आपका पोता आपके बुढ़ापे की लाठी बनेगा ।" हर्षित हो बाबा ने पोते को गले से लगा लिया ।