बुढ़ापे की लाठी पेंशन
बुढ़ापे की लाठी पेंशन
रामलाल जी 75 वर्ष की आयु के हो चुके थे। अब तक उनका शरीर काम कर रहा था तो वह छुटपुट बाहर के काम कर लिया करते थे पर अब उनका शरीर बिल्कुल ही चलना बंद हो गया था अतः वह घर पर ही रहा करते थे।
रामलाल जी के कमरे से लगातार खांसने की आवाज़ आ रही थी।
बाहर से बेटे व बहू दोनों आपस में धीरे धीरे बातचीत कर रहे थे।
बहू(अलका)- क्या करें पिताजी तो दिन भर खांसते ही रहते हैं। सारा काम करके बैठती हूं, उसके बाद उनकी सेवा में लगे रहो।
तुम कोई वृद्ध आश्रम क्यों नहीं छोड़ आते ।
मेरी सहेली विभा ने भी अपने ससुर को वृद्धा आश्रम भेज दिया तब से वह दोनों बहुत सुखी हो गए।
बेटा(रमेश)-तुम्हारा दिमाग तो ठीक है कि नहीं। बिना सोचे कुछ भी बोलती रहती हो।
बहू-इसमें मेरा दिमाग क्यों खराब हैं तुम तो दिन भर काम पर चले जाते हैं मुझे दिक्कत होती है।
कल भी विभा के यहां किटी में जा ना सकी। और मेरी मां 2 दिन से मुझे बुला रही हैं उनकी तबीयत ठीक नहीं है बेचारी बूढ़ी है तो अपनी बेटी का इंतजार करती है।
बेटा-क्यों नहीं जा पा रही हो कोई बाबूजी रोकते थोड़ी है उनका काम करके चली जाओ फिर घर में बबलू भी तो है वह देख लेगा।
बहू - बबलू अभी 12 साल का है और उसकी कोई यह उम्र नहीं है कि वह बुड्ढे लोगों की सेवा करता रहे उसके पढ़ाई भी रहती हैं फिर यार दोस्तों में खेलता भी है उसका बचपन छीन लूं क्या?
बेटा-ज्यादा परेशानी है तो सारा सामान बाबूजी के कमरे में रख जाया करो फिर तुम आराम से चली जाए करो कोई प्रॉब्लम आएगी तो बाबूजी मुझे फोन कर देंगे।
बहू-तुम्हें शायद याद नहीं है पिछली बार जब मैं बाजार घर का सामान लेने गई थी तब बाउजी पलंग से गिर गए थे और तुमने ही आकर मुझे यह कहा था कि उनको अकेला छोड़ कर जाना नहीं है।
बेटा-तो बताओ क्या करूं? जिस दिन तुम्हें जाना हो मैं दुकान की छुट्टी ले लूंगा। पर बाउजी जब तक है तब तक तो हमें ऐसे ही रहना पड़ेगा।
रामलाल जी बेटे और बहू दोनों की बात सुन रहे थे उन्हें लगा कि चलो बहू तो बुढ़ापे में सेवा नहीं करना चाहती पर बेटा मेरा अपना है उसे मेरे लिए बुरा लग रहा है।
वह बहू बेटे की पुनः बातचीत रामलाल जी सुनने लगे।
बहू - हां हां तुम्हारी दुकान तो बहुत करोड़पतियों की दुकान है कि 1 दिन बंद कर दो तो कोई फर्क नहीं पड़े। 1 दिन दुकान बंद करने का मतलब है ₹1000की कमाई जाना।
इसका तो एक ही उपाय है कि बाबूजी को वृद्ध आश्रम भेज दो। मैं भी विभा की तरह स्वतंत्र होकर जी लूंगी।
बेटा- अलका (बहू) तुम बिल्कुल समझदार नहीं हो ।
बाबू जी और विभा के ससुर में कोई तो अंतर है। विभा के ससुर की कोई पेंशन थोड़ी थी। उनके तो प्राइवेट नौकरी थी उन्हें जो रिटायरमेंट के बाद पैसा मिला वह उन्होंने अपने बेटे और बेटी को बांट दिया। इसलिए विभा ने उन्हें वृद्ध आश्रम भेज दिया ।
रमेश (बेटा) थोड़ा ठहर कर अपनी पत्नी अलका से कहता है।
अलका मेरे पिताजी की तो पेंशन से हमारा घर चलता है।
मेरी छोटी सी दुकान से क्या होता है। उससे जो कमाई होती है वह तो सारी बबलू के भविष्य के लिए रख रहे हैं।
बबलू जब कॉलेज आएगा तब उसके लिए भारी-भरकम डोनेशन देना होगा। जब जाकर कॉलेज में एडमिशन लेगा।
अब जब तक पिताजी हैं थोड़ा निभा लो। अगर हम पिताजी का वृद्धा आश्रम छोड़ आए तो बैंक वाले हमें पेंशन नहीं देंगे। हम यही सोचकर पिताजी की थोड़ी सेवा कर लेते हैं कि उनकी सेवा के बदले हमें उनकी पेंशन घर के लिए मिल रही है।
पिताजी अंदर बैठे सब सुन रहे थे। उनके दिल को गहरा धक्का लगा। वह सोच रहे थे कि उनका बेटा उनके लिए बहु से लड़ाई कर रहा है पर वह तो बहू से भी बड़ा स्वार्थी निकला। उसे पिता से ज्यादा उनके पेंशन प्यारी है। वह उनकी जो देखभाल कर रहा है वह पेंशन के कारण कर रहा है। उन्हें समझ आ गया की असली में बुढ़ापे की लाठी बेटा नहीं उनकी नौकरी के बाद जो पेंशन है ,वह है।