Kumar Vikrant

Comedy Drama

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Kumar Vikrant

Comedy Drama

बसंती की झूमिया

बसंती की झूमिया

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छक्कन दादा की घुड़साल तीन पत्ती का खेल का खेल जारी था। रामगढ़ की बसंती और खानाबदोश छित्तर एक-एक बाजी जीत कर बराबरी पर थे अब तीसरा और अंतिम दांव लगने से पहले छक्कन दादा के आदेश पर हल्का नाश्ता और चाय आ गई थी। बसंती के चेहरे पर चिंता के भाव थे जबकि खानाबदोश छित्तर मुस्करा रहा था।

दो दिन पहले बसंती ने छक्कन दादा को बताया था कि खानाबदोश छित्तर रामगढ़ से उसके दारुबाज ममेरे भाई मुक्खा से उसकी प्यारी घोड़ी धन्नो की नातिन झूमिया को जुए में जीत लाया था और अब उस घोड़ी को वापिस करने के पाँच लाख मांग रहा है। बसंती ने बताया कि बीरु भी पक्का दारुबाज निकला और उसकी मेहरबानी से आज वो उसके छह बच्चों और उसकी दारू का गुजरा एक मामूली सा बुटीक चला कर कर रही है, उसके पास छित्तर को देने के लिए पाँच लाख नहीं है और उसे अपनी प्यारी धन्नो की निशानी झूमिया हर हाल में चाहिए।

इस बारे में छक्कन दादा ने छित्तर से बात की तो उसने झूमिया को पाँच लाख से एक पैसा कम में न देने से इनकार कर दिया। बाद में वो छक्कन दादा के बहुत समझाने पर बसंती के साथ तीन पत्ती की तीन बाजी खेलने को तैयार हुआ। दांव पर लगे थे छित्तर की जुए में जीती हुई घोड़ी झूमिया और छक्कन दादा की घुड़साल के दस बेहतरीन घोड़े। दांव बेमेल था लेकिन छक्कन दादा बसंती की परेशानी को देख कर इस महँगे दांव के लिए तैयार हो गया था।

जलपान खत्म हुआ और खेल पुनः आरंभ हुआ। पत्ते फिर से छित्तर ने बांटे और बसंती ने १० हजार का दांव और लगा दिया, थोड़ा सा क्रोधित होकर छित्तर ने भी १० हजार का दांव लगाया। बसंती ने लगातार १०-१० हजार के नौ दांव और लगाए और अब मेज पर २ लाख रुपए थे और घोड़ों का दांव तो खेल से पहले ही लगा हुआ था। छित्तर ने बाजी समाप्त करते हुए अपने कार्ड मेज पर शो के लिए पटके, पत्ते दमदार थे लाल ईंट के बेगम, बादशाह और गुलाम। जवाब में बसंती ने अपने पत्ते मेज पर रखे तो तीन इक्के देखकर छित्तर के होश उड़ गए।

"ये धोखा है, मैं इस खेल को नहीं मानता......." कहते हुए छित्तर ने अपनी पतलून से एक रिवॉल्वर निकाल ली।

"छित्तर तू हार चुका है, टेबल का रुपया और झूमिया को बसंती के हवाले कर दे......और ये रिवॉल्वर अपनी पतलून में खोस ले नहीं तो इस रिवॉल्वर सहित तुझे घोड़ों की लीद में दफ़न कर दूँगा।" छक्कन दादा गुर्रा कर बोला।

"पैसे तो कभी भी वसूल लूंगा तुमसे लेकिन झूमिया इसे किसी भी कीमत पर न दूंगा।" कहते हुए छित्तर अपने साथियों के साथ घुड़साल से भाग खड़ा हुआ।

"राजा, लखना, जुम्मन, खलीफा जाओ छित्तर के डेरे के सारे घोड़े-खच्चर हाँक लाओ, जो चूँ-चपट करे उसे इतनी मार लगाओ कि कम से कम छह महीने अस्पताल में गुजारे।

आधे घंटे बाद छित्तर के सब जानवर छक्कन दादा की घुड़साल में थे। छक्कन दादा के आदेश के अनुसार झगड़े पर आमादा छित्तर को इतना पीटा गया कि उसकी चीख-पुकार से उसके डेरे में हाहाकार मच गया, डेरे के सब लड़ाकू राजा, लखना, जुम्मन और खलीफा के पैरो में पड़ गए और उनकी अनुमति मिलते ही छित्तर को लेकर अस्पताल की तरफ दौड़ पड़े।

जब छक्कन दादा ने झूमिया की लगाम बसंती के हाथ में दी तो वो भाव विभोर होकर बोली, "दादा आज आपकी मेहरबानी से झूमिया मुझे फिर से मिल गई है......मैं आपका अहसान कैसे भूल सकूंगी?"

"कोई अहसान नहीं बसंती जी, आपने झूमिया को उसी दांव से जीता है जिस दांव से छित्तर ने उसे जीता था।" छक्कन दादा हँसकर बोला।

"मैं कहाँ की जुआरिन दादा, खेल भी आपने खेलना सिखाया और जीतना भी, दांव पर लगा पैसा और घोड़े सब आपके थे।" बसंती झूमिया को सहलाते हुए बोली।

"जीता हुआ एक लाख तो तुम्हारा है........." छक्कन दादा बोला।

"मुझे नहीं चाहिए वो पाप की कमाई, मैं अपने छोटे से बुटीक की कमाई, पति और बच्चों में खुश हूँ।" बसंती मुस्करा कर बोली।

छह महीने बाद

"दादा बहुत बड़ी भूल हुई उस दिन जो आपके सामने रिवाल्वर निकली, मुझे माफ़ कर दो और मेरे जानवर वापिस कर दो मुझे अब दूसरे शहर की और कूच करना है।" छित्तर ने छक्कन दादा के पैरो में लोटते हुए कहा।

"आज मैं राजा, लखना, जुम्मन और खलीफा से बहुत खुश हूँ उनकी मार खाने के बाद पूरे छह महीने बाद अपनी पिटी शक्ल लेकर मेरे पास आया है, कहाँ था तू?" छक्कन दादा ने हँसकर पूछा।

"दादा सरकारी अस्पताल के जनरल वार्ड में था....... दादा माफ़ कर दो मुझे........" छित्तर नकली आँसू बहाते हुए बोला।

"माफ़ तो कर दूँगा तुझे लेकिन कभी भूले से भी बसंती जी और झूमिया के चक्कर में पड़ा तो तुझे सारी दुनिया से तलाश करा लूंगा और यही घोड़ों की लीद में दफ़न कर दूँगा तुझे।"

"नहीं पडूँगा दादा।" छित्तर ने छक्कन दादा के पैरो में नाक रगड़ते हुए कहा।

"ठीक है, ठीक है, अब ज्यादा ड्रामा न कर।" छक्कन दादा चिढ़ कर बोला और घुड़साल के मुंशी को आदेश दिया, "मक्खन बेटे इसके जानवर छोड़ दे और उस दिन तीन पत्ती के खेल में इसने जो एक लाख हारा था उसमें से इसके जानवरों के दाना-चारा का खर्च काट कर इसे वापिस कर दे।"

थोड़ी देर बाद खानाबदोश छित्तर अपने जानवर और जुआ में हारा पैसा लेकर छक्कन दादा की जय-जयकार करता हुआ घुड़साल से कूच कर गया।


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