STORYMIRROR

Sarvesh Saxena

Abstract

4  

Sarvesh Saxena

Abstract

बसंत ऋतु और वो पेड़

बसंत ऋतु और वो पेड़

1 min
659

पता है...

बसंत ऋतू चल रही है...

रोज सुबह जाते वक़्त रास्ते में हरे पेड़... रंग बिरंगे फूल... मन को भाते है...

पर मैं न जाने उसी को निहारता रहता हूं...

मानो वो इन सबसे अधिक सुन्दर हो...

ऐसा भी तो नहीं


वो सुखा पेड़... सुखी फैली हुई तन्हाइयां...

उसे देख लगता जैसे बसंत इसे जलाकर चला गया...

सब पेड़ उस पर हँस रहे हो... तेज़ हवाओं ने उसे नंगा सा कर दिया... मैं एक टक उसको निहारता रहा जब तक वो आँखों से ओझल नहीं हो...


ऐसा लगता है जैसे वो सूखा पेड़ मुझे कुछ बताना चाहता हो... और मैं उस से कुछ कहना... आज बैठ उसके बारे में सोच ही रहा था की याद आया...


हम तो सूखे पेड़ के नीचे ही मिले थे... कितने ही हरे भरे पेड़ों के बीच वो सूखा पेड़... पर उस दिन वो खामोश नहीं था...

उस दिन उस पेड़ पे उम्मीदों की न जाने कितनी कोमल पत्तियां निकल पड़ी थी... खुशियों के फूल एकाएक उस पेड़ पे उभर आये थे...


लेकिन अब ये पेड़ वैसा नहीं रहा... इसकी शाखें टूटती जा रही है...

एक एक करके वक़्त की आंधियों में... सोचता हूँ की एक दिन रस्ते में बस से उतार के उससे पूछ लू उसका दुख...

फ़िर ख्याल आता है की... गर पूछ बैठा वो मुझसे मेरा हाल तो उसे क्या बताऊंगा…

समाप्त।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract