मानवता
मानवता


पसीने से तर मोहित और उसके मां-बाप सड़क पर निकलने वाली गाड़ियों को बड़ी उम्मीद से देखते, उनका मन गरीबी और लाचारी से तो पहले ही बहुत दुखी था लेकिन इस कोरोना वायरस ने तो जैसे उनकी जिंदगी में तूफान ला दिया था, अब बस उनकी एकमात्र इच्छा थी कि कैसे भी वो अपने घर पहुंच जाएं तभी एक कार को रुकता देख दस साल का मोहित कार की तरफ भागने लगा और जाकर कार के पास खड़ा हो गया।
उसे देखते ही कार के शीशे नीचे होने लगे और कार से निकलने वाली एसी की हवा मोहित के गर्म चेहरे को छूने लगी तो उसे बड़ा सुकून मिला कि तभी गाड़ी से मीडिया वाले निकले और मोहित और उसके मां-बाप से सवाल जवाब कर अपनी न्यूज़ का मसाला तैयार करने लगे।
काफी देर बात करने के बाद औरत बोली, "तो दर्शकों यह था एक मजबूर मजदूर का दर्द, जिसे देखकर शायद ही किसी की आंख नम ना हो, इस मासूम की आंखें पूछती हैं कि सरकार क्या कर रही है? यह गर्भवती औरत और कितना चलेगी? इस बाप को देखिए जिसके दोनों हाथों में सामान है और कंधे पर एक बच्ची, मैं सरकार से पूछती हूं कि क्या यह देश के नागरिक नहीं? क्या ये पैदल भूखे प्यासे अपने घर जाएंगे"?
ये कह कर मीडिया वालों ने मजदूरों से कहा,
" अच्छा इंटरव्यू के लिए धन्यवाद, हम आपकी बात ऊपर तक पहुंचाएंगे।"
यह कहकर गाड़ी धूल उड़ाती हुई चली गई और मोहित देखता रह गया।
मोहित बोला," मां ये लोग भी तो हमारी कुछ मदद कर सकते थे" बच्चे की बात सुनकर मां बाप का दिल भर आया, मजदूर पिता ने कहा, "बेटा हम मजदूर की यही तकदीर है, हम पर दया सबको आती है पर हमारे लिए दानी कोई नहीं बनता, इनके लिए यही मानवता है ।"