ब्रेड का टुकड़ा
ब्रेड का टुकड़ा
दयाराम बैंक में काम करते थे। उनके चार बेटे थे। चारों को पढ़ा लिखा कर योग्य बनाया। उनके सभी लड़के सरकारी नौकरी करते थे। उनके सभी बच्चे किराए के मकान लेकर रहते थे।
एक समय ऐसा आया, कि सभी चारों लड़कों ने घर का बटबारा करने के लिए अपने माता पिता को विवश कर दिया।
एक दिन उन चारों लड़कों ने उस घर का बटवारा कर दिया, जो घर पिता ने अपनी मेहनत की कमाई से बनाया था। कुछ साल बाद फिर चारों ने मिलकर उस मकान को बेच दिया और जो कीमत मिली वह आपस में बांट ली।
आगे की शेष जिंदगी बिताने के लिए उनके माता-पिता क्रमशः एक-एक वर्ष के लिए उन सभी के पास रहते थे।
एक दिन उन बच्चों की मां गुजर गई और पिता अकेले पड़ गए। वह पत्नी की जुदाई सह नहीं सके। इस कारण उनकी मानसिक स्थिति भी बिगड़ गई थी। उनकी स्थिति पागलों जैसी हो गई थी। उनको होश नहीं रहता था कि वह कहां सो रहे हैं, कहां बैठे हैं।
एक दिन घर से बाहर निकल गए और वर्षों तक अपने घर लौटकर नहीं आए। किसी को नहीं पता था वह कहां पर है।
एक दिन उनके दोस्त राघवेंद्र ने उनको रेल की पटरियों पर सवारियों द्वारा फेंका गया खाने का सामान बीनते हुए देखा। राघवेंद्र ने देखा कि उनके हाथ में एक ब्रेड का सड़ा हुआ टुकड़ा है। जो ब्रेड की सवारी नहीं व्यर्थ समझ कर सकती थी। उस ब्रेड को दयाराम बड़े प्यार से साफ करके खा रहे थे। राघवेंद्र ने उनको पहचान लिया और अपने दोस्त की दयनीय हालत देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए।
राघवेंद्र ने पुकारा:- "दयाराम सर....दयाराम सर !क्या कर रहे हो यहां पर ?आओ चलो मेरे साथ।"
क्या हालत बना रखी है आपने!"
लेकिन दयाराम, राघवेंद्र को नहीं पहचान सके।राघवेंद्र दयाराम को जबरदस्ती अपने घर लेकर आए।उनको नहलाया धुलाया और नए कपड़े पहनाए\
"मित्र है बहुत विचित्र है"
जिंदगी में अच्छे मित्र बनाना चाहिए।
