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Sangita Tripathi

Inspirational

3.6  

Sangita Tripathi

Inspirational

बराबरी सोच की या कहने की

बराबरी सोच की या कहने की

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पता हैं तुम्हें जब छोटी थी तब से सुनती आ रही सब बराबर हैं बेटा- बेटी। सबको समानता का अधिकार हैं। पर फिर भी समाज ये जता देता था कि लड़का लड़की में अंतर हैं। तुम ठीक से बैठो। घर के काम सीखो। ।लड़कियो को आना चाहिए सारे काम लड़को से दोस्ती मत करो रात में कहीं मत जाओ। इतनी जोर से मत हँसो। ये माँ कह देतीं थी । मेरे लिए मापदंड अलग थे और भाई के लिए अलग । जब माँ से पूछो तो वो बोलती तुम लड़की हो वो लड़का तो क्या हुआ आप ही तो कहती हो दोनों बराबर हैं माँ बोलती थी हाँ मेरे लिए तो दोनों बराबर हो। पर मेरा अबोध मन नहीं समझ पाता था इस बराबरी कि परिभाषा को जो भाई के लिए अलग था और मेरे लिए अलग 

शादी हुई तो कहा गया पति और पत्नी गाड़ी के दो पहिये हैं जिनके संतुलन से ही दाम्पत्य जीवन चलता हैं यहाँ भी समानता की परिभाषा नौकरी तो हमदोनो ही करते थे पर घर आ पति अख़बार ले बैठ जाते थे और मैं किचन में खाना बनानेये कौन सा बराबर का अधिकार था पांच बजे अलार्म की आवाज से ही मेरी दिनचर्या शुरू हो जाती हैं। तब तक पति सोये रहते थे। सास -ससुर को चाय देने की बाद ही अरुण यानि पति देव को उठाती थी सोचती काश ऐसा होता मैं सो रही होती और अरुण मेरे लिए चाय बना कर लाते । सो कर उठते ही गर्म पानी, खाना सब तैयार मिलता अगर ऐसा होता तो सब कहते कितनी आलसी हैं बराबरी की बात किसी को याद नहीं रहती।

कार्यस्थल पर भी यदि मैं अपने सहयोगी से काम में आगे हूँ तो मुझे। सराहना तो मिलेगी पर प्रमोशन सहयोगी पुरुष को ही मिलेगा। मुझे नहीं अरे ये बहुत तेज हैं। अपने घर में सब पर हावी रहती होंगी। कोई मीटिंग हो या कॉन्फ्रेंस। सुनने में आएगा की हमारे यहाँ महिला और पुरुष कर्मचारी बराबर माने जाते हैं। 

अगर आप और पति एक ही कार्यालय में काम करते हैं तब तो और मुसीबत । आपका प्रमोशन हो गया और पतिदेव का नहीं तो लोग आपको बधाई नहीं देंगे पर पतिदेव से सहानभूति प्रगट करने जरूर आएंगे और ऐसा जताएंगे गोया मैंने पतिदेव का प्रमोशन छीन कर ले लिया। या महिला होने का फ़ायदा मिल गया मुझे। मैं बचपन से इस बराबरी की परिभाषा को समझने का प्रयत्न कर रही। आज तक समझ में नहीं आया। माँ बनने के बाद मैंने कोशिश की मै अपने बच्चों को बराबरी का अधिकार दूँ। बेटी के लिए मै हमेशा खड़ी रहती तो बेटा बोलता आप तनु को ज्यादा प्यार करती हो। हमें बराबर प्यार नहीं करती सच कह रहा वो शायद मै अपनी आपबीती की वजह से ज्यादा सतर्क हो गई 

पर बेटी की शादी के बाद विदाई में उसकी सास बोली बहू तुम और मेरा बेटा दोनों मेरे लिए बराबर हो रोते हुये भी मेरे कान खड़े हो गये फिर बराबरी वाली बातआजतक तो मैंने बराबरी की सिर्फ बात ही सुनी महसूस नहीं कराया किसीने 

हर रिश्ते में बराबरी का अधिकार देना ही चाहिए । समय बदल रहा सोच का मानक भी बदल रहालड़कियां भी पढ़ लिख कर आगे बढ़ रही उनके माँ बाप भी उनकी पढाई लिखाई के प्रति सतर्क हैं बराबरी के साथ ही व्यक्ति, देश समाज आगे बढ़ता हैं इसलिए हमें अपनी सोच को खुला रखने की जरूरत हैं। बस हमें बराबरी के अधिकार का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए। एक खुला आसमां सबके लिए तैयार खड़ा हैं। 


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