Dr. Vikas Kumar Sharma

Drama

5.0  

Dr. Vikas Kumar Sharma

Drama

बँटवारा

बँटवारा

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पड़ोस में रहने वाले मेरे मित्र आकाश ने घर के नीचे से आवाज लगाई। मैं बाल्कनी में गया। आकाश ने कहा, “आओ मेरे पुराने घर घुमा कर लाता हूँ।” रविवार का दिन था। छुट्टी थी। मैं घर पर ही था। मैंने भी हाँ भर दी। रास्ते में मैंने आकाश से उसके पुराने घर के बारे में भी पूछा। आकाश बोला, “अब भी हर जगह पुराने घर का पता ही चल रहा है। कोई चिट्ठी या पत्री आने पर ही वहाँ जाना होता है। मेरा बचपन वहीं बीता है। बहुत धुंधली-सी यादें है क्योंकि मैं उस समय बहुत छोटा था।”


घर में घुसते ही एक बैठक थी जो की दादा जी का कमरा था। बैठक में दीवार पर चारों ओर देवी-देवताओं की फ्रेम की हुई फोटो लगी थी। बैठक में एक मुझारी थी जिसमे पुराना सामान पड़ा रहता था। हम बच्चे उस मुझारी में जाने से डरते थे। बैठक के सामने दहलीज थी और दहलीज में ऊपर एक टाँड बनी थी जिसमें कुछ सामान रखा था। घर में एक कोठरी भी थी जिसमें लाल निकर और नीली शर्ट पहने एक मिट्टी का बना हँसता हुआ गुड्डा रखा था। घर में एक बड़ा आंगन था। उस आंगन में एक नलका भी था। मुझे याद है दादा जी नलका चला रहे थे और हम बच्चे शरारत करते हुए नलके के नीचे नहा रहे थे। लोगों में आपस में बहुत मेलजोल व प्यार था। पूरे मोहल्ले में सबसे पहले हमारे यहाँ ही बड़ा ब्लैक एंड व्हाइट टी. वी. आया था। रात को आंगन में भीड़ रहती थी। सभी मोहल्ले वाले चित्रहार व नाटक देखने हर रोज नियम से आठ बजे ही पहुँच जाते थे और रविवार सुबह रामायण देखने भी उतनी ही भीड़। अपने ही घर में पाँव रखने की जगह नहीं होती थी।


एक बार खबर फैली कि शहर में पूतना राक्षसी आने वाली है। यह सुन कर हम सब बच्चे रोने लगे। दादा जी बोले अपने मोहल्ले में हनुमान जी का पहरा है इसलिए कोई राक्षसी नहीं आ सकती। तब जाकर बच्चे चुप हुए थे। 

शरीर पर तेल व ग्रीस लगाए कच्छाधारी चोर का डर और उसे पकडऩे के लिए मोहल्ले वालो का रातभर लाठियों के साथ पहरा देना, रात को छत पर सोने के बाद खरोंचें मारने वाले बिज्जू का आतंक, नास्त्रेदम की संसार के खत्म होने की भविष्यवाणी सभी यादें पुराने घर से जुड़ी है।


बहुत धुंधली सी यादें है। उस समय बहुत छोटा था। रात का समय था। आंगन में तारों पर गीले कपड़े सूख रहे थे। शायद थोड़ी देर पहले ही धुले थे। परिवार के लोग आपस में कुछ बातें कर रहे थे। हलचल कुछ ज्यादा लग रही थी। धीरे धीरे लगने लगा शायद लड़ाई या कोई तीखी बहस हो रही थी। बालक मन था। कुछ अच्छे से समझ नहीं पाया। बड़ा होने पर पता चला कि उस दिन छोटी दीवाली थी। रोज-रोज घर में होने वाले झगड़ों से छुटकारा पाने के लिए पिता जी व माता जी को वह घर छोड़ना पड़ा और हम सब बच्चों को साथ लेकर वहाँ से निकल गए। रात को ही दूर किसी मोहल्ले में एक किराए का मकान लिया। घर से निकलते समय कुछ भी सामान साथ नहीं लिया था। माहौल ऐसा हो गया था कि घर में उनकी बात तक नहीं होती थी।


ठीक उस फिल्म के गाने की तरह लग रहा जिसमे लिखा था:

वो गलियाँ वो चौबारा

वहाँ जाना ना दोबारा

अब हम तो हुए परदेसी

के मेरा वहाँ कोई नहीं

के मेरा वहाँ कोई नहीं

एक समय ऐसा लग रहा था कि फिर कभी वहाँ जाना व मिलना नहीं हो पाएगा।

पिता जी की कड़ी मेहनत व माता जी के धैर्य की वजह से काफी लंबे समय बाद जीवन पटरी पर आ रहा था। 


पुराने घर में कभी-कभी आना जाना शुरू तो हो गया था। परन्तु घर पर किसी की पहले से ही बुरी नजर लग चुकी थी। शायद किसी दुखी आत्मा से घर, परिवार व मोहल्ले का प्यार नहीं देखा गया। दादा जी के जाने के बाद घर को लेकर कलह होने लगी और घर के आंगन में दरार आ गई।

आज उस आंगन का बँटवारा हो चुका है। पुराने घर को ढ़हा दिया गया था। नए घर के दो हिस्से हो गए है। ना अब वहाँ कोई आंगन है, न कोई बैठक, न कोई दहलीज, न ही कोठरी में बैठा वो हँसता हुआ गुड्डा और न ही मेलजोल व प्यार रखने वाले लोग। भूरा, घोलु, गोपाल, मोटी ताई, प्यारेलाल ताऊ जी सभी मोहल्ला छोड़ कर जा चुके है। मोनू और पप्पी तो छोटी उम्र में ही भगवान को प्यारे हो गये। अब तो वहाँ जाने का बिल्कुल भी मन नहीं करता। बस कोई जरूरी काम हो तभी जाना होता है। बँटवारे से मोहल्ले में मकानों की संख्या तो बढ़ गई है पर घर कम हो गए है।


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