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Lokanath Rath

Tragedy Classics Inspirational

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Lokanath Rath

Tragedy Classics Inspirational

बितेहुए पल

बितेहुए पल

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जिंदगी कब कैसे बदल जाता है, ये कभी कभी इनसान को खुद ही पता नहीं चलता।कभी कभी कुछ ऐसा काम खुद कर्जता है की जिसके बारे में कभी सोचा ही नहीं होगा।पर ये सत्य है की हर कामियाबी के लिए इनसान का खुदकी मेहनत और लगन के साथ किसी न किसीका कोई छोटीसी बात जुड़ा होता है। आज जब मनोज प्रसाद देश की कुछ जाने माने काबियों में गिने जारहे है और बहुत सारे हिंदी चलचित्र में उनकी लिखी हुई गाना लिया जा चूका है तो मनोज को इस सबको सोचते हुए कभी कभी बिस्वास नहीं होता है। आज मनोज को बुलाया गया हिंदी चलचित्र के श्रेष्ठ पुरस्कार बितरण समारोह में, कियूं की उनकी लिखी हुई दो गीत को चुना गया श्रेष्ठ गीतिकार के लिए।

मनोज प्रसाद बचपनसे अपनी पिता अशोक प्रसाद और माता निर्मला देबि के साथ ओडिसा में रहे है। वहॉँ उनकी पिता अशोक एक निजी संस्था में नौकरी करते थे और माता एक गृहिणी थी।उनकी पढाई लिखाई सब ओडिसा में हुआ और ओड़िआ बिद्यालय में ही हुआ है।वो एक मध्यबित्त परिबार से थे। पढाई के साथ साथ मनोज ओड़िआ बक्तृता में भी भाग लेते थे और बहुत पुरस्कार भी जीते है। उनकी पिता अशोक उनको बोलते थे अचे पढाई करके कोई बड़ा सरकारी अधिकारी बनना। उनकी माता निर्मला देबि ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है पर वो मनोज को बोलती थी, ''बेटा तुम्हे जो अच्छा लगता है वही करना और थिकसे करना। ऊपरवाला सदा सही काम करने के लिए मदत करता है।'' मनोज को उनकी माताजी के बात पसंत आता था और वो खुदको अच्छा और कामियाब बनाने भरपूर प्रयास करते थे। बिद्यालय में सारे टीचर भी उनको पसंद करते थे।जब वो नवी पढ़ते थे तब उनके जीबन में एक बिचित्र घटना घटी। उनकी बिद्यालय की हिंदी बक्तृता प्रतियोगिता के लिए उनकी हिंदी टीचर महमद इस्माइल ने उन्हें जबरदस्ती की और भाग लेने के लिए मजबूर किए। मनोज बिलकुल घबरा गए, कियूं की उनकी हिंदी इतनी अछि नहीं थे। ओड़िआ भासा में सरे पढाई होता था, इसीलिए हिंदी के लिए कभी ध्यान नहीं दिए। वो दर रहे थे की उनका बोलने में ब्याकरण की बहुत गड़बड़ होगा। डर डर के मनोज प्रतियोगिता में भाग लिए, अच्छे बोलते गए पर सुरु से अन्त तक पुरे का पुरे ब्याकरण में गड़बड़ी किए। मनोज बहुत डरे हुए थे और खुदको शर्म भी आरहा था। ये देखकर उनकी इस्माइल सर आकर मनोज के कंधे पर हाट रखकर बोले, ''बहुत बढ़िआ बोलै बेटा। अबसे थोड़ा हिंदी भासा में देना और हिंदी के किताब पढ़ते रहना, देखोगे तुम्हारा हिंदी सबसे बेहतरीन होगा।'' मनोज थोड़ा आस्वस्त हुए और तब से अपनी हिंदी का शुद्धिकरण करने लगे।

फिर मनोज ने दशवी ख़तम करके कालेज की पढाई भी ख़तम किए। बिद्यालय के दिनों से मनोज ओड़िआ में कबिताएंऔर कहानीया लिखा करते थे। पढाई के साथ साथ उनका लिखना भी चालू था। पढाई ख़तम करके मनोज एक निजी संस्था में नौकरी करने लगे। नौकरी में उनको ओडिसा के बहार काम के लिए जाना पड़ता था, जिसके लिए उनको हिंदी और अंग्रेजी में बहार बातचीत करना पड़ता था।एहि बार बार बातचीत करने में उनकी हिंदी और अंग्रेजी अच्छा होने लगा। फिर उनकी शादी अनीता से होगया।मनोज शादी के दो साल बाद एक बेटा अरुण के पिता बने और फिर तीन साल बाद जब अरुण तीन साल का था आरती, उनकी बेटी ने जन्म ली। दोनों बचे बड़े होकर पढ़ने लगे। जब अरुण १५ साल का था तब उनकी माता जी का निधन होगया।मनोज बहुत टूट गए, कियूं की उनकी माता सदा उनको अछि प्रेरणा देती थी। मनोज जब भी कुछ कबिता लिखते थे अपनी पत्नी अनीता को सुनते थे, वो बहुत पसंद करती थी। अब मनोज ओड़िआ, हिंदी और अंग्रेजी में लिखने लगे। उनकी कबिता और कहानी का बहुत आदर हुआ और उनको बहुत सम्मान पुरस्कार के साथ मिला। तब अचानक उनकी पत्नी अनीता की भी निधन होगयी। अब बूढ़े बाप और बच्चों के सारे जिम्मेदारी मनोज को उठाना पड़ा। तब उनको लिखने को समय नहीं मिला।कुछ साल बिट गया बेटा अरुण ने इंजिनीअर बनगया और बेटी आरती भी इंजिनीअर बनगयी। उनके पिताजी के फिर हृद्यघात में निधन होगया। फिर एक दिन उनकी पुराने दोस्तों ने मिले और सबकी एक व्हाट्सअप ग्रुप बनाये। उनकी दोस्तों ने उनको प्रेरित किए लिखनेके लिए। फिर मनोज ने लिखना सुरु किए और उनकी कबिता को लोग बहुत आदर करने लगे।धीरे धीरे देश के अंदर कुछ कुछ साहित्यिक सन्स्थान के साथ वो जुड़ गए। फिर एक हिंदी चलचित्र के संगीतकार ने उनको एक चलचित्र के कुछ गाना लिकने को बोले। मनोज लिखे और उनकी फिर कुछ संगीतकारों से जुड़ना सुरु होगया। आज पहेली बार हिंदी चलचित्र के पुरस्कार समारोह में उनकी दो चलचित्र के गाना के लिए चुने गए श्रेष्ठ गीतकार के लिए।

मनोज ये सब सोच बितेहुए पल को याद कर रहे थे की उनका नाम श्रेष्ठा गीतकार के चुनागया बोलके मन्च से बोलै गया। मनोज बहुत खुस होगये उनकी ये पहला सबसे बड़ा पुरस्कार के लिए और मन्च के और बढे। वहॉँ पुरस्कार लेते हुए जब उनको कुछ बोलने के लिए बोलै गया तो मनोज ने बोले, '' ये पुरस्कार में मेरा बचपन के हिंदी टीचर दीबंगत महमद इस्माइल जी को समर्पित करता हूँ, जिन्होंने मुझे हिंदी भासा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा दिए थे।''

मनोज के ये बात सुनकर सारे कलाकार लोग तालियाँ बजाते गए .उनकी बेटा अरुण और बेटी आरती भी बहुत खुस होकर खड़े होकर ताली बजाते रहे। मनोज उनकी बितेहुए पल को सलाम करते हुए मन्च से उतरने लगे।



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