बिरिसा देवी
बिरिसा देवी
तक़रीबन साठ साल पहले की यह घटना होगी।
सिनॉल द्वीप के पास वाले बिरिसा गाँव में एक बेहद खूबसूरत गुड़िया रहती थी। उसकी पलकें भी जापानी गुड़िया सी लपक झपकती रहती।
नाम तो उसका सिमोनी था। पर उस नाम से उसे कोई नहीं पहचानता था।
प्रायमरी स्कूल की पढ़ाई उसीके गाँव में हुई। लेकिन, सेकंडरी स्कूल में पढ़ने के लिए उसे तालाब पार करके दूसरे गाँव जाना पड़ता था।
गुड़िया के माँ बाप से अधिक उसके गाँव वाले ही नहीं चाहते थे, कि, उनके गाँव की शान दूसरे गाँव अकेले पढ़ने के लिए जाएं।
तो, गाँव के सारे बुजुर्गों ने मिलकर एक निर्णय पक्का कर लिया। हर एक घर के मियां - बीवी गुड़िया को छोड़ने और लेने उसके स्कूल में जायेंगे।
और शनिवार को वो अपने माँ बापू के साथ आ जाया करेगी।
सिनॉल द्वीप के पास वाले गाँव में 50 साल बाद ये गुड़िया का जन्म हुआ था। तो उनके हिसाब से ये उनके बिरिसा गाँव की देवी माँ ही थी।
सिमोनी उर्फ गुड़िया की सेकंडरी की पढ़ाई भी तकरीबन खत्म होने को ही थी। कि एक दिन, तालाब में पानी सतह से ऊपर तक आ गया।
नाव से उस पार जाना मुश्किल होने लगा। पंडित राव के पति पत्नी गुड़िया को लेकर लौट रहे थे। और तालाब का पानी बढ़ता ही जा रहा था।
पंडित और पंडिताइन ने गुड़िया को उसी गाँव में ठहराने का इंतजाम करना चाहा।
शाम ढलने तक गुड़िया घर न लौटी। तो, गाँव वाले सारे परेशान होने लगें। पूरा गाँव तालाब के दूसरे किनारे पर ऑंखें जमाये बैठा रहा।
पानी का बहाव रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। बिरिसा गाँव के चार नौजवानों ने कसम खाई की वे अपने गाँव की देवी को वापस जरूर लेकर आयेंगे।
तालाब में बढ़ते जा रहे पानी में बहाव की दिशा में तैरते हुए चारों ने दूसरे छोर तक पहुँचने का अपना पक्का निश्चय और भी मजबूत कर दिया।
पानी का बहाव हर पल और तेज़ होता जा रहा था। दूसरे गाँव की ओर बढ़ रहे चारों नौजवानों को देख पंडित और पंडिताइन की जान में जान आई।
ईश्वर को प्रार्थना करते हुए शाम ढलने लगी। चारों नौजवानों को कुछ पल पहले देखकर खुश हो रहे दोनों की आँखें नम होती चली गई।
चारों नौजवान तालाब के किनारे आते आते ही तेज़ बहाव में बहते कहीं दूर निकल गए। किसीका कोई अतापता न मिला।
पंडिताइन और पंडित जी के साथ गुड़िया भी स्कूल के पास वाले दूसरे गांव के बाहरी इलाके में रुके।
बारिश के थमने का काफी देर तक इंतजार किया। पानी पी पीकर भी कितना वक्त गुजार पाते!
रात को भूख लगी। पर खाने को साथ में कुछ भी न था। पंडित जी गांव में घर घर जाकर भिक्षा मांगकर लाये।
पंडिताइन ने भिक्षा से लकड़ी के चूल्हे पर भोजन पकाया। और गुड़िया को खिलाकर फिर खुद खाने का दोनों सोचने लगे।
पर गुड़िया ने मिलकर खाने की बात कही। पंडित जी को गुड़िया पर गर्वित हो गए। और हाथ जोड़े ईश्वर से गुड़िया की सलामती की प्रार्थना करने लगे।
साथ मिलकर केले के एक ही पत्राले पर खाना खाकर तीनों अंगीठी जलाकर आसपास ही सो गए।
आधी रात के करीब गुड़िया की आँख खुली।
और,
अपने रखवाले पंडित जी और उनकी धर्मपत्नी की सुरक्षा हेतु कुछ निश्चय कर उस
रात को पहरा देने के लिए गुड़िया जागती रही।
थके हारे पंडित और पंडिताइन दोनों गहरी नींद में सो रहे थे।
अंगीठी का इलाका छोड़ गुड़िया तालाब के किनारे जाकर कदमताल करने लगी। कुछ ही समय बिता होगा कि, वहाँ पर उसने लालधारी डाकुओं की टोली को अपनी ओर आते हुए देखा।
गुड़िया ने तालाब की उत्तरी दिशा में पंडित जी से कहीं दूर भागना आरंभ कर दिया।
काफी दूर आ जाने पर गुड़िया ने डाकुओं के सामने आने की जुर्रत दिखाई।
डाकुओं को जवां लड़की की चाह ने पागल बना दिया। गुड़िया को ले जाने की जद्दोजहद कोशिशें करने लगे। तभी कहाँ से पंडित जी ने जान पर खेलकर गुड़िया को बचाने के लिए युद्ध छेड़ दिया।
अपने पति को डाकुओं के हाथों बेमौत न मरने देने के लिए पंडिताइन ने बिरिसा गाँव की परंपरा और देवी माँ की बात डाकुओं को बताई।
जग्गा डाकू ने चमत्कार बतलाने की मांग करके गुड़िया को बाइज़्ज़त छोड़ने की शर्त रखी।
गुड़िया ने आज तक अपने बारे में गाँव वालों से देवी होने की बात सुनी थी। पर कभी उसने उससे अधिक कोई चमत्कार होते हुए नहीं देखा था।
अब, खुद से ज्यादा पंडित जी और उनकी पत्नी की श्रद्धा को टूटने से बचने के लिए कोई जादू या चमत्कार दिखलाना जरूरी हो गया।
बहोत सोचने पर्5 भी उसे कोई नायाब तरीका न सुझा। जिससे वो चमत्कार दिख सकें।
की अचानक नीले काले आसमान में बादलों की दीवारें एकदूसरे से टकराने लगी। चंदेरी बादलों की कोर सुनहरी होने लगी। उस सुनहरी किनारियों से चंद्र की चाँदनी के साथ साथ सूरज की किरणें भी झगमगाने लगी।
अष्टमी की घनघोर काली बरसाती रात में चंद्र के साथ सूर्य का चमकना कोई चमत्कार से कम न था।
उसमें रात भर बिजलियाँ भी चमकने लगी। शांत ठहरी हुई बारिश का मंज़र ही पलभर में बदल सा गया। और मूसलाधार बारिश होने लगी।
डाकू के सरदार जग्गा को अपने निजी फायदे के लिए गुड़िया की मौजूदगी खलने लगी। और वो अपना वादा तोड़ते हुए गुड़िया की ओर आगे बढ़ने लगा। उसे छेड़ने के अंदाज़ में उसकी ओर अपनी शमशेर आगे कर दी।
उसी पल कहीं से तो बिरिसा गाँव के चारों नौजवान वहाँ पर आ धमके। उन्होंने डाकुओं से जमकर पथराव किया और अपने आप के साथ साथ गुड़िया को भी बचाने की कोशिशों में लगे रहे।
लेकिन,
डाकुओं से लड़ने में बंदूक की गोलियों के सामने ज्यादा देर तक न टिक पाने से चारों के चारों बारी बारी से शहीद हो गए।
अब बारी आई
पंडिताइन पर हमला करने की। डाकुओं को गुड़िया को अगवा करने में बीच में आ रही एक के बाद एक अड़चनों से झुँझलाहट महसूस होने लगीं।
आज तक के सौ से भी ज्यादा दौरे पर कभी भी इतनी मेहनत न करनी पड़ी होगी। कि जितनी आज एक नाबालिग़ कन्या को उठवाने में होने लगी थी।
सब तरफ से निराशा हाथ लगने पर गुड़िया ने जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया।
निम्बल गाँव वासी शोरगुल सुनकर कबीले की ओर लपके।
कबीले में नीरव शांतता देख उनकी निगाहें घनघोर बारिश में भी उल्लुओं की भाँति चहु ओर बारीकियों से देखने लगी। कि, तभी उनकी नज़र उत्तरीय छोर पर टिक गई।
कुछ आकृतियाँ तलवार और बंदूकची को लेकर इधर उधर घूमती हुई नजर आई।
तभी
गुड़िया की चीख सुनकर निम्बल गाँववालों का झुंड़ चारों ओर से डाकुओं को घेराबंदी कर जमा होने लगा।
डाकुओं के तो बंदूक होने पर्5 भी होश फ़ाख्ता होने लगे।
सबने एक साथ मिलकर डाकुओं का सामना करते हुए मारने लगे।
सूर्यदेवता भी सातों घोड़ों पर होकर सवार सुबह का आगाज़ करने लगे।
बारिश भी थम चुकी थी अब तक।
प्रातःकाल शनिवार का दिन था।
अपने माँ और बापू के संग आने वाली गुड़िया निम्बल गाँव वालों के साथ कल वाले पंडित जी और पंडिताईंन के संग आते देख स्कूल का स्टाफ और प्रिंसिपल भी चकित हो उठे।
रातभर का पूरा वाक़्या सुनने के बाद प्रिंसिपल के द्वारा द्वीपसमूह की सरकार से निवेदन किया गया।
और तीन गाँवों को जोड़ने वाले उस तालाब के ऊपर पुल बंधवाने की मांग की गई।
और गुड़िया की बहादुरी एवं दैवीय शक्ति की मिसाल कायम होने लगी।
राज्य स्तर पर गुड़िया को पुरस्कार दिया गया।
एवं उन चार नौजवानों की वीरता पूर्ण शहादत के चलते पुल उन्हीं के नाम से जाना जाने लगा।
सरकार ने
बिरिसा गाँव में भी गर्ल्स स्कूल बनवाने का वादा करते हुए स्कूल के इंचार्ज गुड़िया के माँ बापू को ही बनाया।
सिनॉल द्वीप दक्षिणी ध्रुव के ऊपरी छोर पर सम्मानित होकर कई वर्षों तक गुड़िया से अभिभूत रहा। और बिरिसा देवी के आशीर्वाद से जीवित रहा।