बिड़ला विद्या मंदिर नैनीताल ८

बिड़ला विद्या मंदिर नैनीताल ८

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आठ साल की उम्र में १९६७ जुलाई के शुरू में पांचवी कक्षा में बिड़ला विद्या मंदिर जौइन किया था। चार साल ब्रिन्टन हाल में आदरणीय मुन्ना दीदी व् श्री शिब्बन गुरूजी और फिर दो साल नेहरू हाउस में श्री धाराबल्लभ गुरूजी की सरपरस्ती में रहे।तब नैनीताल में ठंड पड़ती थी। अब ए.सी. चलते हैं। भीड़ सौ गुना बढ़ गयी है।

बिड़ला के सैशन १० जुलाई से १० दिसम्बर और फिर १० मार्च से २५ जून तक होते थे। दशहरे के बाद कड़ाके की ठंड होती थी। सुबह ६ बजे जी.बी. तिवारी गुरूजी के साथ पी.टी., हाफ शर्ट और हाफ पैन्ट में. तब हाफ पैन्ट और पैन्ट में जिप नहीं होती थी, आगे बटन होते थे. ठंड की वजह से बटन उंगलियों की पकड में नहीं आते थे।

बच्चों को केवल सन्डे-सन्डे नहाना होता था। चाहे पितृ पक्ष (गरू दिन) हो या नवरात्र। फ़िल्टर में पानी गरम होता था। ५-५ के झुण्ड में नहाना होता था। नाही किसी सन्डे को गरम पानी का फ़िल्टर खराब हुआ और नाही कभी मुन्ना दीदी ने ५० में से किसी को भी चड्डी परेड कराये (नहलाये) बिना छोड़ा। प्लास्टिक के बड़े मग्गे से पानी भी डालती थी और बचने या भागने की कोशिश करने वाले को उसी मग्गे से ठोकती भी थी। वो माँ थी।

सीनियर्स में इस बारे में (नहाने के बारे में) कोई चैकिंग नहीं होती थी। कोई कोई बच्चा तो ९ जुलाई घर से ही नहा कर आता था और ५ माह बाद ११ दिसम्बर को घर पहुँच कर ही नहाता था। उन लोगों के नाम एक खोज व् रिसर्च के विषय हैं। कुछ लोगों का वह ५ माह का मैल आज भी नहीं छूटा है।

रोज प्रातः तीन मग पानी में सारे काम हो जाते थे, क्योंकि पानी गीला होता था। पहला मग, दूसरे मग पानी से हाथ धो लिए और तीसरे मग पानी से चार काम: टूथ ब्रश, आँखें साफ़, गर्दन गीली करना व् बालों में छिडकाव, जैसे किसी अनुष्ठान में पत्ते पर पानी लेकर पण्डित जी करते हैं।

गर्दन गीली कर के फोल्ड किया हुआ रुमाल गर्दन पर रख कर थोड़ी देर के लिए “आती क्या खंडाला” गाने की तर्ज पर रुमाल इधर-उधर कर लेते थे। जिससे गर्दन साफ़ रहती थी और शर्ट का कालर चकाचक।

हल्के गीले बालों पर हेयर टॉनिक वैसलीन चुपड़ कर कंघी कर के स्मार्ट बाय बन जाते थे। एक भी लट इधर उधर नहीं भागती थी।

कुल चार जोड़ी मोज़े (सॉक्स) होते थे, धोने खुद ही पड़ते थे। सैशन के शुरू में तो चार हफ्ते तक बदल लेते थे। फिर कौन धोने का झंझट पाले। इसलिए चौथी जोड़ी चलती रहती थी। दिन ब दिन, मोज़े कड़क होते जाते थे। पसीना ठंड लग कर जम जता था। ऐसा कहा जाता ही कि मोज़े जूते में पड़े हैं, हम कहते थे कि मोज़े जूते में खड़े हैं।

महकने लगते थे। ज्यादातर का यही हाल था, इसलिए ओ.के.था. दाया पहनने के लिए बायीं तरफ सर घुमाया और बाया पहने के लिए दायी तरफ।

उस समय तक डियो (डियो) तो आया नहीं था।

बिड़ला में टैलकम पाऊडर दो ही काम आता था।

पहला, जूते के अन्दर डालने के लिए जिससे की महक का फ्लेवर चेंज हो जाए।

उस समय रॉक एंड रोल संगीत से प्रेरित, ट्विस्ट डांस चलता था, जिसमें डांसर बिना पैर उठाए, फ्लोर पर जूते रगड़ता था। उसमें फ्लोर को और चिकना करने के लिए टैलकम पाऊडर डाला जाता था, जिससे जूते और स्पीड से रगड़े जा सकें। फाउंडर्स डे पर कई बच्चे यह डांस जरूर करते थे। और पाऊडर जूतो के अन्दर भी होता था और बहार भी।

कोई लौटा दे मेरा बचपन, मेरे वो दिन कि नैनीताल का पानी पहले की तरह गीला (ठंडा) हो जाए।

मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखना कोई बुरी बात नहऐसा लगता है की आज हमारे पास जो कुछ भी ज्ञान व् अनुशासन है, वह बिड़ला की बदौलत कोई भाई कृपया अवगत कराये कि यह बिड़ला विद्या मंदिर है या बिरला विद्या मंदपहाडों से डर कर थम गए तो क्या होगा,

सफ़र है इतना हसीं तो मुकाम क्या होगा। नाजनीन का हाथ हो अगर हाथ में, तो हसीं हर सफर हर मुकाम होता है, लेकिन मैं जब भी इन पहाड़ो पर आया, तो मुझ को जुकाम होता है।

क्रमशः

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