Atul Agarwal

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श्री मुरारी लाल

श्री मुरारी लाल

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                                    मुज़फ्फरनगर /  Muzaffarnagar (U.P.) के रत्न (unsung Heroes /  गुमनाम नायक)


3. 


श्री मुरारी लाल जी


श्री मुरारी लाल जी, इस संक्षिप्त कहानी के लेखक बिल्लू (अतुल) के बाबा हैं.

 

श्री मुरारी लाल जी का जन्म अब से (सन २०२२ से) 113 वर्ष पूर्व सन 1909  में होली की पड़ेवाहोली के रंग या फाग या दुल्हैनडी के दिन कैड़ी में हुआ.

 

कैड़ी गाँवनिकट गाँव बाबरी, जनपद व् तहसील शामलीज़िला मुज़फ्फरनगर (ऊ.प्र.) .

 

श्री मुरारी लाल जी ने सन 1931 में रूड़की इन्जीनीरिंग कालेजरूड़की से सिविल इन्जीनीरिंग में इन्जीनीरिंग पास की.

 

फिर सरकार के कामों के ठेकेदार के तौर पर ठेके लेने लगेसरकारी ठेकेदार.

 

मुज़फ्फरनगर में बस गए. – डीनई मंडी में अपने बाबा जी के नाम श्री बलदेव सहाय जी नाम से बलदेव सदन बनवाया.

 

ऊत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में बहुत सारे बड़े बड़े काम कियेजैसे कि स्टेशन रोड कानपुर, लोहिया हैड पॉवर हाउस (निकट पीलीभीत)ढकरानी व् ढालीपुर पॉवर हाउस (निकट डाक पत्थर / देहरादून)साईंफन / स्पिलवे देवरिया / पडरौना (निकट गोरखपुर)कालागढ़ डैम (निकट जिम कार्बेट पार्क)हरेवली बैराज (निकट बिजनौर)चिल्ला पॉवर हाउस (निकट हरिद्वार)आदि व आसन नदी जिला मुरैना (मध्य प्रदेश). 

 

धीरे धीरे अपने छोटे भाई श्री वेद प्रकाश जी (बिल्लू के छोटे बाबा जी)एक दामाद श्री राजकुमार जी (बिल्लू के बड़े फूफा जी) व् अपने ५ पुत्रों को (जिसमे बिल्लू के पापा श्री राजेन्द्र कुमार अग्रवाल जी भी थे) अपने साथ ही लगा लिया.

 

बिल्लू सन 1959 में मुज़फ्फरनगर में पैदा हुआ.

 

बिल्लू के बाबा श्री मुरारी लाल जी सभी बच्चो को रोज रात को सोने से पहले कहानी या सच्चे किस्से सुनाते थे. कुछ सच्चे किस्से अपने पुरखों के होते थे. उन में से कई सच्चे किस्से कई बार सुनायेजिससे कि कुछ अच्छी सीख मिल सके.

 

एक किस्सा ऐसे है कि :

 

" बात लगभग सन 1925 की है, उस समय उनकी (श्री मुरारी लाल जी की) आयु १४ बरस रही होगी. उस समय श्री मुरारी लाल जी अपने बाबा श्री बलदेव सहाय जीपिता श्री जानकी दास जी (बिल्लू के पड़बाबा जी) व् परिवार के साथ कैड़ी गाँव में ही रहते थे.

 

एक सह्रदय व् धार्मिक बनिया परिवार. 

 

कैड़ी गाँव की उस समय कुल आबादी रही होगीमुशकिल से २००० लोग. सभी जात पात के लोगब्राह्मणजाटबनिएमुसलमान.  

 

गाँव में अचानक कुछ आप्दायें आने लगी. श्री बलदेव सहाय जी सरपंच तो नही थे. लेकिन गाँव में उनकी इज्जत बहुत थी. पंचों व् बड़े बुजुर्गो की बैठक हुई. किसी को भी कुछ समझ नही आ रहा था.

 

श्री बलदेव सहाय जी ने सुझाया कि यह आप्दायें उस गाँव के बुजुर्गो के संचित पापों के कर्मफल हैंजिसके लिए उन बुजुर्गो को पश्चाताप व् प्रायश्चित करना चाहिए और ईश्वर से क्षमा मांगनी चाहिए और कोशिश करनी चाहिए की उनसे कोई गलत कार्य ना हो.

 

उन्होंने यह भी सुझाया कि प्रेम व् सेवा से प्रभु जल्दी रीछते हैं / खुश होते हैं. उनके सुझाव पर यह तय किया गया कि गाँव के अल्प आय व्यक्तियों / परिवारों को रोज कोई ना कोई तीनों समय भोजन करायेगायानीकि गाँव में कोई भूखा नही रहेगा. उस व्यवस्था की जिम्मेदारी कुछ उन बुजुर्ग लोगो के परिवारों ने स्वयं लेली और कुछ और खुशहाल परिवारों को सौंप दी.       

 

सभी ने अपने अपने इष्ट की वंदना की व् क्षमा मांगी और प्रार्थना की कि उन से कोई गलती ना हो और सभी परिवारों ने पूर्ण निष्ठा से अल्प आय व्यक्तियों / परिवारों के भोजन व्यवस्था का निर्वाह करना शुरू कर दिया.

 

सारा गाँव एक ही परिवार.

 

उसके बाद से जब तक श्री बलदेव सहाय जी जीवित रहेगाँव में कभी कोई आपदा नही आई. "

 

 

गाँव के लोग आज भी कहते हैं कि कैड़ी गाँव में कभी कोई भूखा नही सोताजबकि आज वहां की जनसंख्या १ लाख से कम नही होगी. 

 

हमारे बाबा श्री मुरारी लाल जी बताते थे कि एक बार उनके बाबा बलदेव सहाय जी के समय में एक बार एक साधु गाँव में आए, तो उन्होंने अपने कुछ दिनों के प्रवास में हमारे घर व हमारे एक पड़ोसी (जाटों) की सेवा कबूल की । साधु, सेवा से प्रसन्न हो, जाते वक़्त, पड़ोसी को आशीर्वाद दे गए कि तुम्हारी आने वाली सात पुश्तों को सांप नहीं काटेगा और किसी सांप काटे को तुम्हारे परिवार का कोई सदस्य राख मल देगा तो वह ठीक हो जाएगा । इसी प्रकार का आशीर्वाद वह हमारे परिवार को बिच्छू के लिए दे गए । हमारे पापा बताते थे कि उनका दिया यह आशीर्वाद बहुत काम आया, ठेकेदारी काम की साइट पर जब भी किसी मजदूर को बिच्छू ने काटा तो परिवार के किसी भी सदस्य ने बाबा जी के हुक्के की राख काटे की जगह मल दी, तो कुछ ही मिनटों में मजदूर ठीक हो जाता था । कहते हैं कि छोटे बाबा वेद प्रकाश जी तो अक्सर बिच्छू पकड़ कर अपनी हथेली पर रख कर खेल दिखाया करते थे और औरों को डराया करते थे । 

 

वापस कहानी पर आते हैं । बिच्छू के आशीर्वाद के बाद हमारे डबल पड़ बाबा श्री बलदेव सहाय जी ने साधु के पैर छू कर कहा कि चमत्कारी आशीर्वाद के बजाय / अतिरिक्त, अच्छे कर्म और अच्छे भविष्य का आशीर्वाद दीजिए । साधु ने कुछ समय तक सोचा (शायद साधु संत लोग भविष्य में झाँकते हैं), फिर बोले कि तुम्हारी आने वाली पीढ़ियाँ तब तक खुशहाल रहेंगी, जब तक ईमानदारी से काम करते रहेंगे । यह कह कर साधु एकदम से चले गए । उन साधु की बात सोलह आने सच हुई । साधु को शहर मुजफ्फरनगर में बलदेव सदन (9 D) का निर्माण व विघटन (यानिकि 9 D बटे 8) साफ नजर आया होगा, तभी उन्होंने ऐसा कहा होगा ।                  

 

 

श्री मुरारी लाल जी ने अपने आठ बच्चोंबड़े भाई के आठ बच्चों व् एक छोटे भाई के चार बच्चों का भी पालन पोषण किया.

 

और कुछ परिवार से बहारी लोग भी उनकी सह्रदयता से पढ़ लिख गए और यहाँ तक कि उनमें से एक ने इंजीनिरिंग भी पास की.

 

श्री मुरारी लाल जी ने सन १९७२ में ठेकेदारी कार्य से अवकाश ले लिया.

 

सन 1973 से सन 1975 के समय में मुज़फ्फरनगर से 10 किलोमीटर हरिद्वार रोड पर रामपुर तिराहे पर जमीन खरीद कर रोज खुद खड़े हो कर अपने बाबा जी श्री बलदेव सहाय जी के नाम पर एक बड़ा अस्पताल बनवायाजिसमे अपनी सारे जीवन की ज्यादातर जमा पूंजी खर्च कर दी. उससे वहां के आस पास के लगभग 10 गाँव के मरीजों को तुरंत उपचार मिलने लगा.

 

उसी समय रूड़की इंजिनीरिंग कालेज को एक सालाना स्कालरशिप चलाने के लिए 50,000/- रूपये भी दिएजिसका वर्तमान (सन 2022) मूल्य लगभग 20 लाख रुपये होगा । हाल यह आश्चर्य का विषय है की अब इसका रिकार्ड रूड़की इंजिनीरिंग कालेज (आई आई टी) के पास उपलब्ध नहीं है ।   

 

इसी दौरान बिल्लू के पापा श्री राजेन्द्र कुमार अग्रवाल जी ने कैड़ी में अपने बाबा जी श्री जानकी दास जी के नाम पर एक स्कूल बनवाया. उससे पहले स्कूल में पढ़ने के लिए वहां के बच्चों को 5 किलोमीटर पैदल चल कर बाबरी गाँव जाना पड़ता था.

 

श्री मुरारी लाल जी सन 1975 के बाद से रोज सुबह शाम पैदल घूमने जाते थे. उस दौरान मुज़फ्फरनगर नई मंडी व् शहर के बहुत से लोगो से मिलना हो जाता था. उनमे से कुछ हम उम्र लोगो से बात चीत होती थी. उनके दुःख दर्द सुनते थे.

 

सन 1973 से 1977 व् उसके बाद सन 1979 से 1980 में बिल्लू महावीर चौक (मुज़फ्फरनगर में जहाँ बिल्लू के पापा ने अपना घर बनवा लिया था) से अपने बाबा जी श्री मुरारी लाल जी से रोज मिलने 9 – डीनई मन्डी जाता था.

 

एक दिन बिल्लू से बोले कि उन बुजुर्गो के हालात सुन सुन कर अब उनकी एक ही इच्छा है कि मुज़फ्फरनगर में एक ओल्ड मैन्स हाउस (old age home - वृद्धााश्रम) हो.

 

उनके चेहरे पर उन के साथ घूमने वाले बुजुर्गो की पीड़ा साफ़ झलक रही थी. कहने लगे कि अस्पताल बनवाने में सारा पैसा ख़तम हो गया. यह आवश्यकता उन्हें 1973 में ही महसूस हो गयी होतीतो वह एक ओल्ड मैन्स हाउस जरूर बनवाते.

 

श्री मुरारी लाल जी ने 80 वर्ष की आयु में सन 1989 में शरीर छोड़ दिया.

 

1980 से 1989 के बीच भगवान् की याद में ही मग्न रहते. बिलकुल निर्विकारकोई ख्वाइश नहीन कोई गिलाविरक्त.

 

 

हांउनकी मुज़फ्फरनगर में ओल्ड मैन्स हाउस की हसरत बिल्लू के दिलों दिमाग में बाकी है.

 

भाग २ :

इस संक्षिप्त भाग २ को लिखने का उद्देश्य केवल इतना बताना है कि हर कोई अगर श्री मुरारी लाल जी की तरह वसुधैव कुटुम्बकम् (सम्पूर्ण धरती ही परिवार है) की विचारधारा पर चले तो हर तरह अम्न व् खुशहाली हो।

 

श्री मुरारी लाल जी का जनम सन 1909 होली के रंग वाले दिन गाँव कैड़ीतहसील शामलीज़िला मुज़फ्फरनगर (ऊ।प्र।) में श्री जानकी दास जी के यहाँ हुआ।

 

पूर्वज

 

हमारे आदरणीय पूर्वज: सभी श्री / स्वर्गीय : 

 

[जन्म स्थान: कैड़ी गाँवजनपद व् तहसील शामलीज़िला मुज़फ्फरनगर (ऊ.प्र.)

 

१।  मांगे राम जी 

२।  दौलत राम जी

३।  नानक चन्द जी

४।  बलदेव सहाय जी 

५।  जानकी दास जी 

६।  मुरारी लाल जी (मार्च 1909 –  २ मई 1989) 

७।  राजेन्द्र कुमार अग्रवाल जी (10 मार्च 1934 - 28 जुलाई 2007  

 

श्री बलदेव सहाय जी श्री जानकी दास जी के पिता व् श्री मुरारी लाल के बाबा थे।

 

उस समय के चलन के अनुरूप श्री मुरारी लाल जी का अपने बाबा श्री बलदेव सहाय जी से विशेष लगाव था। 

 

श्री जानकी दास जी के 4 पुत्र थे : 

 

१। श्री बशेश्वर दयाल जी (बड़े बाबा जी) 

 

२। श्री मुरारी लाल जी (बिल्लू के बाबा जी)

 

३।  श्री वेद प्रकाश जी (मझले बाबा जी)

 

४।  श्री कैलाश प्रकाश जी (छोटे बाबा जी) 

 

 

परिवार : 

 

श्री मुरारी लाल जी को अपने उपरोक्त तीनों भाइयों से बहुत प्रेम रहा।

 

मुरारी लाल जी ने 1931 में रूड़की इंजिनीरिंग कॉलेजरूड़की से इंजिनीरिंग पास की।

 

1933 से 1936 तक सरकारी नौकरी की. 

 

फिर सरकारी ठेकेदार बन गए।

 

सन 1932 में विवाह हुआ।

 

नाइन डी (9 - D), नई मंडीमुज़फ्फरनगर में अपना निवास बनवायाअपने बाबा जी के नाम परबलदेव सदन।

 

आठ सन्तानें हुईसत्या (बड़ी बुआ जी)राजेन्द्र (राजे - बिल्लू के पापा)शीला (छोटी बुआ जी)नरेन्द्र (मुन्ना चाचा)देवेन्द्र (काकी चाचा)महेंद्र (बब्बू चाचा)रविन्द्र (टल्लू चाचा) व् अशोक (मन्नी चाचा)।

 

मुन्ना चाचा डाक्टर बन कर इंग्लैंड में बस गए। बाकी पांचो लड़कों को श्री मुरारी लाल जी ने अपने साथ ठेकेदारी में ही लगा लिया।

 

बाबा जी ऐसा बताते थे कि वर्ष 1950 में मुरैना (मोरेना - चम्बल बीहड़ क्षेत्र – आगरा से ग्वालियर के बीच) में शहर से दूर आसन नदी पर ठेकेदारी का काम चल रहा था, साइट पर पल्लेदार (incharge) राम भरोसे के अन्डर में लगभग 50 मजदूर काम कर रहे थे, एक दिन एक आदमी राम भरोसे को बाबा जी के नाम एक चिठ्ठी दे गया, वह चिठ्ठी पहले और अब तक के सबसे बड़े डकैत डाकू मान सिंह की थी, लिखा था कि रात को आठ बजे आएंगे, 10,000 रुपये तैयार रखें, बाबा जी परेशान हो गए, राम भरोसे को बताया, धीरे-धीरे बात सभी मजदूरों को भी पता चल गई, ज्यादातर मजदूर उसी क्षेत्र के थे और उन में से कुछ डाकू मान सिंह व उसके साथी डकैतों को जानते थे, सभी मजदूर बाबा जी की ईमानदारी व स्वभाव के कायल थे, उन लोगों ने बाबा जी से कहा कि डरने की कोई बात नहीं हैं, आप निशचिन्त हो जाइए, आने दो डाकू मान सिंह को, पहले वह हमारी जान लेगा, उसके बाद ही आप तक पहुँच पाएगा, हम बात करेंगे उससे, नियत समय पर डाकू मान सिंह का एक आदमी टोह लेने आया, कुछ उसके जानने वाले मजदूरों ने उससे बात की कि यह पार्टी / घर सज्जन लोगों का है, यहाँ यह डकैती का काम ना करें, उस आदमी ने अपनी पैरोकारी / शिफ़ारिश सहित यह बात डाकू मान सिंह को बतायी, फिर डाकू मान सिंह बाबा जी से मिलने आया और कहा की आप निश्चिन्त हो कर काम करें ।    

 मित्र : 

 

मुख्यतया दो ही मित्र थे।

 

पहले मित्रश्री श्याम कृष्ण जी।

 

श्री श्याम कृष्ण जीगोखले मार्गलखनऊने इंजिनीरिंग श्री मुरारी लाल जी के साथ ही पास की। शुरू शुरू में उन्होंने भी सरकारी ठेकेदारी की। फिर अपने छोटे भाई श्री बलराम कृष्ण जी के साथ ताले बनाने की फैक्ट्री खोल ली।

 

बहुत वृद्धावस्था को छोड़ कर1931 से 1989 (58 वर्ष) तक आपस में लगातार सम्पर्क में रहे। साल में सपत्नी एक बार श्री श्याम कृष्ण जी मुज़फ्फरनगर आ जाते थे। कई दिन रुकते। बीच में श्री मुरारी लाल जी के साथ हरिद्वार हो आते। श्री श्याम कृष्ण जी हरिद्वार में गंगा जी में स्नान के लिए उतरने से पहले लोटे में जल लेकर अपने पैर बहार ही धोते थेजिससे की गंगा जी की पवित्रता बनी रहे। मुज़फ्फरनगर से भी श्री मुरारी लाल जी के परिवार से कोई न कोई उनके घर लखनऊ जाता रहता था।

 

दूसरे मित्रश्री कैलाश प्रकाश जी।

 

श्री कैलाश प्रकाश जीपरिक्षतगढ़, मेरठ से थे, जन्म 1909 में । उस जमाने के परा स्नातक।

 

भारत के आजादी आन्दोलन से जुड़े रहे। शुरू में क्रांतिकारी । फिर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अंग्रेजों के शासन काल में लंबे समय तक जेल में रहे, 1930, 1932, 1938, 1942 । आजादी के बाद मेरठ से कई बार एम.एल.ए. रहे और उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे । 1975 से 1977 इमरजेंसी में भी जेल में रहे । 1977 से 1980 के बीच श्री मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री काल में सांसद भी रहे । पूर्ण ईमानदार । मेरठ में साकेत में या लखनऊ में मोती महल में रहते थे। 

 

 

थर्ड जैनरेशन यानिकि लेखक बिल्लू की जैनरेशन के सभी बच्चे श्री श्याम कृष्ण जी व् श्री कैलाश प्रकाश जी को बाबा जी ही बुलाते।

 

 

 सिपहसलार : 

 

1. बुध्धा 

 

बुध्धानई मंडी घर का मुख्य चाकर (हैड / केयर टेकर) था। गाय भैंसों की देख भाल व् उनकी सानीदूध दुहाईसाग सब्जी लानाश्री मुरारी लाल जी का हुक्का भरनारात को चोकीदार की तरह बहार के आंगन में सोना व् अन्य छोटे मोटे कार्य उसके जिम्मे थे।

 

बच्चे उन्हें बुध्धा बाबा ही बुलाते थे।

 

एक और चाकर थामनई । बहुत साल रहा ।

 

 

रात को श्री मुरारी लाल जी के एक दो बच्चे घर देर से आते थे। मनई ही को बहार का दरवाजा खोलना पड़ता था। सर्दियों में रात को एक बार सोने के बाद किसी के लिए दरवाजा खोलना बहुत कष्टकारी होता है। मनई मन ही मन या धीरे से बड़बड़ाता था। लेकिन एक दिन उसके मुहं से एक बच्चे के लिए कुछ बद्ददुआ निकल गई ।

 

सुबह उठने पर मनई को बहुत आत्म ग्लानि हुई। वह बुध्धा बाबा को बता कर अपने गाँव चला गया ।

 

बुध्धा बाबा खुद भी हुक्का पीते थे। उन्हें टी.बी. हो गयी। ११ जनवरी १९७२ की रात में शरीर छोड़ दिया। उनका लगातार इलाज श्री मुरारी लाल जी ही कराते थे।

 

 

2. बाबू राम 

 

बाबू राम जी श्री मुरारी लाल जी के ठेकेदारी कार्य के सी.ई.ओ. (मुन्शी) थे ।

 

3. मजबूत सिंह 

 

श्री मुरारी लाल जी के पास शुरू से ही एमबैसडर कार रही। ज्यादतर काले रंग कीनंबर था 7499 । श्री मुरारी लाल जी खुद गाड़ी चलाना जानते थे।

 

फिर भी श्री मुरारी लाल जी नें मजबूत सिंह जी को कार ड्राईवरी के लिए रखा हुआ था। लम्बे आने जाने व् परिवार के लिए।

 

मजबूत सिंह पहले फौज में थे।

 

बाद के कुछ वर्षो में श्री मुरारी लाल जी के पास एक एमबैसडर कार के इलावा एक स्टैण्डर्ड कम्पनी की छोटी कार गैज़ल भी रही।

 

 4.  चौबे जी 

 

चौबे जी भी कार ड्राईवर थे। बाद में चौबे जी देहरादून में अपनी टैक्सी चलाने लगे। सन १९७४ में श्री मुरारी लाल जी को अपनी टैक्सी में श्री केदारनाथ जी व् श्री बद्रीनाथ जी ले गए।

 

एक समय में एक बिलांद (बालिश्त – ९ इंच ऊंचाई / मोटाई का ढेर) अच्छे साइज़ की पूड़ीयां व् एक किलो मिठाई आराम से खा लेते थे।

 

बाद में चौबे जी नें ड्राईवरी छोड़ कर अपने लड़के को पलटन बाज़ारदेहरादूनमें फोटोग्राफी की दूकान खुलवा दी।

 

5. रघुबर 

 

चौबे जी व् मजबूत सिंह जी के जाने के बाद रघुबर ही ड्राईवरी सँभालते थे।

 

6. तारा चन्द

 

तारा चन्द को बहुत कम सुनाई देता था। पहले उसने लगभग १० साल श्री राजेन्द्र कुमार अग्रवाल जी (बिल्लू के पापा) के यहाँ घरेलू काम किया। फिर उसने लगभग १५ साल श्री मुरारी लाल जी के यहाँ काम किया। 

 

 

सभी सिपहसलारों को उनके पारिश्रमिक के इलावा उनके आवश्यक खर्चों को श्री मुरारी लाल जी ही वहन करते थे। उनके सभी कार्यों में घर के बुजुर्ग की तरह पूर्ण सहयोग।

 

आखरी के 9 साल1980 से 1989 तक श्री मुरारी लाल जीश्री राम चरित मानस पर बहुत मनन करते। आँखे सजल हो जाती।

 

 

श्री मुरारी लाल जीउनके उपरोक्त सभी पूर्वजोंमित्रोंसिपहसालारों व् परिवार के सदस्यों को नमन।

 



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