हमारे आदरणीय बड़े फूफा जी - श्री राज कुमार गुप्ता जी
हमारे आदरणीय बड़े फूफा जी - श्री राज कुमार गुप्ता जी
भीनी भीनी यादों के झरोखों से
बहुत ही सौम्य, चेहरे पर एक शांतिपूर्ण चमक, मैंने आपको कभी गुस्से में नहीं देखा। बातचीत में शांत व् गंभीर। इससे ज्यादा जानने का अवसर ही प्राप्त नहीं हुआ।
श्री राज कुमार जी (यानी कि बड़े फूफा जी) सपत्नी श्रीमति सत्या (सत्तो बुआ, यानी कि बड़ी बुआ जी) व पाँच बच्चों – गुड़डी दीदी (साधना), सुधीर दादा, छाया बहन, अंजू बहन व मीनू भाई के साथ मुज़फ्फ़रनगर, वकील रोड, नई मण्डी में रहते थे।
सरकारी ठेकेदारी करते थे, irrigation विभाग की।
सन् 1974 में जब मैं इन्टर में था, उम्र 15 वर्ष, एक बार अपने पापा श्री राजेन्द्र कुमार अग्रवाल व् फूफा जी के साथ हरिद्वार गया । उनको वहाँ कुछ काम था, ठेकेदारी से संबंधित, शायद, चीला पॉवर हाउस का।
काम के बाद दोपहर में चोटिवाला होटल में लंच के लिए गए। खाने के साथ प्याज, नींबू व् हरी मिर्चियाँ आई। 6 की 6 मिर्चियाँ फूफा जी ने अपनी प्लेट में रख ली। पापा तो हरी मिर्च खाते नहीं थे, और हम को एक आध ही काफी थी, लेकिन वो भी नहीं मिली।
6 हरी मिर्च, आधा खाना खाने तक, फूफा जी ने खतम कर दी, और वेटर से और हरी मिर्चें मँगवाई, वेटर 4 हरी मिर्चें और दे गया, फूफा जी ने वो भी खा ली। न उनको एक भी हिचकी आई, और ना ही पसीना। पापा ने बाद में बताया की फूफा जी के लिए यह एक नॉर्मल और रूटीन बात है।
इतना तीखा, कड़ू, मिर्चीला या जहरी खाने के बाद भी, आवाज में कोई तीखापन या कड़वाहट नहीं, गरल पान के बाद भी वही प्यारी सी मुस्कराहट।
8 साल बाद सन 1982 में, सुधीर दादा व मिथलेश भाभी जी के साथ एक बार Ritz होटल, बरेली में डिनर करने गए। वही घटना क्रम की पुनरावरती हुई, यानि कि सुधीर दादा ने सारी की सारी हरी मिर्चें ........।
फूफा जी को नमन व सुधीर दादा को प्रणाम