भयंकर
भयंकर
कब से वो देख रहा है शाम के लाल सूरज के आगे उस बिजली के देवदार के आकार के टावर को जिसपर तमाम गिद्ध आकर ठहरे हुए हैं। क्या पता इतने सारे गिद्ध आये कहाँ से थे? एक दूसरे में ठुसे हुए उस दिसम्बर की एक शाम में। एक कटे पेड़ का आधा तना और तीन शाखाएँ ज़मीन को चूमतीं, आलिंगन में थीं।
आगे कैंसर इंस्टिट्यूट से एक रास्ता ढलान की ओर जाता, जहां ढेर सारे पेड़ों से लटकते रंग बिरंगे चिथड़े। वही नीचे बैठा एक जिम इंस्ट्रक्टर जो पास के गोल्ड जिम में काम करता था, कुछ कसरत कर रहा था। उसकी छाती फूली हुई थी ,भुजाएं कसीं, डम्बल नुमा। अब वो सिगरेट पी रहा था।
पास के अपार्टमेंट से दो महिलायें एक कार में बैठीं, कार कहीं जा रही थी। उस सुनसान काम्प्लेक्स में एक सबवे किसी मरुभूमि में उगे मरुद्यान जैसा लगता था। उसे एक स्त्री नज़र आयी जिससे उसने कभी प्रेम किया था। कहाँ से अकस्मात् वो यहाँ आ गयी, गले लगाया और वो जाने लगी। बहुत जल्दी में थी शायद।
ऊपर रात हो रही थी, वो एक सन्यासी सा घूमता वहाँ पहुंचा जहां एक बड़ी -बड़ी मूंछ वाला आदमी सबका हिसाब मांग रहा था। क्या जाने कैसा हिसाब? ये पूछो तो कोई जवाब नहीं मिलता। वो बड़ी मूंछ वाला आदमी बात बात पर गुस्सा जाता था। फिर कहने लगा “फाइनली, आई गेट रीड ऑफ़ हर, माय वाइफ”
वो वहाँ से भागता एक बार में पहुँचा जहां एक लड़की उसे अपनी निगाह-ए-पाश में बाँध रही थी। वो उसमें फंसता गया और खूब शराब पी। उस लड़की ने उसे चूमा, प्यार किया, फिर गायब हो गयी।
रात के धुत्त नशे में वो कहीं पड़ा रहा। सुबह चार लोग आकर उसे उस मूंछ वाले के पास ले गए। वो चिल्लाया, नाराज़ हुआ, आखिर बिना हिसाब दिए वो कहाँ गायब था। कैसा हिसाब? इस पर मूँछ वाला हँसा और चार लोगों ने पास के बड़े से पुराने पत्थर पर रखकर उसका गला रेती से रेत दिया।
पत्थर पर लाल खून था और गिद्ध उस टावर से उड़कर पत्थर पर मंडरा रहे थे।
