बाल-पुरुष
बाल-पुरुष
वो बाल-पुरुष बार-बार बाहर जाता जिससे की वो बार बार घर वापस आ सके।
उसका घर की चौखट से गली में जाना, दूसरी गली पार कर राशन वाले से सौदा लेकर पास में आम की बगिया में चक्कर लगाना समय काटना है।
वो फिर अब घर की ओर चल पड़ा है। उसकी स्त्री ने उसे फिर से शाम के लिए तरकारी लाने भेज दिया। माँ ने कहा ,
"अब की बार तुरंत मत लौट आना।"
वो कुछ गुनगुनाता हुआ चल पड़ा। घर से बाहर जाते ही गली के नुक्कड़ पर पान खाया। दो पान बँधवा भी लिए।
उसे तरकारी लेने राजा साहब की बगिया पार कर अहिर टोला होते हुए नई बस्ती जाना था।
वो पान खाकर थोड़ा सुस्ताने फिर घर आ गया। इस बार पत्नी थोड़ा मुस्कुराई।
माँ ने फटकारा - "तू फिर आ गया।" कुछ देर खटिया पर लेटे लेटे वो बरामदे के पंखे को देखता रहा। फिर झटपट उठकर चलने को हुआ। "इस बार देर से आऊँगा "
ये कहकर वह निकल पड़ा। नयी बस्ती पहुँचकर तरकारी खरीदी। पास में कुम्हार के यहाँ से पानी का घड़ा। वहाँ कुछ लोग एक चबूतरे पे बैठे भाँग पी रहे थे। एक ने पुकारा -"क्यों बाबू भाँग पीते हो।" उसने नकारा ,फिर वापस चल पड़ा। तरकारी लेकर घर आया तो पत्नी ने लालटेन जला दी थी बरामदे में। माँ वहीँ बैठी चावल पछोर रही थी। रात को भात तरकारी बनेगा।
वह तरकारी पत्नी के हाथ में थमा कर खटिया पर बैठ गया। खटिया के नीचे ताँबे के लोटे में पानी रखा था। उसने मुँह धोया, पानी ऊपर से पिया, फिर खटिया पे लेटकर ऊपर तारों को देखने लगा।
"कल तो दफ्तर जाएगा या कल भी छुट्टी मारेगा" - माँ ने अपनी बहू से पूछा। वो मुस्कुरा दी।