विकास के परोक्ष

विकास के परोक्ष

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कोई कई दिनों से उस आश्रम में रह रहा है कैसे वहाँ आज भी एक छोटा वन प्रदेश ज़िन्दा है

चारों तरफ़ विशाल पेड़ ,बीच में एक मंदिर ,पास में निर्मल पानी ऊपर पहाड़ी से रिसता आता है वो कब उस आश्रम में आया होगा ? वहाँ हिरन ,शेर , हाथी ,चीता ,मोर सब साथ रहते थे मानव भी थे , जानवर को मानव का आतंक नहीं था भला कैसे मानव जैसा हिंसक जानवर वहाँ सबके साथ रह रहा था।  यह एक आदिम काल जैसा प्रतीत होता है।  उस वन प्रदेश में आश्रम एक मौन का प्रतीक है।  

जहाँ पास में कुछ आदिवासी पेड़ों के झुरमुट में खाना खा रहे हैं और गीत गा रहे हैं।  कितना सुखद है यह दृश्य कि कोई यहाँ विकास की बीन बजाने नहीं आया है और यह सब बचा हुआ है। 



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