Archana Tiwary

Inspirational Others

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Archana Tiwary

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बहू

बहू

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 रमा बहुत उत्साहित और खुश थी और हो भी क्यों नहीं उसके इकलौते बेटे की शादी जो तय हो गई थी। अपने बेटे की शादी को लेकर न जाने कितने सपने संजोए बैठी थी। लड़की बहुत पैसे वाले घर की नहीं थी पर सुंदर और सुशील है। अर्थशास्त्र में उसने बी ए किया है पर घर की परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि आगे पढ़ाई न कर पाई। उन लोगों ने पहले ही बता दिया कि वह दहेज नहीं दे पाएंगे पर लड़की किसी हीरे से कम नहीं थी। रमा भी तो यही चाहती थी कि लड़की ऐसी हो जो उसकी बसी बसाई गृहस्थी को ठीक वैसे ही चलाएं जैसे वह संभालती आई है। रमा ने पच्चीस वर्षों तक स्कूल में शिक्षिका का काम किया था। इस नौकरी के दौरान वह बहुत व्यस्त रहती थी। जब आसपास के औरतों को देखती तो जलन सी महसूस करती। सोचती रहती इन औरतों की जिंदगी कितनी सुकून वाली है। न सुबह अलार्म की कर्कश आवाज ना घड़ी की सुई के साथ भागना। कितनी खुशनसीब है यह औरतें जिनका पति गृहस्थी का पूरा भार उठा रहा है और ये जिंदगी के एक-एक पल का मजा ले रही हैं। मेरी ऐसी किस्मत कहां? घर की परिस्थिति ऐसी थी कि अगर दोनों न कमाए तो अपने बच्चे को वैसे जिंदगी न दे पाएंगे जैसा देना चाहते थे। पर आज तो इन सब बातों से बहुत दूर अपने बेटे के भविष्य को संवारने और उसके भविष्य के बारे में सोच सोच कर रमा का मन खुशी से झूम रहा था।

जैसे ही रिश्तेदारों को पता चला सब की बधाइयां और शुभकामनाएं आने लगी। आस-पड़ोस की औरतें जो बेटे की शादी को लेकर ताना मारती थी आज दिखावटी शुभकामना ले कर बारी बारी से उससे मिलने आ रही थी। रमा ने अपने बहू की एक काल्पनिक छवि मन में बना रखी थी। वह उसे बहू नहीं बेटी मानेगी। उसके आते हैं उसकी सहेली बन जाएगी। उससे बहुत प्यार करेगी और काम करने का दबाव न डालेगी पर हां गृहस्थी का बोझ उसे सौंप कर अब आराम करेगी। ऐसी ना जाने कितनी बातें सोच सोच कर वह सपने बुनते रहती। इसी बीच एक दिन उसकी पड़ोसन शीला उससे मिलने आई इधर उधर की बातें करते हुए शीला ने बताया उसकी बेटी संध्या जिसकी शादी पिछले साल ही हुई है अपने ससुराल में बहुत खुश है और अपने सास ननद और देवर पर धौंस जमा कर रखती है। रमा ने उसे कुरेदते हुए कहा यह तुम किस तरह की धौंस की बात कर रही हो तब शीला ने बताया मैंने तो अपनी बेटी को शादी के पहले ही सिखा दिया था कि ससुराल में जाते हैं तुम अपनी मर्जी की करना। किसी की कोई बात मत सुनना। जो मन में आए वह करना। अगर तुम उन लोगों की बातें मानने लगेगी तो वे तुम्हें घर की नौकरानी बनाकर रखेंगे। शीला जब बेटी के ससुराल की बातें बता रही थी तब एक अजीब सी चमक उसके चेहरे पर छाई हुई थी। रमा ने आगे पूछा तो यह बताओ संध्या सुबह उठकर अपनी सास ननद के लिए चाय नाश्ता वगैरह बनाती है कि नहीं। शीला ने तुरंत उत्तर दिया अरे नहीं नहीं संध्या तो अपने पति रोहन के ऑफिस जाने के बाद आठ बजे सोकर उठती है। उसकी सास पहले की तरह सबका नाश्ता बनाकर रोहन के लिए लंच का डब्बा भी पैक कर देती है। शीला की यह बातें सुनकर रमा का दिल बैठा जा रहा था क्या उसकी बहू भी...नहीं नहीं... उसकी बहू तो... इसी उधेड़बुन में रमा खोई थी कि शीला ने अचानक टोका, कहां खो गई रमा। तुम क्यों घबरा गई बहू तो बहू होती है। उसे तो घर संभालना ही पड़ेगा। ससुराल वालों की सेवा करनी ही पड़ेगी। मेरी बहू भी आएगी तो उसे भी यह सब कुछ करना पड़ेगा। शीला के जाने के बाद रमा को अपना सपना टूटता सा दिख पड़ा। यह कैसी सोच है। बेटी और बहू के लिए। बहू से हमारी कितनी अपेक्षाएं और बेटी...पूरी रात रमा सो न पाई यह सोचकर कि आज लड़कियों की नहीं उनके माता-पिता की सोच बदलने का समय है। शीला जैसी न जाने कितनी मां अपनी बेटी को उसके ससुराल में एडजस्ट करने की सलाह न देकर गलत रास्ते पर ले जाती है और संध्या जैसी बेटियां गुमराह हो अपनी गृहस्थी को संभालने में असमर्थ होती जा रही है।


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