बहू भी बेटे जैसी होती है
बहू भी बेटे जैसी होती है


"माँ जी मेरी तरफ से ये पैसे रख लीजिए। गैस का सिलेंडर मंगवा लीजिएगा और अब ऑफिस खुल जायेगा और फिर आना कब होगा मेरा। क्या पता। " नंदिनी ने कहा...
"रहने दे अपने पैसे अपने पास में रख ले, नहीं चाहिए तेरी भीख।" नंदिनी की सास ने कहा ....
"माँ! अगर आज शैलेश ज़िंदा होते तो वो भी यही करते न। आप कब मानेगी कि मैं आपकी बहु नहीं बेटा हूँ। " इतना कह कर नंदिनी पैसे रख कर वहां से चली गयी।
"हूं ! बड़ी आयी, अपनी नौकरी की धौंस दिखाती है|" सास ने नाक भौ सिकोड़ते हुए कहा और पैसे रख लिए।
नंदिनी दूसरे शहर में जॉब करती थी। शैलेश का एक कार एक्सीडेंट में मृत्यु हुए दो साल हो चुके थे और नंदिनी अपनी सासु माँ को सबको कुछ मानती थी वही उसकी माता और पिता थे। वो अपनी सासु माँ को अपने साथ रखना चाहती थी। पर सास अपना घर छोड़ कर नहीं जाना चाहती थीं।
नंदिनी हर हफ्ते दो बार मिलने आती थी और उनको घर खर्च के पैसे दे कर उनके साथ समय बिता कर चली जाती थी। कोशिश करती थी माँ से जल्दी जल्दी मिलने की। सासु माँ नंदिनी के पैसे न-नुकुर करके ले लेती थीं पर उसे बहुत कोसती थीं। नंदिनी कुछ नहीं कहती थी।
एक दिन जब नंदिनी माँ से मिलने पहुंची तो उसने सासु माँ को पड़ोस वाली काकी से बात करते सुना। काकी कह रही थी "अब तुम नंदिनी की दूसरी शादी कर दो। कब तक यहाँ बैठा के रखोगी। " सास ने कहा "सही कह रही हो काकी अब यह भी तो बोझ बन गयी है। मेरे साथ तो कितने सारे रिश्तेदार हैं।" नंदिनी को यह सुन के बहुत दुःख हुआ फिर भी आँखों के आँसू छुपाते हुए बोली " काकी आप जाइए यहाँ से। आप मेरी शादी की चिंता न करें। माँ मुझे किसी से शादी नहीं करनी। मैं बस आपके लिए जीना चाहती हूँ। मैं अकेले ही काफी हूँ। "
अचानक सासु माँ को चक्कर आ गए और वही ज़मीन पर बेहोश हो गिर पड़ी। नंदिनी "माँ माँ" कहती हुई माँ की तरफ दौड़ी। उसने तुरंत डॉ. को बुलाया। "इनके शरीर में खून की कमी आ गयी है..... खून चढ़ाना ज़रूरी है। " डॉ. ने कहा। "डॉ. साहब मैं इनका बेटा हूँ..... मेरा खून चढ़ा दीजिए। " नंदिनी ने कहा। नंदिनी का खून माँ के खून से मैच कर गया। और सासु माँ को खून चढ़ा दिया गया।
सासु माँ होश में आ गयी थीं। नंदिनी ने पूछा "माँ कैसी हो ?" "हट जब देखो ज़िद करती रहती है, शादी नहीं करेगी। पहाड़ जैसी ज़िन्दगी कैसे कटेगी। देख आज मेरे रिश्तेदारों ने जान बचाई मेरी। तू फालतू ही फिक्र करती है।" सासु माँ ने कहा झिड़कते हुए पास बैठी नंदिनी से।
"कैसे रिश्तेदार माँ जी। नंदिनी जैसी बहु पा के आपको भगवान का शुक्रिया करना चाहिए। नंदिनी ने तो वह काम किया है जो कोई सगा बेटा भी नहीं करता। रिश्तेदार तो कोई नहीं आया आपका। हीरा है आपकी बहु। यह न होती तो आपका बच पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था। इसने ही अपना खून देकर आपको बचाया है। नियति का खेल भी देखो आप का खून केवल इससे ही मैच हुआ। यह तो आपके बेटे से भी बढ़कर है। " डॉ. ने कहा
ये सुनकर सासु माँ की आँखों से अश्रुधारा बह निकली। "बेटा मुझे माफ़ कर दे। तूने तो सच में एक बेटे का फ़र्ज़ निभा दिया। जिन्हें मैं कल तक अपना समझ रही थी, वो तो मेरे पास ही नहीं हैं। मैं कितनी गलत थी। आज से मैं अपने बेटे के साथ ही रहूंगी। "
"नहीं माँ बेटे से माफ़ी मांग कर बेटे को शर्मिंदा न करें। अब तो आप अपने बेटे के साथ ही जायेगीं। " नंदिनी ने माँ के गोदी में सर रख कर कहा। सास ने नंदिनी को अपनी छाती से लगा लिया। और दोनों खुशी ख़ुशी रहने लगी।