बहु मेरी बेटी
बहु मेरी बेटी
"बहू..! उठ बहू..! एक कप चाय बना दे!" पर बहू कहां उठती। गहरी नींद में जो थी। और समय भी सुबह के चार बजे का था..! आज सारी रात कलावती को नींद न आई! कभी बेटे की याद आती, जो फौज में सिपाही था, तो कभी बहू के बारे में सोचती! कितनी सीधी बहू है! घर गृहस्थी, बच्चों की परवरिश सबकी सेवा में ही सारा दिन बिता देती और अपने दिल की पीड़ा और दर्द कभी किसी पर जाहिर न होने देती..! बेटा चार छह माह में सिर्फं एक बार ही घर आता, पर बहू उसे कभी कुछ न कहती और हमेशा उसे खुश रखती। बल्कि उसे इस बात पर गर्व था, कि उसका पति देश की सेवा में है! एक बार पुनः उसने बहू को जगाने की कोशिश की, पर जब उसकी नींद न खुली, तब वो खुद ही रसोईघर को गई और चाय बनाने के बर्तन में पानी डाल गैस पर रख दिया, और चीनी, चाय के डिब्बे को तलाशने लगी। तभी टन्न की आवाज के साथ कुछ बर्तन जमीन पर गिर गये..! नीतू की नींद खुल गई। उफ्फ! लगता है मांजी आज भी सोई नहीं और शायद रसोईघर में चाय बना रही हैं..! वो जल्दी से उठी और सीधे रसोईघर में जाकर मांजी से बोली, "ओह मां, ये क्या! आपको चाय पीना था, तो मुझे जगा दिया होता। आपकी वैसे भी तबियत ठीक नहीं है, चलिये अपने बिस्तर पर", और ऐसा कहते हुए उसे सहारा देकर वापस बिस्तर पर लाकर लेटा दिया। और फटाफट चाय बनाकर ले आई।
"मैंने तुझे जगाने की कोशिश की थी, पर तू गहरी नींद में थी। कितनी अच्छी है तू! मेरी बेटी नही है, पर तेरे आने से वो कमी भी पूरी हो गई! बेटी का सुख क्या होता है, ये तो मैंने तुझसे ही जाना। किस्मत की कितनी धनी हूं मैं, कि सबकी बेटियां तो पराई होती हैं, पर मेरी तो बहू ही मेरी बेटी है! हमेशा साथ रहने वाली, साथ देने वाली और साथ चलने वाली..!", "और मुझे भी तो कितनी अच्छी सासू मां मिली है, मेरी कल्पना से भी ज़्यादा अच्छी!" ये कहते हुए वो अपनी सांसू मां के सीने से चिपक गई..!